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पद संभालते ही हेमंत ने पत्थलगड़ी पर लिया बड़ा फैसला, जानें क्या है पत्थलगड़ी और क्यों हुआ था विवाद - Pathalgadi in Jharkhand

झारखंड के खूंटी में पत्थलगड़ी मामले को लेकर नए सीएम हेमंत सोरेन ने अपनी पहली कैबिनेट में बड़ा फैसला लिया है. रघुवर सरकार में हुए पत्थलगड़ी को लेकर हुए आंदोलन में लगभग सैकड़ों लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. जिसे हेमंत सोरन ने वापस ले लिया है. आइए जानते हैं क्या है पत्थलगड़ी और क्यों हुआ था विवाद.

Pathalgadi case in ranchi
पत्थलगड़ी पर बड़ा फैसला

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Published : Dec 30, 2019, 12:32 PM IST

रांचीः झारखंड में महागठबंधन के नेता हेमंत सोरेन ने रविवार को मोरहाबादी के ऐतिहासिक मैदान से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. शपथ लेने के बाद पहली कैबिनेट की बैठक हुई. जिसमें झारखंड आंदोलन और पत्थलगड़ी समर्थकों के ऊपस से केस वापस लेने का फैसला लिया.

पत्थलगड़ी पर बड़ा फैसला

हेमंत सोरेन ने रविवार को दोपहर के 2 बजे शपथ ग्रहण किया और सीएम बनने के चंद घंटों बाद ही उन्होंने कैबिनेट की बैठक बुलाई. हेमंत सोरेन ने अपनी पहली कैबिनेट की बैठक में कई बड़े फैसले लिए. जिनमें सबसे महत्वपूर्ण विषय में सीएनटी-एसपीटी एक्ट के संशोधन के खिलाफ आवाज उठाने वाले आंदोलनकारियों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने का निर्णय लिया गया. इसके साथ ही राजधानी रांची से सटे खूंटी जिले में पत्थलगड़ी समर्थकों के खिलाफ दर्ज मामले भी वापस लिए जाने की बात कही.

फिलहाल, देशभर में ये चर्चा है कि सीएम बनते ही हेमंत सोरेन ने सबसे पहले पत्थलगड़ी और CNT-SPT संशोधन मामले को क्यों उठाया? बता दें कि इससे पहले रघुवर सरकार में भी यह मामला काफी गर्माया हुआ था. मार्च 2018 में पत्थलगड़ी और सीएनी/एसपीटी को लेकर राज्य अस्त-व्यस्त रहा था. खूंटी और आसपास के इलाके में इसे लेकर वहां के आदिवासियों में काफी आक्रोश देखा गया था. जिसकी चर्चा देश और विदेशों तक थी.

रांची से सटे खूंटी इलाका मुंडा आदिवासी बहुल क्षेत्र मात्र माना जाता है. पत्थलगड़ी को लेकर रघुवर सरकार में सैकड़ों लोगों पर केस दर्ज किया गया था. इस दौरान पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच जमकर झड़प भी हुई थी. इस आंदोलन का खामियाजा झारखंड विधनसभा चुनाव में बीजेपी को भुगतना पड़ा.

पत्थलगड़ी

बात करते हैं कि यह पत्थलगड़ी है क्या... पत्थलगड़ी नाम से ही समझ में आता है कि पत्थल गाड़ने का सिलसिला जो कई सालों से चलता आ रहा है. जिसने एक आंदोलन का रूप ले लिया था. पत्थलगड़ी आदिवासी समुदाय की एक पुरानी परंपरा है (बड़ा शिलालेख गाड़ने की परंपरा) जिसमें पूरे विधि-विधान के साथ बड़े पत्थर को जमीन में गाड़ा जाता है. आदिवासी इसे अपनी वंशावली और पुरखों की याद में संजो कर रखते हैं. इनमें मौजा, सीमाना, ग्रामसभा और अधिकारी की जानकतारी लिखी हुई होती है. कई जगहों पर जमीन का सीमांकन करने के लिए भी पत्थलगड़ी की जाती है और अंग्रेजों या फिर दुश्मनों के खिलाफ लड़कर शहीद हुए सपूतों की याद में भी पत्थलगड़ी की जाती रही है.

पत्थलगड़ी भी कई प्रकार के होते है.

  • पत्थर स्मारक- ये खड़े और अकेले होते हैं
  • मृतक स्मारक पत्थर- ये चौकोर और टेबलनुमा होती है
  • कतारनुमा स्मारक- ये एक लाइन से या फिर समान रुप से कतारों में होते हैं
  • अर्द्धवृताकार स्मारक- ये अर्द्धवृताकार होते हैं
  • वृताकार स्मारक- ये पूरी तरह से गोल होते हैं (जैसे महाराष्ट्र के नागपुर स्थित जूनापाणी के शीलावर्त)
  • खगोलीय स्मारक- ये अर्द्धवृताकार, वृताकार, ज्यामितिक और टी-आकार के होते हैं. जैसे पंकरी बरवाडीह (झारखंड) के पत्थर स्मारक

