रांचीः चुनाव में जिस काली स्याही को उंगली पर लगाकर आप गर्व का अनुभव करते हैं, उस स्याही का इतिहास बड़ा निराला है. ये अमिट स्याही देश में सिर्फ दो जगहों पर ही बनाई जाती है. इसकी खासियत इसे आम स्याही से अलग बनाती है.
वीडियो में देखिए पूरी जानकारी लोकतंत्र के महापर्व आम चुनाव में हर बालिग नागरिक की जिम्मेदारी बनती है कि वो देश की सरकार चुनने में अपनी भूमिका निभाए और मतदान करे. सोशल मीडिया के दौर में स्याही लगी उंगली की तस्वीर पोस्ट करना आम बात है. स्याही लगी उंगली बताती है कि आपने मतदान किया है. इसके साथ ही ये निशान फर्जी या दोबारा मतदान रोकने में भी सहायक है.
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क्यों इस्तेमाल करते हैं अमिट स्याही
अमिट स्याही के बिना मतदान प्रक्रिया पूरी नहीं होती. मतदान में फर्जीवाड़ा रोकने और किसी मतदाता को दोबारा मतदान करने से रोकने के लिए अमिट स्याही का इस्तेमाल किया जाता है. मतदान केंद्र पर मतदान करने से ठीक पहले मतदाता के बाएं हाथ की तर्जनी उंगली के नाखून पर अमिट स्याही लगाई जाती है. यदि किसी की उंगली में पहले से स्याही का निशान है तो उसे मतदान नहीं करने दिया जाता है. इस तरह चुनाव में फर्जी वोटिंग रोकने में मदद मिलती है. अमिट स्याही के डर से एक बार वोट डालने के बाद लोग दूसरी बार फर्जी वोटिंग की हिम्मत नहीं जुटा पाते. साल 1962 में तीसरे लोक सभा चुनाव के दौरान पहली बार अमिट स्याही का इस्तेमाल किया गया था.
अमिट स्याही की खासियत
- अमिट स्याही में सिल्वर नाइट्रेट होता है , जिसका रासायनिक सूत्र AgNO3 है.
- इस स्याही को बनाने का फॉर्मूला नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया ने तैयार किया है.
- सिल्वर नाइट्रेट युक्त बैगनी स्याही रोशनी के संपर्क में आने के बाद पक्का काले रंग की हो जाती है.
- स्याही लगाने के 1 सेकेंड के अंदर निशान दिखने लगते हैं और 40 सेकेंड में सूख जाता है.
- इस स्याही का निशान उंगली पर करीब 20 दिनों तक रहता है.
- अमिट स्याही पर पानी और कैमिकल का असर नहीं होता.
कितनी स्याही की जरूरत
खबरों के मुताबिक चुनाव आयोग ने 33 करोड़ रुपये मूल्य की 26 लाख अमिट स्याही की बोतलें खरीदने का आदेश दिया है. 2014 के लोकसभा चुनावों में 21.5 लाख बोतलें खरीदी गई थी. मैसूर पेंट्स के प्रबंध निदेशक के अनुसार कंपनी को चुनाव आयोग से 10 मिलीलीटर की 26 लाख बोतलों का ऑर्डर मिला है. उन्होंने इसकी कीमत करीब 33 करोड़ रुपये बताई है.
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कहां बनती है अमिट स्याही
अमिट स्याही देश में सिर्फ दो जगहों पर बनाई जाती है. इसमें सबसे पहला नाम कर्नाटक के मैसूर में स्थित सरकारी क्षेत्र की कंपनी मैसूर पेंट्स एंड वारनिस कंपनी का नाम आता है. इसके अलावा तेलंगाना के हैदराबाद स्थित रायडू लेबोरेटरीज लिमिटेड में भी वोटर इंक बनाई जाती है. चुनाव आयोग, राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला और राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम के सहयोग से अमिट स्याही का निर्माण बेहद गोपनीय तरीके से किया जाता है. मैसूर पेंट्स साल 1962 से अमिट स्याही की आपूर्ति कर रहा है. मैसूर के महाराजा ने साल1937 में इस कंपनी को स्थापित किया था और आजादी के बाद इसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम का दर्जा दे दिया गया.
विदेशों में भी डिमांड
भारत के अलावा कई देशों में अमिट स्याही का इस्तेमाल किया जाता है. मैसूर पेंट्स एंड वारनिस कंपनी दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, थाइलैंड, सिंगापुर और मलेशिया सहित 30 देशों में इस स्याही का निर्यात करती है.