रांची: 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद से नेतृत्व संकट से गुजर रही कांग्रेस पार्टी के बुरे दिन मानो खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं. पार्टी को देशभर में किसी संजीवनी की तलाश है, झारखंड में भी पार्टी की स्थिति खस्ताहाल है. एक अगस्त 2019 को झारखंड के स्टेट हेड क्वार्टर में धक्का-मुक्की और हंगामे की जो तस्वीर सामने आई उसकी कल्पना तो विरोधियों ने भी नहीं की थी.
संयुक्त बिहार के समय से ही ये इलाका कांग्रेस के लिए काफी अहम रहा है. यहां शुरूआती दिनों से यहां के कई दिगग्ज जैसे दिवंगत जयपाल सिंह मुंडा, कार्तिक उरांव, थॉमस हांसदा, सुशीला केरकेट्टा समेत अनेक नेताओं ने जल, जंगल और जमीन के नारे के बीच कांग्रेस को गांव-गांव तक पहुंचाया था, जिसके बदले इनमें से कई नेताओं को देश के मंत्रिमंडल में जगह मिली थी तो कई नेताओं को पार्टी के बड़े पदों पर विराजमान होने का अवसर भी मिला था. ये नेता क्षेत्र में मजबूत पकड़ तो रखते ही थे. इसके अलावा दिल्ली दरबार में भी इनकी गजब की दखल थी लेकिन अब संभावनाओं से भरे इस प्रदेश में पार्टी का दोरोमदार गुटबाजी के शिकार इन्हीं नेताओं पर हैं.
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प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय के बीच गुटबाजी लोकसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है. एक अगस्त को ये सतह पर आ गया. जानकारों की मानें को गुटबाजी की वजह टिकट बंटवारा है. भले ही विधानसभा चुनाव में अभी वक्त हो लेकिन टिकटों के लिए फिल्डिंग अभी से हो रही है. असल में अजय कुमार खुद जमशेदपुर पश्चिमी सीट से चुनाव लड़ने की मंशा रखते हैं जबकि वहां से पूर्व विधायक बन्ना गुप्ता हर हाल में किसी और को इस सीट पर उतरने नहीं देना चाहते.