रांचीःनागपुरी लोक कला और संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए झारखंड के लोक कलाकार मधु मंसुरी हंसमुख को साल 2020 के लिए पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 8 नवंबर को नई दिल्ली में आयोजित भव्य समारोह में उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा. देश का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान मिलने के बाद पद्मश्री मधु मंसुरी हंसमुख रांची लौट आए हैं. उन्होंने ईटीवी भारत के संवाददाता उपेंद्र कुमार से मन की बात की.
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मधु मंसुरी हंसमुख ने बताया कि पद्मश्री अवार्ड देने के बाद राष्ट्रपति ने उनसे कहा कि यहां अभी तक सैकड़ों-हजारों लोग आए लेकिन मधु मंसुरी हंसमुख आज आए हैं. सांस्कृतिक नवजागरण और झारखंड आंदोलन में अपने गायन से लोगों में उत्साह का संचार करने वाले मधु बताते हैं कि जब वह 17-18 महीने के थे, तभी उनकी मां का निधन हो गया था. उसके बाद एक अहीर महतो के कहने पर सुरा से जान बची और गांव वालों के कहने पर मधुआ से मधु हो गए.
पद्मश्री मधु मंसुरी हंसमुख से खास बातचीत मुस्लिम परिवार से नाता
चार भाइयों में सबसे छोटे पद्मश्री मधु मंसुरी हंसमुख का जन्म 04 सितंबर 1948 को रांची के सिमलिया में एक ग्रामीण मुस्लिम परिवार में हुआ था. दसवीं तक की पढ़ाई करने वाले मधु मंसुरी कहते हैं कि पहले उनका नाम मधुआ था. वह जिस मुस्लिम समुदाय से आते हैं, वहां मंसुरी सरनेम की परंपरा है. मारवाड़ी स्कूल के एक शिक्षक कुलदीप सहाय ने उपनाम हंसमुख दे दिया. इस तरह से वह मधु मंसुरी हंसमुख हो गए.
मेकॉन में की मैसेंजर की नौकरी
पुराने दिनों को याद कर पद्मश्री मधु मंसुरी हंसमुख बताते हैं कि 1970 में उन्होंने मेकॉन लिमिटेड में मैसेंजर का काम किया. दो चार साल की नौकरी के दौरान वे सांस्कृतिक नवजागरण और झारखंड आंदोलन के धुन में ऐसे रम गए थे कि नौकरी से हाथ धोने की नौबत आ गयी थी. उस समय तत्कालीन राज्यपाल और मुख्यमंत्री की पहल पर गायन के लिए मेकॉन से इन्हें स्पेशल छुट्टी मिलने लगी.
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आठ साल की उम्र में रातू महाराज ने दिया था इनाम
साल 1956 में 2 अगस्त को रातू प्रखंड में भवन का शिलान्यास कार्यक्रम था. तब मधु मंसुरी हंसमुख महज आठ साल के थे और उन्हें इस कार्यक्रम में गीत गाने का मौका मिला था. उनके गीत से खुश होकर रातू महाराज चिंतामणि शरणनाथ शाहदेव ने उन्हें 10 रुपये का इनाम दिया था.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्मश्री अवार्ड लेते मधु मंसुरी हंसमुख पुराने दिनों को याद करते हुए पद्मश्री मधु मंसुरी हंसमुख कहते हैं कि साल 1976 में रामगढ़ के केदला कोलियरी में एक कार्यक्रम के दौरान जब उन्होंने गीत गाया, तब गुरु जी ने कहा था "हमर तीर के धार और रउरे गीत से अलग राज्य बनेगा झारखंड." झारखंड के जल, जंगल, जमीन, पलायन और राज्य की नौ भाषाओं के संवर्धन सहित कई मुद्दों को अपने गायन के माध्यम से उठाने वाले मधु मंसुर हंसमुख के लिए पूर्व में वर्तमान मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने और फिर रघुवर दास ने उनका नाम पद्मश्री के लिए अनुशंसित कर भेजा था.
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मुख्यमंत्री से मिलकर मन की बात कहेंगे मंसुरी
पद्मश्री से सम्मानित होकर रांची लौटे मधु मंसुरी हंसमुख खुद झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति के सदस्य हैं और झामुमो के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के मुखिया हैं. वह जल्द मुख्यमंत्री से औपचारिक मुलाकात करेंगे. मंसुरी कहते हैं कि राज्य पांचवी अनुसूची में शामिल है और यहां का खजाना आदिवासियों के कल्याण के नाम पर खुलता है. बावजूद इसके राज्य में आदिवासियों का यह हाल क्यों है? मंसुरी कहते हैं कि वह मुख्यमंत्री से मांग करेंगे कि राज्य के गीत-संगीत का दस्तावेज तैयार करें. इसके अलावा अब वक्त आ गया है कि राज्य के कर्णधार झारखंड के नवनिर्माण में लगें.
सम्मानत पत्र दिखाते पद्मश्री मधु मंसुरी हंसमुख उन्होंने कहा कि उनकी पंचायत में ही 500 एकड़ से आधी गैर मजरुआ जमीन पर भूमाफिया की नजर है. वह कोशिश करेंगे कि सरकार उस जमीन को फिल्म सिटी के रूप में विकसित करे.
बहरहाल, रांची में मधु मंसुरी हंसमुख से मिलने और उन्हें शुभकामनाएं देने बड़ी संख्या में लोग उनके आवास पर पहुंच रहे हैं. सभी का कहना है कि आज रांची सहित पूरा झारखंड गौरवांवित महसूस कर रहा है. इसी कड़ी में शुभकामना देने पहुंची लोक गायिका सुनैना कच्छप ने मधुर मंसूरी हंसमुख को झारखंड का कोहिनूर बताया. इस मौके पर ईटीवी भारत के दर्शकों के लिए उन्होंने मधुर मंसूरी के लोकप्रिय गीत को भी गुनगुनाया.