रांची: राजधानी स्थित दुर्गाबाटी मंदिर में नियम समय और विधान का काफी ख्याल रखा जाता है. समय के साथ यहां पूजा की शुरुआत होती है और समय के साथ ही अनुष्ठान संपन्न भी कराए जाते हैं. इसी कड़ी में दुर्गाबाटी में 9 दिनों तक लगातार मां दुर्गे की आराधना के बाद दसवें दिन यानी विजयादशमी के दिन ही विसर्जन कर दी गई.
कंधे पर उठाकर विदा देने की है परंपरा
यह भी पारंपरिक रिवाजों में से एक है, दशमी को ही यहां पूरे विधि विधान के साथ मां को कंधे पर उठाकर विदा देने की परंपरा है. बताया जाता है कि दुर्गाबाटी मंदिर की मां दुर्गे की प्रतिमा को विसर्जन करने के लिए किसी वाहन या फिर गाड़ी की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती है और न ही किसी को बुलाने की जरूरत पड़ती है. श्रद्धालु खुद-ब-खुद समय और वक्त देखकर यहां पहुंच जाते हैं और मां की प्रतिमा के विसर्जन में पूरे भक्ति के साथ जुट जाते हैं.