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18 मई को खत्म हो रहा राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का कार्यकाल, सरल जीवनशैली और कड़े फैसले लेना खास पहचान

18 मई 2020 को सूबे की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का कार्यकाल खत्म हो रहा है. ऐसे में चर्चा है कि गर्वनर के रूप में उन्हें दूसरा मौका दिया जा सकता है. हालांकि इस पर निर्णय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ही लेंगे. बता दें कि द्रौपदी मुर्मू अनुसूचित जनजाति से जुड़ी देश की पहली महिला राज्यपाल हैं और राज्य की पहली महिला गवर्नर भी हैं.

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द्रौपदी मुर्मू, राज्यपाल

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Published : May 13, 2020, 4:16 PM IST

रांची: 18 मई 2015 को प्रदेश के नौवें गवर्नर के रूप में नियुक्त हुई द्रौपदी मुर्मू अपना कार्यकाल पूरा करने वाली पहली गवर्नर होंगी. द्रौपदी मुर्मू अनुसूचित जनजाति से जुड़ी देश की पहली महिला राज्यपाल हैं और राज्य की पहली महिला गवर्नर भी हैं. पड़ोसी राज्य उड़ीसा के मयूरभंज की निवासी द्रौपदी मुर्मू 1997 में राजनीति में आई और ओडिशा के रायरंगपुर में भाजपा की उपाध्यक्ष बनाई गई थी. इतना ही नहीं उन्होंने रायरंगपुर विधानसभा का दो बार प्रतिनिधित्व भी किया. इसके साथ ही उड़ीसा सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं, अपनी सादगी और सरल जीवनशैली के लिए मुर्मू राज्य भर में जानी जाती हैं. आधिकारिक सूत्रों की मानें तो इनके कार्यकाल को एक्सटेंशन दिया जा सकता है, हालांकि इस पर निर्णय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ही लेंगे.

पीएम मोदी के साथ चर्चा करती राज्यपाल
सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के प्रस्ताव वाली फाइल लौटकर चर्चा में आई थीं मुर्मूगवर्नर द्रौपदी मुर्मू पूरे देश में चर्चा में तब आई जब राज्य की तत्कालीन सरकार ने अंग्रेजों के शासनकाल में बने छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट के कुछ प्रावधानों में संशोधन से जुड़े प्रस्ताव उनकी सहमति के लिए भेजा था. इस मामले की गूंज देश के राष्ट्रपति भवन तक गई, जहां तत्कालीन विपक्ष में गवर्नर को इन कानूनों के प्रावधानों में संशोधन नहीं करने की मांग रखी. गवर्नर मुर्मू ने राज्यपाल की अनुशंसा पर सहमति नहीं दी और दोनों एक्ट के प्रावधानों में संशोधन नहीं हो पाया. दरअसल, उन प्रावधानों में संशोधन के बाद अनुसूचित जनजाति के स्वामित्व वाली जमीनों की खरीद-बिक्री काफी हद तक आसान हो सकती थी.फिफ्थ शेड्यूल में वेलफेयर कार्यक्रमों को लेकर की चर्चापेसा कानून के तहत पांचवी अनुसूची में पड़नेवाले इलाकों में चल रहे कल्याण कार्यों को लेकर भी गवर्नर ने पहल की थी. चूंकि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार उन इलाकों की कस्टोडियन सीधा गवर्नर होते हैं. ऐसी स्थिति में गवर्नर ने उन इलाकों में चल रहे कल्याण कामों की समीक्षा भी की और अधिकारियों को हिदायत भी दी थी.


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पत्थलगड़ी विवाद पर भी की थी पहल
जब पूरे देश में झारखंड में चल रहे पत्थलगड़ी आंदोलन की हवा चल रही थी, वैसे दौर में गवर्नर मुर्मू ने भी अपनी तरफ से प्रयास किए थे. राजभवन में बाकायदा खूंटी और उसके आसपास के इलाकों के ग्राम प्रधानों को बुलाकर उनसे डिस्कशन भी किया गया. गवर्नर हाउस में आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में बसे उन इलाकों के लोग और गांव के पारंपरिक प्रधान शामिल हुए. उन्होंने अपनी भावना से गवर्नर को अवगत कराया.

लॉ एंड ऑर्डर मामले पर डीजीपी को किया था सीधा तलब

अपनी भूमिका को स्पष्ट करते हुए गवर्नर मुर्मू ने राजधानी में बढ़ते अपराधिक घटनाओं पर चिंता व्यक्त की थी. इस मामले में सीधा तत्कालीन डीजीपी को राजभवन तलब किया था. राजधानी में युवती के साथ हुए कथित दुष्कर्म के बाद गवर्नर ने सीधे तौर पर डीजीपी को बुलाकर प्रदेश की लॉ एंड ऑर्डर स्थिति को संभालने की भी हिदायत दी थी.

मुर्मू के पहले ये रहे हैं झारखंड के राज्यपाल

  • प्रभात कुमार नवंबर 15, 2000 से फरवरी 3, 2002 तक
  • वीसी पांडे फरवरी 4, 2002 से जुलाई 14, 2002 तक
  • एम रामा जोइस जुलाई 15, 2002 से जून 11, 2003 तक
  • वेद मारवाह जून 12, 2003 से दिसंबर 9, 2004 तक
  • सैयद सिब्ते रजी दिसंबर 10, 2004 से जुलाई 23, 2009 तक
  • के शंकरनारायणन जुलाई 26, 2009 से जनवरी 21, 2010 तक
  • एम ओ एच फारुख जनवरी 22, 2010 से सितंबर 3, 2011 तक
  • सैयद अहमद सितंबर 4, 2011 से मई 17, 2015 तक

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