नयी दिल्लीः झारखंड से बीजेपी के राज्यसभा सांसद और पार्टी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और आदिवासी नेता समीर उरांव ने कहा कि 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के तौर पर मनाया जाएगा. केंद्र सरकार का यह निर्णय ऐतिहासिक है. इसके लिए हम पीएम मोदी को धन्यवाद देते हैं. इस फैसले से देश की 12 करोड़ जनजातीय आबादी बहुत खुश है.
इसे भी पढ़ें- भाजपा एसटी मोर्चा के केंद्रीय कार्यसमिति की बैठक संपन्न, जनजातीय समुदाय के संपूर्ण विकास का संकल्प
नयी दिल्ली में ईटीवी भारत के साथ हुई खास बातचीत में उन्होंने कहा कि जनजातीय नायकों और उनके योगदान को याद करने के लिए यह एक बेहतरीन प्रयास है. 15 से 22 नवंबर तक आजादी के अमृत महोत्सव के तहत पूरे देश में जनजाति महोत्सव मनाया जाएगा. जिसके तहत जनजातीय समुदाय के स्वतंत्रता सेनानियों के कृतित्व, उनकी कला संस्कृति पर कार्यक्रम आयोजित होंगे. 15 नवंबर को भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में पीएम मोदी शामिल होंगे.
ईटीवी भारत की राज्यसभा सांसद समीर उरांव से खास बातचीत आगे उन्होंने कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए यह सब निर्णय नहीं लिया गया है. ऐसा भी नहीं है कि आदिवासी समाज को अपनी तरफ करने के लिए केंद्र सरकार ने इस तरह का निर्णय लिया है. आज के लोगों को जानना चाहिए कि जनजातीय समाज के लोगों का देश में क्या योगदान रहा है, उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. इन सबको ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार इस तरह का निर्णय ली है. उन्होंने कहा कि सरना धर्म कोड के मुद्दे पर झारखंड की झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन सरकार आदिवासियों को गुमराह कर रही है. इन लोगों ने हमेशा आदिवासियों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है, उचित समय पर सरना धर्म कोड पर केंद्र सरकार निर्णय लेगी.
राज्यसभा सांसद ने कहा कि हम लोग आदिवासियों का हित चाहते हैं. उनके हित के लिए केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है. आदिवासियों को उनके उत्पादों का बेहतर दाम मिले, उनकी आय में वृद्धि हो इसके लिए ट्राइब्स इंडिया के शोरूम देशभर में खोले गए हैं. आदिवासियों उत्पादों का ऑनलाइन बेचा जा रहा है. वन धन योजना चल रही है. आदिवासियों के शिक्षा के लिए एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय सहित कई तरह के काम किए गए. आदिवासी किसानों को उद्योग जगत से मिलकर काम करने का मौका मिले इस दिशा में कार्य चल रहा है.
केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्रालय के प्रस्ताव को पीएम मोदी के नेतृत्व में हुई कैबिनेट की बैठक में पारित कर दिया गया है. 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के तौर पर मनाया जाएगा. 15 से 22 नवंबर तक पूरे देश भर में जनजातीय महोत्सव चलेगा. बिरसा मुंडा देश के इतिहास में ऐसे नायक रहे, जिन्होंने आदिवासी समाज की दिशा और दशा बदलकर रख दी थी. उन्होंने आदिवासियों को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त होकर सम्मान से जीने के लिए के लिए प्रेरित किया था. अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी आंदोलन के लोक नायक रहे बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 में झारखंड के खूंटी में उनका जन्म हुआ था. अपने हक और स्वराज के लिए अंग्रेजों से लड़ते हुए वह केवल 25 साल की उम्र में ही शहीद हो गए थे. आदिवासी समाज उनको भगवान के तौर पर पूजते हैं.
इसे भी पढ़ें- मिशन 2024 में जुटी बीजेपी, जनजातियों को लुभाने की बना रही रणनीति
भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के तौर पर मनाने के केंद्र सरकार के निर्णय को बीजेपी बड़ी उपलब्धि मान रही है और खुद को कहीं ना कहीं आदिवासी हितैषी दिखाने की कोशिश कर रही है. लेकिन झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, राजद महागठबंधन की सरकार है. झारखंड मुक्ति मोर्चा का कहना है कि एक साल पहले झारखंड विधानसभा से सर्वसम्मति से सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा गया था. केंद्रीय मंत्रिमंडल से इसकी स्वीकृति अब तक नहीं मिली. सरना धर्म कोड आदिवासियों के अस्तित्व से जुड़ा मामला है. केंद्रीय मंत्रिमंडल से इसकी स्वीकृति मिलेगी तो जनजातीय समुदाय के अस्तित्व रक्षा का ईमानदार प्रयास होगा. झारखंड मुक्ति मोर्चा यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि केंद्र सरकार आदिवासी हितैषी नहीं है.
झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, बिहार में आदिवासी समुदाय का बड़ा तबका अपने आपको सरना धर्म के अनुयायी के तौर पर मानता है. वह प्रकृति की प्रार्थना करते हैं और उनका विश्वास जल, जंगल और जमीन है. यह वन क्षेत्रों की रक्षा करने में विश्वास करते हुए पेड़ और पहाड़ियों की प्रार्थना करते हैं. झारखंड में 32 जनजातीय समूह हैं जिसमें 8 विशेष रुप से कमजोर जनजातीय समूहों में हैं. इनमें से कुछ हिंदू धर्म का पालन भी करते हैं तो कुछ ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं. माना जाता है कि आदिवासी समुदाय के ईसाई समुदाय में परिवर्तित होने के बाद वह एसटी आरक्षण से वंचित हो जाते हैं. ऐसे में वह सरना धर्म कोड की मांग करके अपने आप को आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं होने देना चाहते हैं.