रांचीः झारखंड में एनीमिया यानी खून की कमी एक बड़ी समस्या है. एक अनुमान के अनुसार राज्य के पचास फीसदी से ज्यादा लोग खून की कमी की समस्या से ग्रसित हैं. चिंता की बात यह है कि इसमें बड़ी संख्या वैसे लोगों की है जो जेनेटिक डिसऑर्डर के चलते होने वाली बीमारी सिकल सेल और थैलसीमिया से ग्रसित हैं. जीवन शैली और अन्य वजहों से ऐसा देखा गया है कि जनजातीय लोगों में सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया बीमारी अधिक पायी जाती है.
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क्या है गुजरात मॉडल
रघुवर दास की सरकार के दौरान झारखंड में सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया बीमारी को समाप्त करने के लिए चार जिलों में पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था. देवघर, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और रांची में पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था. रांची जिले में पायलट प्रोजेक्ट के नोडल अधिकारी डॉ बिमलेश सिंह बताते हैं कि आखिर क्या था सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया के खात्मे के गुजरात मॉडल.
डॉ बिमलेश सिंह ने ईटीवी भारत को बताया कि 2003-04 में गुजरात में करीब 82 लाख जनजातीय आबादी की स्क्रीनिंग की गई और 82 लाख की आबादी में से सिकल सेल एनीमिया और बाद में थैलसीमिया के मरीजों और कैरियर की पहचान कर ली गयी. स्क्रीनिंग के बाद सिकल सेल एनीमिया के मरीजों के लिए अलग से इलाज और काउंसिलिंग की व्यवस्था की गई. वहीं इन बीमारियों के कैरियर की अलग से काउंसलिंग की गई. जिला और प्रखंड स्तर पर इस काउंसलिंग का असर हुआ. इससे सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया के मरीजों का जीवन काल बढ़कर 50-55 वर्ष हो गया. बीमारी के कैरियर की आपस में या बीमारी वाले लोग से शादी नहीं होने के चलते नई पीढ़ी में भी बीमारी कम होती चली गयी.