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जिस सुदेश महतो की वजह से सिल्ली सीट को मिली पहचान, आज वही हैं इस क्षेत्र से गुमनाम

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Published : Oct 17, 2019, 6:33 AM IST

आजसू के मुखिया सुदेश महतो ने सिल्ली को नई पहचान दिलाई. वहीं 2000 से लेकर 2014 तक वो जनता प्यारे भी रहे, लेकिन 2014 विधानसभा चुनाव और इसके बाद उपचुनाव में सुदेश महतो को लगातार 2 बार हार मिली.

सिल्ली विधानसभा

रांची: रांची जिले की सात विधानसभा सीटों में शुमार सिल्ली की पहचान कृषि बहुल क्षेत्र के रूप में होती है. यहां कुर्मी और कोईरी जाति के वोटर किसी भी प्रत्याशी की जीत को निर्णायक बनाते हैं. पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिला के सीमा से जुड़े होने के कारण सिल्ली में बंगला भाषियों की तादात अच्छी खासी है. मेन रेल लाइन यहां से गुजरती है और यहां इंडस्ट्री के नाम पर हिंडाल्कों की बॉक्साइट फैक्ट्री है.

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सुदेश महतो ने दिलाई पहचान

इन खूबियों के बावजूद इस क्षेत्र को पहचान दिलाई सुदेश महतो ने. झारखंड आंदोलन के दौरान रांची यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हुए सुदेश महतो ने सबसे पहले छात्रों के बीच अपनी राजनीतिक पहचान बनाई. मौका भांपकर सुदेश महतो ने एकीकृत बिहार में हुए साल 2000 के चुनाव में अपनी एंट्री मार दी और इस सीट पर जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया. पश्चिम बंगाल का सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण सिल्ली में लेफ्ट की जबरदस्त पकड़ थी. इस दौर में सीपीएम के राजेंद्र सिंह और कांग्रेस के केशव महतो कमलेश के बीच हार-जीत हुआ करती थी.

सुदेश महतो बने मंत्री

साल 2000 में सुदेश महतो के आते ही यह सिलसिला बंद हो गया. यहां से सिल्ली की राजनीति का नया अध्याय शुरू हुआ. इस जीत ने सुदेश महतो की किस्मत का दरवाजा भी खोल दिया. क्योंकि फरवरी 2000 में रिजल्ट आने के आठ महीने बाद ही झारखंड का गठन हो गया और बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बन गयी, लेकिन बहुमत का आंकड़ा जुटाने के लिए निर्दलीय का सहारा लेना पड़ा और देखते ही देखते युवा नेता सुदेश महतो मंत्री बन बैठे.

आजसू पार्टी का गठन

सुदेश यहीं नहीं रूके. राज्य गठन के बाद उन्होंने अपनी आजसू पार्टी बना ली . 2005 के चुनाव में झारखंड की 40 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिया, लेकिन जीत सिर्फ सिल्ली सीट पर सुदेश की और रामगढ़ सीट पर उनके मौसा की हुई. जबकि 37 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी. सुदेश को सत्ता का स्वाद ऐसा लगा कि राज्य गठन के बाद अबतक झारखंड में जिसकी भी सरकार बनी उसमें आजसू शामिल रही. कभी सुदेश मंत्री रहे तो कभी उनके मौसा चंद्रप्रकाश चौधरी. सुदेश ने बहुत कम वक्त में अपना राजनीतिक कद बढ़ा लिया और 2000, 2005 और 2009 के विधानसभआ चुनाव में सिल्ली सीट पर जीत का हैट्रिक जड़ दिया.

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लगातार 2 बार हारे सुदेश महतो

सुदेश को 2014 के चुनाव में पता चला कि 2005 और 2009 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने वाला उनके ही क्षेत्र और जाति का नौजवान अमित कुमार उनकी अगली जीत पर ब्रेक लगा चुका था. हद तो यह हो गई कि मारपीट के एक मामले में सदस्यता गंवाने के बाद हुए उपचुनाव में सुदेश को झामुमो की टिकट पर खड़ी अमित कुमार की पत्नी सीमा देवी ने भी हरा दिया. कहा जाता है कि सत्ता में रहने के कारण सुदेश महतो चापलूसों से घिर गए थे और संघर्ष के दौर में साथ देने वालों की कद्र कम हो गयी थी जिसकी उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी.

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