झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / city

लोहे की कड़ाही में खाना बनाना, खून की कमी को दूर भगाना

एनीमिया यानी खून की कमी. पिछले तीन दशक से झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्तर पर आयरन और फॉलिक एसिड की गोलियां वितरित की जा रही हैं. लेकिन लोग टेबलेट खाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. इस वजह से ग्रामीणों के शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है. लेकिन अब कुछ गैर-सरकारी संस्थाओं ने इसका भी रास्ता ढूंढ लिया है और यह रास्ता 'लोहे की कड़ाही' से होकर गुजरता है.

By

Published : Dec 18, 2019, 9:53 AM IST

Updated : Dec 18, 2019, 4:14 PM IST

iron frying pan is helpful
लोहे की कड़ाही में खाना

रांची/खूंटी: नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक झारखंड में 6 माह से 5 साल के 71.5% बच्चे, 15 से 49 साल की 67.3% महिलाएं और 15 से 49 साल के 33% पुरुष एनीमिया से ग्रसित पाए गए. एनीमिया यानी खून की कमी. झारखंड में पिछले तीन दशक से ग्रामीणों के बीच सरकारी स्तर पर आयरन और फॉलिक एसिड की गोलियां बांटी जा रही हैं. जाहिर है लोग टेबलेट खाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. अब सवाल है कि इन भोले-भाले ग्रामीणों के शरीर में हो रही आयरन की कमी को कैसे दूर किया जाए.अब इसका रास्ता ढूंढ लिया गया है. यह रास्ता लोहे की कड़ाही से होकर गुजरता है.

वीडियो में देखिए स्पेशल रिपोर्ट

लोहे की कड़ाही के करिश्मे को समझने के लिए हम आपको ले चलते हैं राजधानी रांची से करीब 70 किलोमीटर दूर आदिवासी बहुल खूंटी जिला के तोरपा विधानसभा क्षेत्र के कुछ गांवों में. पक्की सड़कों पर हमारी गाड़ी फर्राटे से दौड़ रही थी.ऐसा लगा जैसे मंजिल तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.लेकिन तोरपा बाजार से जैसे ही गाड़ी कच्ची सड़क की तरफ दाईं ओर मुड़ी हम हिचकोले खाने लगे. कुछ फासला तय करते ही समझ में आ गया कि सफर आसान नहीं है. यह समझ में आ गया कि अस्पताल जाते वक्त गर्भवती महिलाओं को कितनी तकलीफ होती होगी ...कच्ची सड़क के किनारे कई मोड़ पर पथराई आंखें नजर आई. उनके चेहरों पर कई सवाल थे.एक बुजुर्ग के कंधे पर धान के बोझे देखकर समझ में आ गया कि जो चावल हमारी थाली तक पहुंचता है उसे उपजाने में कितना पसीना बहाना पड़ता है.बहरहाल, हिचकोले खाते हुए जब हम तोरपा के उकरिमारी पंचायत के बुद्धू गांव पहुंचे, वहां की ग्रामीण महिलाओं के चेहरे पर मुस्कुराहट देख हमारे सफर की थकान जैसे छूमंतर हो गई.

ये भी पढ़ें -डाक टिकटों के संग्रह का शौक बना जुनून, इस रंगबिरंगी दुनिया के आप भी हो जाएंगे मुरीद

लोहे की कड़ाही जिंदगी का अभिन्न हिस्सा

ईटीवी भारत की टीम के सामने लोहे की कड़ाही में पालक साग लिए बैठी महिलाओं के गीत से समझ में आ गया कि लोहे की कड़ाही इनकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गई है. अब हमारा सवाल था कि एनीमिया जैसी बीमारी से लोहा लेने के लिए लोहे की कड़ाही की क्या भूमिका है. इन भोले-भाले ग्रामीण महिलाओं को किसने बताया कि लोहे की कड़ाही में खाना बनाने से इनके शरीर में आयरन की कमी दूर हो सकती है. किसने समझाया कि यह अपने घरों के आसपास के परती जमीन पर किचन गार्डन लगाएं. इसका जवाब दिया बदलाव दीदी ने . तोरपा की बदलाव दीदी आशा किरण ने कहा कि लोहे की कड़ाही हमारे परिवार में अगर किसी को खून की कमी, घुटने में दर्द और माहवारी को सही कर रहा है. साथ ही पेट और कमर दर्द में भी लोहे की कड़ाही लाभप्रद साबित हो रहा है.

