रांची: ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान रामेश्वर उरांव ने कहा कि झारखंड की आर्थिक स्थिति सुधर रही है लेकिन कोरोना ने इस पर ब्रेक लगाने का काम किया है. दरअसल, 29 दिसंबर 2019 को झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद ने मिलकर सरकार बनाई. तब ये मुद्दा बड़े जोर-शोर से उठाया गया कि राज्य सरकार का खजाना खाली है. इस मुद्दे पर रामेश्वर उरांव ने कहा कि खजाना खाली है ये राजनीतिक स्टेटमेंट नहीं था. इसकी हकीकत बताने के लिए श्वेत पत्र जारी किया ताकि लोग सच्चाई को समझ सकें. इसके बाद सरकार आगे बढ़ी और मार्च तक राजस्व संग्रहण में तेजी आई. लेकिन 25 मार्च 2020 को लॉकडाउन लगने के बाद, आर्थिक स्थिति फिर खराब होने लगी. सरकार ने जहां से शुरू किया था वापस वहीं पहुंच गए. बस सैलरी और पेंशन दे पा रहे थे, बाकी कोई काम नहीं हो पा रहा था. इसी दौरान साढ़े नौ लाख लोगों तक राज्य सरकार ने अपने पैसे से अनाज पहुंचाया.
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चुनौती से कैसे निपटने के लिए बजट में प्रावधान
झारखंड में सरकार बनते ही कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी. फिर लॉकडाउन हो गया. जनता अपने भले की उम्मीद लिए बैठी थी लेकिन रोजी-रोटी पर ही आफत आ गई. रामेश्वर उरांव ने कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए बजट में खास प्रावधान किए गए. ग्रामीण क्षेत्र और कृषि पर ज्यादा खर्च किया जा रहा है. यहां के किसान संकट में थे, कर्ज के बोझ से दबे हुए थे. जेएमएम और कांग्रेस दोनों पार्टियों के घोषणा पत्र में कर्ज माफी की वादा किया गया है, जिसे सरकार पूरा कर रही है. हालांकि दो लाख तक का कर्ज माफ करने का वादा था लेकिन खजाना में रुपए नहीं होने की वजह से फिलहाल सिर्फ पचास हजार तक का ही कर्ज माफ कर पाए हैं.
छत्तीसगढ़ की तर्ज पर झारखंड के हर गरीब तक पहुंचाया जाएगा राशन
कुपोषण और भुखमरी झारखंड की एक बड़ी समस्या रही है. वर्तमान परिस्थितियां लंबी अवधि तक रहीं तो ये समस्या और गंभीर रूप ले सकती हैं. इसके लिए सरकार ने क्या तैयारी की है. इस सवाल पर रामेश्वर उरांव ने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत केंद्र सरकार को व्यवस्था करना है और राज्य सरकार को कार्डधारियों तक राशन पहुंचाना है. इसमें कोई दिक्कत नहीं है. फिलहाल ग्रामीण क्षेत्रों में 86 फीसदी और शहरों में लगभग 60 फीसदी लोगों का राशन कार्ड बना हुआ है. जो लोग छूट गए हैं, उनका भी राशन कार्ड बनवाया जा रहा है. इसके तहत करीब साढ़े तीन लाख परिवारों के तकरीब 15 लाख लोगों को पीडीएस से जोड़ा जाएगा. भारत सरकार के लाल और पीला रंग के राशन कार्ड से अलग हरा रंग का राशन कार्ड होगा. झारखंड सरकार छत्तीसगढ़ की तर्ज पर यूनिवर्सल फूड सिक्योरिटी की ओर बढ़ना चाहती है इसलिए हर गरीब पात्र व्यक्ति का राशन कार्ड बनाया जाएगा. उन्होंने कहा कि "हमारा नारा है कि कोई भूखा ना रहे. पिछली सरकार का नारा था कोई भूखा ना मरे. हम कहते हैं कोई भूखा ही क्यों रहे, मरने की बात तो दूर की है."
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कोरोना की दूसरी लहर में अफरातफरी से सबक
झारखंड में कोरोना के पहले दौर में संक्रमण का प्रकोप ज्यादा नहीं था लेकिन दूसरी लहर में व्यवस्थाएं ध्वस्त होती दिखीं. बेड, ऑक्सीजन और दवा के लिए मरीजों और परिजनों को भटकते देखा गया. कहा जा रहा है कि तीसरी लहर बच्चों के लिए खतरनाक साबित होगी. इसको लेकर रामेश्वर उरांव ने कहा कि कोरोना की पहली लहर के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. लेकिन दूसरी लहर के बारे में संभवत केंद्र सरकार को पता था और उनका काम था राज्य सरकार को आगाह करना. उसके अनुरूप व्यवस्था करना. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. ऐसे में अचानक दूसरी लहर के आने से अफरातफरी मच गई, यह बात सही है. उन्होंने दावा किया कि स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने दिन रात एक कर ऐसी व्यवस्था की, जिससे हफ्ते-दस दिन के अंदर हालात काबू में आने लगे. बेड, ऑक्सीजन और दवा की व्यवस्था दुरुस्त की गई. लॉकडाउन की जगह स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह के जरिए संक्रमण के प्रसार को रोका गया. अब अनलॉक की प्रक्रिया शुरू की जा रही है.
'मैं बिहारी हूं और बिहार के खिलाफ कभी नहीं बोलता'
रामेश्वर उरांव ने 2019 में गांधी जयंती पर मंदिरों को लेकर एक बयान दिया था, जिसकी विरोधियों ने खूब आलोचना की थी. फिर इस साल जनवरी में कहा कि रांची में बिहार के लोग भर गए हैं और मारवाड़ी लोग बस गए हैं. इसके चलते आदिवासी कमजोर हो गए हैं और इसी कारण उनका शोषण हो रहा है. ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान रामेश्वर उरांव ने ऐसे बयानों पर सफाई दी. उन्होंने कहा कि गांधी जी को लेकर दिया गया बयान उनके जीवनी में लिखे गए तथ्यों पर आधारित है. उन्होंने कहा कि साल 1916 में जब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना के समय मालवीय जी ने गांधी जी को बुलाया था तो वे विश्वनाथ मंदिर भी गए थे. तभी की घटना का जिक्र उन्होंने अपने बयान में किया था. उन्होंने आगे कहा कि यदि ऐसी बातें करना व्यवहारिक नहीं है तो वे इसे स्वीकार करते हैं कि उन्हें बयान नहीं देना चाहिए था.
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रामेश्वर उरांव ने कहा कि "मैं बिहार में जन्मा, बिहार में ही पढ़ाई की, बिहार में नौकरी की और झारखंड बनने के कुछ समय पहले यहां आया था. तो फिर मैं बिहार के खिलाफ कैसे बोल सकता हूं. मैंने मारवाड़ियों के खिलाफ भी कोई बयान नहीं दिया है. लेकिन आदिवासियों की जमीन लेकर उसका दुरुपयोग होता है जो चिंता का विषय है." उन्होंने ये भी कहा कि कई बार अखबार में चीजें बढ़ा-चढ़ाकर छाप दी जाती हैं.
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