झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / city

संसदीय लोकतंत्र में आदिवासी हस्तक्षेप और योगदान के 100 साल पूरे, मंत्री चंपई सोरेन ने पूर्वजों के संघर्षों को किया याद - contribution of tribals in parliamentary democracy

भारतीय विधायिका और संसदीय लोकतंत्र में आदिवासी हस्तक्षेप और योगदान के शताब्दी वर्ष के मौके पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया. झारखंड सरकार के आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन ने सेमिनार में बोलते हुए संसद और विधायिका में आदिवासी प्रतिनिधि के योगदान को याद करते हुए संघर्षों को जारी रखने की बात कही है.

hundred years of contribution of tribals in parliamentary democracy
संसदीय लोकतंत्र में आदिवासी योगदान

By

Published : Oct 27, 2021, 10:55 AM IST

रांची: संसदीय लोकतंत्र में आदिवासी हस्तक्षेप और योगदान के शताब्दी वर्ष (1921-2021)’ पर एकदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया. विधायिका और संसदीय व्यवस्था में आदिवासियों के सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित इस सेमिनार में झारखंड सरकार के आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन भी शामिल हुए.

ये भी पढ़ें- सीएम का तोहफाः साहिबगंज को मेगा ड्रिंकिंग वाटर प्रोजेक्ट की सौगात, कहा- जिला में जल्द दूर होगी हवाई पट्टी की कमी

संसदीय प्रणाली में आदिवासियों के 100 साल

विधायिका और संसदीय लोकतंत्र प्रणाली में आदिवासियों की सहभागिता 100 साल पुरानी है. जब शिक्षा का घोर अभाव था ब्रिटिश हुकूमत थी. उस वक्त विधायिका और संसदीय व्यवस्था में आदिवासी समाज ने अपनी अहम भूमिका निभाई थी. लिहाजा इसको लेकर झारखंडी भाषा, साहित्य, संस्कृति, अखरा और डॉक्टर रामदयाल मुंडा शोध संस्थान जनशताब्दी समारोह मना रहा है.

देखें वीडियो
संघर्षों को जारी रखना होगा

सेमिनार में आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन ने आदिवासियों के संघर्ष को याद किया. उन्होंने बताया कि 1921 में झारखंड के तीन और उत्तरी क्षेत्र असम से 3 आदिवासी प्रतिनिधि मनोनीत हुए थे. इसके बाद कई आदिवासी नाम संसदीय प्रणाली में जुड़ते चले गए. उन्होंने कहा कि कई आदिवासी नेताओं ने बतौर विधायक और सांसद बनकर समाज के लिए अहम योगदान दिया. चंपई सोरेन ने कहा कि जिस तरह ब्रिटिश हुकूमत से आदिवासी समाज के लोगों ने संघर्ष किया, उसे आगे भी जारी रखना होगा.

संघर्ष से मिला अधिकार

आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन ने कहा कि पांचवीं अनुसूची के दायरे में आने वाले राज्यों में आदिवासियों को जो कुछ भी कानूनी प्रावधान संविधान में प्राप्त है, वो विधायिका और संसदीय लोकतंत्र में आदिवासियों की भागीदारी से ही संभव हो पाया है. पेसा कानून हो, वनाधिकार अधिनियम हो या फिर ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल, ये सभी कानूनी प्रावधान विधानसभा और लोकसभा में आदिवासी प्रतिनिधि द्वारा उठाए गए सवाल और संघर्ष के बदौलत मिले हैं. यही वजह है कि विधायिका और संसदीय लोकतंत्र में आदिवासियों की भागीदारी को समाज बड़ी उपलब्धि मान रहा है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details