ट्रांसफार्म रूरल इंडिया की पहल

अब सवाल ये है कि ग्रामीणों के व्यवहार में बदलाव का ये आईडिया किसने सुझाया? इसके जवाब में एक गैर सरकारी संस्था का नाम सामने आया. नाम है टी.आर.आई यानी ट्रांसफार्म रूरल इंडिया. टी.आर.आई की इस मुहिम में भागिदार बना पीएचआरएन, प्रदान और तोरपा महिला संघ. हमने टी आर आई के एक पदाधिकारी पंकज जीवराजका से बात की. पंकज जीवराजका ने कहा कि बहुत सारी संस्थाये हैं जो अलग-अलग क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रही हैं लेकिन पंकज का सोच था कि वो उन संस्थाओं को एक साथ लेकर आएं और समुदाय के साथ एक चर्चा करें कि किस तरह की बदलाव की अपेक्षा रखते हैं. उन्हीं चर्चाओं के दौरान बदलाव दीदी का कांसेप्ट आया है. साथ ही उन्होंने बताया कि बदलाव दीदी को शुरूआत में 3 दिन का तकनीकी ट्रेनिंग दिया जाता है. उसके बाद दीदी अपने टोला में आकर 3-4 महिला मंडल को इकट्ठा कर गाने के माध्यम से या खेल के माध्यम से उन्हें जानकारी देती हैं. फिर कुछ दिनों के बाद दोबारा उसपर चर्चा कराया जाता है ताकि जानकारी और अलग-अलग जगह फैले.

ये भी पढ़ें -साहिबगंज की धरती से पीएम मोदी की कांग्रेस को खुली चुनौती, कहा- हिम्मत है तो घोषणा करे कि हर पाकिस्तानी को देगी नागरिकता

बदलाव दीदी की भूमिका सबसे खास

इस संस्था ने ग्रामीण महिलाओं के व्यवहार में बदलाव के लिए इन्हीं के बीच से एक जागरूक महिला को चुना और उसे नाम दिया बदलाव दीदी. फिर बदलाव दीदी की पहल पर इस अभियान से अलग-अलग गांव की महिलाएं जुड़ती चली गईं और इस तरह बनता चला गया कारवां. अब यह महिलाएं अलग-अलग गांव में घूम-घूम कर ग्रामीण महिलाओं को समझाती हैं कि एनीमिया जैसी बीमारी क्यों होती है. इस बीमारी से किस तरह का नुकसान होता है. लोहे की कड़ाही में सब्जी बनाने पर कैसे शरीर में आयरन की कमी को बहुत हद तक दूर किया जा सकता है. अभियान से जुड़ी दीदी सुशीला और प्रमिला के अनुसार शुरूआती दौर में तो इस जागरुकता को फैलाने के लिए काफी मुश्किलों का समना करना पड़ा. सबसे पहले इन्हें पंचायत लेवल पर बांटा गया था और सभी को गांव-देहात, जंगल-जंगल घुम कर हरेक टोला पहुंचना पड़ता था. इस दौरान गांव में दादा लोग रहते हैं जो इन्हें परेशान करते थे लेकिन उससे जुझते हुए सुशीला और प्रमिला ने ये कारनामा कर दिखाया. अब इन्हें तोरपा के किसी कोने में जाने में को दिक्कत नहीं होती.

खून बढ़ाए लोहे की कड़ाही

एनीमिया से ग्रसित तोरपा के कई गांव की महिलाओं ने लोहे की कड़ाही को अपनी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बना लिया है. कुछ समय पहले तक यही महिलाएं एलमुनियम या मिट्टी के बर्तन में खाना बनाया करती थी. अब उन्हें समझ में आ गया है कि पालक में भरपूर मात्रा में आयरन मिलता है. अब यह महिलाएं समझ गई है कि लोहे की कड़ाही में सब्जी बनाने पर टमाटर, नींबू या इमली डालने से आयरन का क्षरण होता है, जो उसी सब्जी में घुल मिल जाता है और इनके शरीर में जाकर एनीमिया जैसी बीमारी से लड़ने में मदद करता है. अब इन गांवों में एक गीत गूंजती है... लोहे की कहाड़ी में खाना बनाना, परिवार में खून की कमी को दूर भगाना.

Last Updated : Dec 18, 2019, 4:14 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details