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कोर्ट फीस बढ़ोतरी मामलाः बिल पर पुनर्विचार के लिए सरकार को निर्देशित करेगा राजभवन, HC में भी है मामला

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Published : Sep 28, 2022, 2:25 PM IST

झारखंड में कोर्ट फीस बढ़ाने के मामले में राज्यपाल रमेश बैस(governor ramesh bais) ने सरकार को फिर विचार करने के लिए निर्देशित करने का फैसला लिया है. उनका मानना है कि आदिवासी हित में इस मामले में पुनर्विचार जरूरी है.

GOVERNOR TO INTERVENE IN COURT FEE HIKE MATTER
GOVERNOR TO INTERVENE IN COURT FEE HIKE MATTER

रांचीः झारखंड में कोर्ट फीस बढ़ाए जाने के बाद उपजे विवाद(GOVERNOR TO INTERVENE IN COURT FEE HIKE MATTER ) और इसकी गंभीरता को देखते हुए राज्यपाल ने बिल पर दोबारा विचार करने के लिए राज्य सरकार को निर्देशित करने का फैसला लिया है. राजभवन की ओर से बताया गया कि कोर्ट फीस (झारखंड संशोधन अधिनियम) को 22 दिसंबर 2021 को विधानसभा से पारित कराया गया था. इसपर 11 फरवरी 2022 को राज्यपाल का अनुमोदन प्राप्त हुआ था. लेकिन गजट प्रकाशित होने के बाद से कोर्ट फीस को लेकर जबरदस्त विरोध देखने को मिल रहा है.

राजभवन के पास भी कई आवेदन आये. 22 जुलाई 2022 को झारखंड स्टेट बार काउंसिल ने भी राजभवन को आवेदन दिया. आग्रह किया गया कि राज्यपाल इस मामले में राज्य सरकार को कोर्ट फीस में हुई बढ़ोतरी को वापस लेने को कहें. राजभवन का मानना है कि आदिवासी समाज के हित को देखते हुए इस पर पुनर्विचार करना जरूरी है.

दरअसल, कोर्ट फीस से जुड़े संशोधन अधिनियम के पारित होने के बाद लोगों के लिए न्याय की लड़ाई महंगी हो गई है. इसका सीधा असर गरीबों पर पड़ेगा. इस संशोधन के बाद हाईकोर्ट में वकालतनामा पर पांच रू की कोर्ट फीस अब 50 रू हो गई है. निचली अदालतों में वकालतनामा फीस को 5 रू. से बढ़ाकर 30 रू. कर दिया गया है. विवाद संबंधित सूट फाइल करने पर 50 हजार की जगह 3 लाख रू. कोर्ट फीस लग रही है.

हाईकोर्ट में पीआईएल दायर करने पर 250 रू. की जगह एक हजार रू लग रहे हैं. शपथ पत्र दायर करने का दर भी 5 रू से बढ़ाकर 20 और 30 रू. हो गया है. इसके विरोध में झारखंड स्टेट बार काउंसिल ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. काउंसिल की दलील है कि सलाह मशविरा किए बगैर कोर्ट फीस में बढ़ोतरी करना मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. वकालतनामा पर फीस बढ़ाने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है.

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