झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / city

ऐसे साधारण से असाधारण बन गये बिरसा मुंडा, राज्यपाल-सीएम समेत कई नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

भगवान बिरसा मुंडा के शहादत दिवस पर कोकर, रांची स्थित धरती आबा बिरसा मुंडा की समाधि स्थल पर राज्यपाल रमेश बैस और मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने श्रद्धासुमन अर्पित किया.

भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि
भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि

By

Published : Jun 9, 2022, 11:55 AM IST

Updated : Jun 9, 2022, 5:36 PM IST

रांची: भगवान बिरसा मुंडा के शहादत दिवस पर बिरसा चौक स्थित भगवान बिरसा के आदमकद मूर्ति पर भी राज्यपाल रमेश बैस और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा श्रद्धासुमन अर्पित की गई. आज के दिन को बेहद ही सादगी और यादगार दिन बताते हुए राज्यपाल रमेश बैस और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंड के इस सपूत को याद करते हुए नमन किया. इस मौके पर नवनिर्वाचित राज्यसभा सांसद महुआ माजी, आजसू प्रमुख सुदेश महतो सहित राजनीतिक सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लोगों ने भगवान बिरसा को श्रद्धांजलि अर्पित कर याद किया.

ये भी पढ़ें-धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि, अंग्रेजों के खिलाफ बजाया था आंदोलन का बिगुल

कांग्रेस कार्यालय में भी कार्यक्रम: झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के तत्वावधान में धरती आबा भगवान बिरसा मुण्डा की पुण्यतिथि को शहादत दिवस के रूप में आज कांग्रेस मुख्यालय में मनाया गया. इस अवसर पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर एवं स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के साथ प्रदेश कांग्रेसजनों ने भी भगवान बिरसा मुंडा की चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किया. दोनों नेताओं के साथ साथ बड़ी संख्या में कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कोकर स्थित भगवान बिरसा मुंडा समाधि स्थल पर जाकर पुष्पांजलि की.

देखें पूरी खबर

साधारण से असाधारण बन गए बिरसा मुंडा: बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को खूंटी के उलीहातू में हुआ था. इनके पिता सुगना मुंडा, एक खेतिहर मजदूर और उनकी माता कर्मी हाटू थी. चार भाई बहनों में से एक बिरसा मुंडा की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई. संघर्ष के बीच जीवन की गाड़ी को चलाने में लगे बिरसा मुंडा का एक बड़ा भाई, कोमता मुंडा और दो बड़ी बहनें, डस्कीर और चंपा थी.

होश संभालते ही सरदार विरोधी गतिविधि में बिरसा मुंडा ने कदम रखा जो उनके जीवन की पहली लड़ाई थी. 1886 से 1890 तक बिरसा मुंडा का परिवार चाईबासा में रहता था, जो सरदार विरोधी गतिविधियों के प्रभाव में आया था. वह भी इस गतिविधियों से प्रभावित थे और सरकार विरोधी आंदोलन को समर्थन देने के लिए प्रोत्साहित किया गया था. इसके बाद बिरसा मुंडा एक सफल नेता के रूप में उभरे. उनके नेतृत्व में, आदिवासी आंदोलनों ने गति पकड़ी और अंग्रेजों के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए गए.

आंदोलन ने दिखाया कि आदिवासी मिट्टी के असली मालिक थे और बिचौलियों और अंग्रेजों को खदेड़ने की भी मांग की. 3 मार्च 1900 को बिरसा को आदिवासी छापामार सेना के साथ चक्रधरपुर के मकोपाई वन में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया. 9 जून 1900 को रांची जेल में 25 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई, जहां उन्हें कैद कर लिया गया था. ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की थी कि उनकी मृत्यु हैजा से हुई हैं, हालांकि सरकार ने बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखाए. कहा जाता है कि उन्हें जहर दिया गया था. इस तरह से अपनी धरती को बचाने के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाले इस युवा क्रांतिकारी का शहादत आज भी लोगों के जुबान पर है.

Last Updated : Jun 9, 2022, 5:36 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details