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इंडिया जस्टिस रिपोर्ट: न्याय दिलाने के मामले में तेजी से बढ़ रहा झारखंड

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक आम लोगों को न्याय दिलाने के मामले में झारखंड तेजी से आगे बढ़ रहा है. हालांकि राज्य में महिला जजों की हिस्सेदारी सबसे कम है. इस रिपोर्ट में और क्या खास जानकारी है, ये जानने के लिए आगे पढ़ें.

India Justice Report 2020
India Justice Report 2020

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Published : Jan 30, 2021, 12:26 PM IST

Updated : Jan 30, 2021, 2:57 PM IST

दिल्ली/रांचीः टाटा ट्रस्ट की इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 के मुताबिक झारखंड न्याय दिलाने के मामले में तेजी से आगे बढ़ रहा है. इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2019 में झारखंड 16वें पायदान पर था और एक साल में 8 पायदान की छलांग लगाकर 8वें पायदान पर पहुंच गया है.

टाटा ट्रस्ट की ओर से जारी इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2020 के मुताबिक, महाराष्ट्र के बाद देश में लोगों को न्याय देने के मामले में तमिलनाडु, तेलंगाना, पंजाब और केरल का स्थान है. एक करोड़ से कम आबादी वाले राज्यों में त्रिपुरा, सिक्किम और गोवा अपने नागरिकों को सबसे ज्यादा न्याय दे रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में महिला जजों की संख्या महज 29 प्रतिशत है. हालांकि हाई कोर्ट में महिला जजों का औसत 11 से बढ़कर 13 प्रतिशत, जबकि सहायक अदालतों में 28 से बढ़कर 30 प्रतिशत हो गया है, लेकिन रिपोर्ट की प्रस्तावना लिखने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एमबी लोकुर ने लंबित मुकदमों की संख्या पर चिंता जताई है.

जस्टिस लोकुर के मुताबिक, नेशनल ज्युडिशियल डाटा ग्रिड के हिसाब से 3.84 करोड़ से ज्यादा मुकदमे जिला अदालतों में लंबित है. इसमें सभी हाई कोर्ट में लंबित 47.4 लाख मुकदमे भी जोड़ दें तो यह संख्या 4 करोड़ के पार पहुंच जाती है. उन्होंने इस हालत से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर न्यायिक सुधार की आवश्यकता जताई है.

‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट’ का दूसरा संस्करण पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता से संबंधित अलग-अलग सरकारी आंकड़ों पर आधारित है. टाटा ट्रस्ट ने सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन काउज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट इनिशिएटिव, दक्ष, टीआईएसएस-प्रयास, 'विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी' और 'हाउ इंडिया लिव्स' के साथ तालमेल से यह रैकिंग तैयार की है. लोगों को न्याय देने वाले राज्यों की सूची में पिछले एक साल के दौरान झारखंड काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है और राज्यों की रैंकिंग लिस्ट में 8वें पायदान पर पहुंच गया है.

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इसे लेकर एक पूर्व न्यायाधीश ने कहा है कि न्यायिक सुधार बहुत जरूरी हैं और इसे युद्ध स्तर पर करना होगा. जेल के संबंध में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रति कैदी औसतन खर्च भी करीब 45 फीसदी तक बढ़ा है. आंध्र प्रदेश में वार्षिक तौर पर सबसे ज्यादा 2 लाख 871 रुपये जबकि मेघालय में एक कैदी पर 11,046 रुपये खर्च होता है. रिपोर्ट में न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली- न्यायपालिका, पुलिस, जेल और कानूनी सहायता से संबंधित आंकड़ों को ध्यान में रखा गया है.

Last Updated : Jan 30, 2021, 2:57 PM IST

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