मुंडा आदिवासियों के अनुसार पत्थलगड़ी 4 तरह के होते हैं

  1. ससनदिरी
  2. बुरूदिरी और बिरदिरी
  3. टाइडिदिरि
  4. हुकुमदिरी
  • ससनदिरीः यह दो मुंडारी शब्दों से बना है, ससन और दिरी. ससन का अर्थ मसान अथवा कब्रगाह है जबकि दिरी का मतलब पत्थर होता है. ससनदिरी में मृतकों को दफनाया जाता और उनकी कब्र पर पत्थर रखे जाते हैं. मृतकों की याद में रखे जाने वाले पत्थरों का आकार चौकोर और टेबलनुमा होता है.
  • बुरूदिरी और बिरदिरीः मुंडारी भाषा में बुरू का अर्थ पहाड़ और बिर का अर्थ जंगल होता है. इस तरह के पत्थर स्मारक यानी पत्थलगड़ी क्षेत्रों, बसाहटों और गांवों के सीमांकन की सूचना के लिए की जाती है.
  • टाइडिदिरी: टाइडी राजनीतिक अर्थ को व्यक्त करता है. सामाजिक-राजनीतिक निर्णयों और सूचनाओं की सार्वजनिक घोषणा के रूप में जो पत्थर स्मारक खड़े किए जाते हैं उन्हें टाइडिदिरी पत्थलगड़ी कहा जाता है.
  • हुकुमदिरीः हुकुम अर्थात दिशानिर्देश या आदेश, जब मुंडा आदिवासी समाज कोई नया सामाजिक-राजनीतिक या सांस्कृतिक फैसला लेता है. तब उसकी उद्घोषणा के लिए इसकी स्थापना की जाती है.
    स्कूल में पढ़ाई

पत्थरगड़ी को लेकर आदिवासियों की मानसिकता
हमने अबतक आपको यह बताया कि पत्थलगड़ी क्या है और कितने प्रकार के होते हैं, अब जानते है कि इसे लेकर आंदोलन क्यों शुरू हुआ. दरअसल, राजधानी रांची से सटे खूंटी में मुंडा आदिवासी रहते हैं. वो भारत के संविधान को मानने से इनकार करते थे. हम अपनी पढ़ाई जहां क से कमल, ख से खरगोश से शुरू करते थे, तो वहीं खूंटी के एक स्कूल में बच्चों को क- कानून, ख-खदान, व-विदेशी जैसी पढ़ने के ज्ञान दिए जा रहे थे. जो कई लोगों को वाजिब लगता है तो कई लोगों को गलत लगता है.
वहां से ऐसे मामले सामने आने पर जब इसके बारे में पूछताछ की गयी, तो उनका उत्तर था, जब 52 पढ़े-लिखे लोगों में केवल 2 लोगों को नौकरी मिलती है, तो ऐसे पढ़े होने का क्या मतलब है. इसलिए हम क से कानून पढ़ेंगे.

मुंडा समाज का आंदोलन

पत्थलगड़ी को लेकर क्यों हुआ विवाद
वैसे तो पत्थलगड़ी को आदिवासी समुदाय की परंपरा मानी जा रही है, जिसे सभी मानते भी थे कि यह किसी की याद में की जा रही है, लेकिन मामला तब उभरकर सामने आया जब जमीन सीमांकन करने की बात शुरू की गई. उस दौरान कई गांवों का सीमांकन किया गया. गांवों के सीमांकन करने का मतलब था कि उस गांव में कोई भी दिकू यानी कोई भी बाहरी लोग नहीं जा सकते. बाहरी लोगों को दिकू कहा जाता है जिनमें प्रधानमंत्री भी शामिल है. उनका कहना है कि उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है. न ही वो किसी कानून को मानते हैं न कोई स्कूल, यूनिवर्सिटी.

अब सवाल उठता है कि अचानक ये पत्थलगड़ी मामला क्यों हुआ. बता दें कि फरवरी 2018 में कोरिया की कंपनी वहां एक काम शुरू करने वाली थी. जिसके लिए भारत सरकार ने वहां जमीन दिखाई और साफ-सफाई कर उन्हें सौंपना चाहा, लेकिन वहीं के ग्रामीणों ने उस गांव का सीमांकन कर दिया. जिसके बाद कोरियन कंपनी उनसे पीछे हट गई. बात यहीं खत्म नहीं होती है- मार्च 2018 में पुलिस को उस इलाके में अफीम की खेती की सूचना मिली. जिसे नष्ट करने पहुंची पुलिस का विरोध करने के लिए ग्रामीणों ने हाथों में तीर धनुष लेकर खड़े हो गए. इस दौरान 500 जवानों को ग्रामीणों ने 24 घंटों के लिए बंधक बना लिया था.

नई सरकार ने वापस लिया मुकदमा
खबरों के अनुसार, माना जाता है कि इसके पीछे किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने की योजना बनाई जा रही थी. खूंटी पुलिस की माने तो पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े कुल 19 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 172 लोगों को आरोपी बनाया गया है. अब हेमंत सोरेन के ऐलान के बाद इन आरोपियों पर दर्ज मुकदमे वापस ले लिए जाएंगे. खूंटी ऐसा जिला है जहां पत्थलड़ी आंदोलन का बड़े पैमाने पर असर देखा गया.

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