रांची:झारखंड प्राकृतिक रूप से संमृद्ध राज्य है. यहां खनिज संपदा की भरमार है. लेकिन इसका फायद राज्य की जनता को नहीं मिल रहा है. बल्कि अवैध खनन के जरिए राज्य की संपत्ति का दोहन हो रहा है. इस मामले में बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा है कि 40 साल हो गए लेकिन अब भी कुछ नहीं बदला है. अवैध खनन बदस्तूर जारी है.
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झारखंड बने हुए 22 साल हो गए. राज्य जब बिहार से अलग हुआ था तो यहां के लोगों को विकास की काफी उम्मीद थी. लेकिन वह उम्मीद अब धूमिल होती जा रही है. अलग राज्य बनने के बाद से अब तक बालू, पत्थर और कोयले के अवैध कारोबार पर रोक नहीं लगाई जा सकती है. इसमें सत्ता में बैठे लोगों के साथ साथ भ्रष्ट अधिकारियों की भी बड़ी भूमिका होने की आशंका जताई जा रही है. अवैध माइनिंग पर नकेल कसने को लेकर मुख्यमंत्री की ओर से सख्त निर्देश दिए गए. इस निर्देश के बाद पाकुड़ और साहिबगंज में कुछ कार्रवाई भी हुई है लेकिन वह नाकाफी साबित हुए हैं.
पूर्व डीजीपी अभयानंद का पोस्ट साहिबगंज और पाकुड़ में इसी अवैध खनन को लेकर बिहार बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा है कि 40 साल हो गए लेकिन अब भी कुछ नहीं बदला है.
उन्होंने लिखा 'मेरा पदस्थापन संयुक्त जिले के पुलिस अधीक्षक के रूप में हुआ था. झारखंड की स्थापना तब नहीं हुई थी. बिहार अविभाजित था. पदभार ग्रहण के 24 घंटे के अंदर ही समझ आ गया था कि अगर पुलिस की पारंपरिक कार्यशैली पर चलता रहा तो इस जिले में दिन-रात सोने के अतिरिक्त कोई काम नहीं रहेगा. गैर-कानूनी खनन बहुत बड़े पैमाने पर चल रहा था. इस कार्रवाई में राज्य और केंद्र सरकार, दोनों की संलिप्तता थी. पाकुर के ग्रेनाइट चिप्स विश्व स्तर के हैं जिनकी मांग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग होती है. रेल से इनकी ढुलाई के दौरान वजन में हेरा-फेरी कर, राज्य के बाहर बड़े पैमाने पर भेजा जाता था. यह काम निरंतर चलता रहा.'
अभ्यानंद ने लिखा कि 'मैंने, अपनी कार्यशैली से, आर्थिक अपराध में मेरी विशेष रुचि के संकेत दे दिए थे. लोगों ने रेल के द्वारा पाकुर ग्रेनाइट के अवैध ढुलाई की सूचना मुझ तक पहुंचा दी. तालझारी रेल स्टेशन पर स्वयं औचक रूप से पहुंच, 'डीले मेमो' देकर, मैंने ग्रेनाइट से लदी एक रेक को रुकवाया और रेल के पदाधिकारयों को 'वे ब्रिज' पर रेक का वजन करने को कहा. पहले तो मुझे समझाने की कोशिश की गई कि यह मेरे कार्य क्षेत्र के बाहर है तो मुझे बताना पड़ा कि मैं जो भी कर रहा हूं, वह पुलिस की प्रदत्त शक्तियों के अंतर्गत ही है. मेरी प्रतिबद्धता को देख कर वजन कराया गया. जब आंकड़ों के आधार पर गणना की गई तो सरकार के विभिन्न राजस्वय यानी रॉयल्टी, सेस, बिक्री-कर और रेल का किराया कुल जोड़, उस जमाने में कई लाख का था. मैं हतप्रभ था कि ऐसे कितने रेक इस छोटे से जिले से प्रतिदिन ग्रेनाइट लेकर निकलते हैं तो सरकार के राजस्व की हानि करोड़ों में होती होगी'
बिहार के पूर्व डीजीपी ने अपने सोशल मीडिया वॉल पर लिखा 'इस अपराध को न देख कर मैं 'मुर्गी चोरी' के अपराध में अपना समय लगा रहा हूं. 5 महीने में 'हाय-तौबा' मच गया. बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल के उस समय के प्रभावशाली राजनीतिज्ञ परेशान हुए और मेरा तबादला IB दिल्ली में हो गया. जिंदगी के इस पड़ाव से जब देखता हूं तो लगता है कि चालीस वर्षों में कुछ भी नहीं बदला. बदले तो केवल राजनीतिक पार्टी और उनके नेताओं और नौकरशाहों के नाम. भ्रष्टाचार का स्वरुप और उस बिमारी से पीड़ित जनता के हालात में कोई बदलाव नहीं आया. समय की निरंतरता शायद इसी को कहते हैं.