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राज्यपाल ने जारी किया पोस्टल विभाग का लिफाफा, सोहराई और कोहबर चित्रकला को नयी पहचान - राज्यपाल रमेश बैस

रांची में राज्यपाल रमेश बैस ने सोहराई और कोहबर चित्रकला पर पोस्टल विभाग का लिफाफा का लोकार्पण किया. इस मौके पर डाक विभाग के कई अधिकारी मौजूद रहे.

Governor released postal envelope on Sohrai and Kohbar painting in Ranchi
Governor released postal envelope on Sohrai and Kohbar painting in Ranchi

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Published : Sep 17, 2021, 9:41 PM IST

रांचीः झारखंड की पारंपरिक कला को देश-दुनिया तक पहुंचाने के उद्देश्य से राज्यपाल रमेश बैस ने शुक्रवार को डाक विभाग के सोहराई एवं कोहबर चित्रकला पर जारी एक विशेष लिफाफा का लोकार्पण किया. इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि इससे झारखंड की कला संस्कृति पोस्टल लिफाफा के जरिए देशभर में घर-घर पहुंचेगा.

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राजभवन में आयोजित कार्यक्रम में राज्यपाल के अपर मुख्य सचिव शैलेश कुमार सिंह, झारखंड के मुख्य डाक महाध्यक्ष जलेश्वर कहंर, डाक महाध्यक्ष झारखंड संजीव रंजन, झारखंड डाक सेवाएं निदेशक सत्यकाम समेत कई लोग उपस्थित रहे.

राज्यपाल ने जारी किया पोस्टल विभाग का लिफाफा


क्या है सोहराई और कोहबर कला
झारखंड की पारंपरिक चित्रकलाओं में कोहबर एवं सोहराईं रही है. कोहबर शब्द दो शब्दों 'कोह एवं 'वर' से बना है. कोह या खोह का अर्थ गुफा होता है, वर 'दूल्हे' को कहा जाता है. अत: कोहबर का अर्थ दूल्हे का कमरा है. कोहबर आज भी इसी नाम से प्रचलित है. यह चित्रकला आज भी मिथिला क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है, इसके अलावा झारखंड के कई जिलों में इसे विशेष रुप से बनाया जाता है.

सोहराई और कोहबर पेंटिंग का पोस्टल लिफाफा का लोकार्पण
राज्यपाल ने जारी किया पोस्टल विभाग का लिफाफा

आज की कोहबर कला झारखंड में पायी जाने वाले सदियों पुराने गुफा चित्रों का ही आधुनिक रूप है. हजारीबाग को कोहबर चित्रकला के चितेरे मुख्यत: आदिवासी हैं. मिट्टी की दीवारों पर प्राकृतिक चित्रण पूरी तरह से महिलाओं द्वारा किया गया है. यह चित्रण बहुत ही कलात्मक और इतना स्पष्ट होता है कि यह पढ़ा जा सकता है. कोहबर के चित्रों का विषय सामान्यत: प्रजनन, स्त्री-पुरुष संबंध, जादू-टोना होता है, जिनका प्रतिनिधित्व पतियों, पशु-पक्षियों, टोने-टोटके के ऐसे प्रतीक चिन्हों द्वारा किया जाता है, जो वंश वृद्धि के लिए प्रचलित एवं मान्य हैं. जैसे बांस, हाथी, कछुआ, मछली, मोर, सांप, कमल या अन्य फूल आदि है. इनके अलावा शिव की विभिन्न आकृतियों और मानव आकृतियों का प्रयोग भी होता है.

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सोहराई पर्व झारखंड में दीवाली के तुरंत बाद फसल कटने के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर आदिवासी अपने घर की दीवारों पर चित्र बनाते हैं. सोहराई के दिन गांव के लोग पशुओं को सुबह जंगल को और ले जाते है और दोपहर में उनका अपने द्वार पर स्वागत करते हैं. इस क्रम में वो अपने घर के द्वार पर 'के अरिपन' का चित्रण करते हैं. अरिपन का चित्रण भूमि पर किया जाता है, जमीन को साफ कर उस पर गोबर/मिट्टी का लेप लगाया जाता है. फिर चावल के आटे से बने घोल से 'अरिपन' का चित्रण किया जाता है. ज्यामितीय आकार में बने इन चित्रों पर चलकर पशु घर में प्रवेश करते हैं. यह चित्रण भी घर की महिलाओं के द्वारा ही किया जाता है.

सोहराई और कोहबर चित्रकला का डाक लिफाफा

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