रांचीः एयरपोर्ट और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों में सुरक्षा की बागडोर संभालने वाले सीआईएसएफ (CISF) जवानों के लिए यह श्वान दस्ता काफी मददगार साबित होता है. अपनी सूंघने की शक्ति के बल पर ये डॉग्स कैसे खोजी दल का हिस्सा बनते हैं इसके बारे में आप शायद नहीं जानते होंगे.
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21 दिनों तक डॉग्स के साथ रहते हैं हैंडलर
श्वान दस्ता (Dog Squad) में शामिल होनेवाले खोजी कुत्तों को प्रशिक्षण से पहले 21 दिनों तक हैंडलर यानी प्रशिक्षक (Handler or Instructor) के साथ 24 घंटे रहता है. इस दौरान प्रशिक्षक कुत्तों के स्वभाव को जानने और परखते हैं. कुत्तों का मेरिट-डिमेरीट (Merit-Demerit) का आकलन करने के बाद ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग के भी तौर तरीके अलग-अलग होते हैं. कुत्तों के स्वभाव के अनुरूप उन्हें प्रशिक्षण 06 महीने तक दी जाती है.
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जिस कुत्ते को जो भी प्यारा लगता है, उसी समय में ट्रेनिंग दी जाती है. कोई कुत्ता खेल-खेल में सैलूट मारता है, परेड करने लगता है तो कोई प्यारा भोजन मिलते ही ट्रेनिंग के लिए तैयार हो जाता है. प्रशिक्षण के दौरान ट्रेनर डॉग्स की सूंघने (Snuff) की शक्ति को निखार और धार देते हैं. जिसके बाद इन्हें सुरक्षा के श्वान दस्ता में शामिल किया जाता है.
पलक झपकते ही श्वान दस्ता खोज लेते हैं खोया सामान या विस्फोटक
कड़ी प्रशिक्षण के बाद डॉग्स को खोजी दल में शामिल किया जाता है. ये डॉग्स अपने हैंडलर के साथ इंवेस्टीगेशन (Investigation) में मदद करते हैं. लापता शख्स की पड़ताल हो या फिर खोयी हुई चीजों की तलाश, या फिर बम (Bomb) को खोजना हो. प्रशिक्षण के दौरान मिली ट्रेनिंग की बदौलत ये डॉग्स पलक झपकते ही खोया हुआ सामान ढूंढ निकालते हैं या फिर बम का पता लगाते हैं.
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डॉग स्क्वायड की पासिंग आउट परेड इन्हीं क्वालिटी की वजह से इन डॉग्स की तैनाती एयरपोर्ट (Airport) जैसे संवेदनशील जगहों पर की जाती है. सीआईएसएफ रांची (CISF Ranchi) के पास 74 बेहद ही खतरनाक किस्म के ऐसे डॉग्स हैं, जो देसी और विदेशी नस्ल के हैं. आने वाले समय में ऐसे डॉग्स की ब्रिडिंग (Breeding of Dogs) भी रांची में कराने की सीआईएसएफ की ओर से तैयारी की जा रही है. ताकि इनकी जनसंख्या बढ़ाई जा सके और स्निफर डॉग (Sniffer Dog) को खोजी दस्ता में शामिल किया जा सके.