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प्रवासी मजदूरों को सरकारी योजनाओं में मिलेगा काम, सरकार तैयार कर रही ब्लूप्रिंट

लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों की वापसी के बाद रोजगार मुहैया कराने के मकसद से झारखंड सरकार शहरी और ग्रामीण स्तर पर अलग-अलग योजनाएं बना रही है. सूत्रों की माने तो इसके लिए बकायदा ग्रामीण विकास विभाग, शहरी विकास और आवास विभाग की तरफ से तैयारी की जा रही है.

government preparing blue print for employment
रोजगार के लिए ब्लू प्रिंट तैयार कर रही सरकार

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Published : May 9, 2020, 8:23 PM IST

रांचीः वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों की वापसी के बाद रोजगार मुहैया कराने के मकसद से झारखंड सरकार शहरी और ग्रामीण स्तर पर अलग-अलग योजनाएं बना रही है. आधिकारिक सूत्रों का यकीन करें तो इसके लिए बकायदा ग्रामीण विकास विभाग, शहरी विकास और आवास विभाग की तरफ से तैयारी की जा रही है. एक तरफ जहां ग्रामीण विकास विभाग ने तीन नई योजनाओं की शुरुआत की है, जिसके तहत ग्रामीण इलाकों में लौट रहे प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की कवायद होगी.

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वहीं, शहरी विकास और आवास विभाग की तरफ से होने वाले निर्माण कार्यों में शहरी इलाकों में उन मजदूरों को रोजगार मुहैया कराकर उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ किया जाएगा. बता दें ग्रामीण विकास विभाग की योजनाएं मनरेगा से लिंक करके चलाई जाएगी. जिसके तहत 5000 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे. वहीं, आवास विभाग फिलहाल इस बाबत प्रस्ताव तैयार कर रहा है.

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लौटनेवालों में ज्यादातर हैं कुशल श्रमिक

झारखंड वापस लौट रहे श्रमिकों में बड़ी संख्या कुशल श्रमिकों की है. ज्यादातर श्रमिक वैसे हैं जो महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात जैसे राज्यों में लगे अलग-अलग उद्योगों में काम कर रहे थे. अगर श्रेणी वार उन्हें देखें तो उनमें कई ऐसे भी हैं जिनकी कमाई उन इलाकों में प्रतिदिन 500 से 1000 रुपये तक रही है. ऐसे में राज्य सरकार उन्हें उनके घर में ही रोजगार देकर इस आर्थिक खाई को कम करने की कोशिश में लगी है. राज्य सरकार ने केंद्र को इस बाबत प्रस्ताव भी भेजा है कि उन श्रमिकों को कम से कम प्रतिदिन 300 रुपये का मेहनताना मिले.

क्या कहते हैं ग्रामीण विकास मंत्री

इस बाबत राज्य के ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री आलमगीर आलम साफ कहते हैं कि झारखंड में न्यूनतम 272 रुपये प्रतिदिन श्रमिकों को दिया जा रहा है. ऐसे में लौट रहे श्रमिकों का समायोजन किया जाना है, जो 500 से 1000 रुपए हर दिन उन इलाकों में कमा रहे थे. इस परिस्थिति में केंद्र से यह मांग रखी गई है कि न्यूनतम 300 रूपये प्रतिदिन मजदूरी कर दी जाए. इसके लिए केंद्र को लिखा भी गया है उन्होंने कहा कि एक श्रमिक को 272 रुपये देकर दिन भर काम कराना मुश्किल है. इसलिए अभी तय किया जा रहा है कि किस तरह वीकली पेमेंट या फिर 3 दिन में पेमेंट की व्यवस्था हो ताकि मजदूरों के सामने आर्थिक संकट नहीं हो. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि कुछ भी हो राज्य सरकार उन मजदूरों को रोजगार मुहैया कराने के लिए हर संभव कदम उठाएगी.

शहरी क्षेत्र में रोजगार मुहैया कराने के लिए ब्लू प्रिंट तैयार

झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे ने दावा किया कि राज्य सरकार मजदूरों को वापस बुला रही है. उन्हें सम्मान पूर्वक उनके घरों में काम दिया जाए इसके लिए सरकार पूरी कोशिश कर रही है. ऐसे में शहरी इलाकों में भी लौट रहे मजदूरों को यहां काम मिले इसके लिए भी ब्लू प्रिंट तैयार है. हालांकि, उन्होंने कहा कि सरकार जल्द ही खुलासा करेगी. केंद्रीय प्रवक्ता ने कहा कि यह तय है कि उन मजदूरों को काम मिलेगा ताकि वो बेरोजगार नहीं रहे. आधिकारिक सूत्रों ने दावा किया कि उन मजदूरों को सरकार ने निर्माण कार्यों में लगाया जाएगा. उन मजदूरों को प्रधानमंत्री आवास योजना समेत अन्य वैसी निर्माण की योजनाओं में जोड़ा जाएगा जिनका ऑपरेशनल एरिया शहरी इलाके हैं.

कुछ ऐसे हैं सरकारी आंकड़े

सरकार के आंकड़ों पर गौर करें तो झारखंड वापस लौटने वालों में 5.50 लाख से अधिक लोगों ने संबंधित पोर्टल में रजिस्ट्रेशन कराया है. हालांकि उसमें वैसे लोग भी हैं जो बाहर पढ़ने या इलाज कराने गए थें, लेकिन बड़ी संख्या मजदूरों की है. हालांकि ग्रामीण विकास विभाग की प्लानिंग के अनुसार मनरेगा के तहत शुरू की जानेवाली स्कीमों को प्राथमिकता दी जाएगी.

4 मई को हुई ये स्कीम लांच

राज्य सरकार ने 4 मई को ग्रामीण विकास विभाग की तीन योजना लांच की है जिनमें बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना और वीर शहीद पोटो हो खेल विकास योजना शामिल है. इन योजनाओं के मार्फत 25 करोड़ मानव दिवस का सृजन होने की संभावना है. साथ ही मजदूरों के खाते में लगभग 5000 करोड़ रुपये का भुगतान होगा. अगले 5 साल में इन योजनाओं के ऊपर लगभग 20 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है.

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