रांची: 31 मार्च 2020 का दिन झारखंड के लिए हमेशा ही याद रखने वाला रहेगा, क्योंकि इसी दिन झारखंड में वैश्विक महामारी कोरोना के पहले मरीज की पुष्टि हुई थी. 31 मार्च 2020 को दोपहर 2:30 बजे के करीब यह सूचना आई कि हिंदपीढ़ी के इलाके में एक विदेशी मूल की महिला कोरोना संक्रमित पाई गई है. जिसे फिलहाल खेलगांव के क्वॉरेंटाइन सेंटर में रखा गया है. यह सूचना आग की तरह पूरे राज्य में फैल गई और लोग के मन में कोरोना संक्रमण का खौफ आ गया.
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31 मार्च को मिला था पहला कोरोना मरीज
झारखंड में कोरोना का पहला केस 31 मार्च 2020 को सामने आया था. रांची के हिंदपीढ़ी में रहने वाली युवती 17 मार्च को मलेशिया से लौटी थी. हिंदपीढ़ी रांची का मुस्लिम बहुल इलाका है. यह खबर आते ही प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए. युवती को तुरंत रिम्स में भर्ती कराया गया. पूरा एरिया सील कर दिया गया. हालात ऐसे हो गए थे कि स्थिति कंट्रोल करने के लिए सीआरपीएफ को बुलाना पड़ा. यह तो बस शुरुआत थी. फिर एक के बाद एक केस मिलते गए. 9 अप्रैल को बोकारो में कोरोना से बुजुर्ग की मौत हो गई. मौत के 15 मिनट पहले ही बुजुर्ग की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी. यह झारखंड में कोरोना से मौत का पहला मामला था.
कोरोना मरीज मिलने के बाद जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग हरकत में आया था और हिंदपीढ़ी में कोरोना जांच अभियान की शुरुआत की गई. जिसके बाद एक-एक कर के संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ती चली गई. जब राजधानी के ही हिंदपीढ़ी इलाके में एक संक्रमित महिला और उसके पति के मौत की सूचना आयी तो लोगों में इतना खौफ भर गया कि लोग जिंदा इंसानों से दूर शवों से भी डरने लगे.
लोगों में कोरोना का बढ़ता गया खौफ
एक साल पहले 31 मार्च 2020 को मलेशियाई महिला के कोरोना के पॉजिटिव की पुष्टि होने के बाद स्वास्थ्य विभाग सख्ती से अपने कार्य में लग गया था. इसके साथ ही जिस इलाके में भी संक्रमित मरीज पाए जा रहे थे उस इलाके को कंटेनमेंट जोन बनाकर संक्रमण को रोकने का प्रयास किया गया था. तेजी से मिल रहे संक्रमित मरीजों को एक-एक करके अस्पताल में इलाज के लाया जा रहा था. संक्रमित मरीज को अस्पताल पहुंचाने में सबसे अहम योगदान एंबुलेंस चालकों का रहा.
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एंबुलेंस चालक ने किया अनुभव साझा
31 मार्च 2020 को मलेशियाई महिला को खेलगांव के क्वॉरेंटाइन सेंटर से रिम्स के कोविड अस्पताल लाने वाले एंबुलेंस चालक इंद्रजीत सरकार ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि निश्चित रूप से कोरोना के एक साल का दौर काफी कठिनाई भरा रहा. हमारे काम का भार भी बढ़ गया. अमूमन आम मरीज को लाने में एक एंबुलेंस चालक को चंद घंटों का समय लगता था लेकिन कोरोना के मरीज को लाने में कई घंटे लगते थे. मरीज को लाने से पहले और बाद में प्रत्येक एंबुलेंस चालक को कोविड प्रोटोकॉल के नियमों का पालन करना पड़ता था. जिसमें घंटों समय लग जाते थे. इसके बावजूद एंबुलेंस चालक लगातार एक काम में लगे रहे और राज्य को कोरोना से बचाने के लिए जी तोड़ मेहनत करते रहे.