रांची: गरीब देशों की सूची में शुमार भारत इस अभिशाप से बाहर निकलने की दिशा में अग्रसर है. यूएनडीपी की रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2005-06 तक 55% लोग गरीब थे लेकिन साल 2015-16 आते-आते भारत में गरीबों की संख्या घटकर 27.5% हो गई. इसी रिपोर्ट में झारखंड की गरीबी का भी जिक्र है. इसके मुताबिक 2006 तक झारखंड में 74.9% लोग गरीब थे लेकिन 2015-16 तक गरीबों की संख्या घटकर 46.5% हो गई.
साल 2006 से 2016 के बीच यानी 10 वर्षों की गणना के आधार पर इस रिपोर्ट को तैयार किया गया. खास बात है कि इस रिपोर्ट को MPI यानी मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स के आधार पर तैयार किया गया, जिसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक विभाग ने OPHI यानी ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव का नाम दिया. झारखंड में आर्थिक मामलों के जानकार हरीश्वर दयाल ने बारीकी से MPI का मतलब समझाया है जिसे आप हमारे वीडियो को क्लिक कर सुन सकते हैं.
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यूएनडीपी की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2006 से 2016 के बीच यानी 10 वर्षों में भारत में 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए थे. इसमें झारखंड के 72 लाख लोग शामिल हैं, जिन्होंने गरीबी को पीछे छोड़ दिया. गरीबी को आंकने के लिए यूएनडीपी की यह पहली रिपोर्ट थी जिसे बहुआयामी मापदंड पर आंका गया था. यह रिपोर्ट झारखंड को इसलिए राहत देने वाली कही जाती है क्योंकि इसके मुताबिक गरीबी को पीछे छोड़ने के मामले में झारखंड उस बिहार राज्य से आगे निकल गया जिसके विभाजन के बाद झारखंड का जन्म हुआ था.
अर्थशास्त्री से जानें किस दर से घट रही गरीबी हर साल 4.8% घट रही गरीबी
इन 10 वर्षों में झारखंड में 4.8% की रफ्तार से प्रतिवर्ष गरीबी घटी जबकि बिहार में 3.8% की दर से. इस बीच समाचार की दुनिया में जोर शोर से इस बात की चर्चा हो रही है कि भारत ने बहुत तेजी से गरीबी को दूर करने की दिशा में काम किया है लेकिन सच्चाई यह है कि इसके लिए जिस रिपोर्ट को आधार बनाया गया है वह एक साल पुरानी है.
अर्थशास्त्री से जानें गरीबी की गणना का गणित कैसे होती है गरीबी की गणना
भारत में गरीबी की गणना मंथली पर कैपिटा कंजप्शन एक्सपेंडिचर के आधार पर होती है. सरल भाषा में कहें तो प्रति व्यक्ति प्रतिदिन कैलोरी को आधार बनाया जाता है. शहर में रहने वाले लोग यदि प्रतिदिन 2100 कौलोरी लेते हैं तो उन्हें गरीब नहीं माना जाता जबकि गांव में 2400 गैलरी को आधार बनाया जाता है. भारत में एन एस एस यानी नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन डाटा के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार करता है, जिसे प्लानिंग कमिशन ऑफ इंडिया जारी किया करता था. हालांकि अब इसका नाम नीति आयोग हो गया है. एनएसएस की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011-12 में भारत में गरीबों की संख्या 21.9% थी लेकिन OPHI ने पहली बार बहुआयामी तरीके से गरीबी का आंकलन किया था.
क्या कहता है नीति आयोग
नीति आयोग के साल 2011 के आंकड़ों के अनुसार देश में गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वाले 29.8 फीसदी लोग हैं जबकि झारखंड में इनकी संख्या 39. फिसदी है. इसमें अनुसूचित जनजाति 49 फीसदी,अनुसूचित जाति 40.4 फीसदी, ओबीसी 34.6 फीसदी और अन्य 23.1 फीसदी है. साल 2011-12 के आंकड़ों के अनुसार झारखंड में औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय (एमपीसीई) शहरी इलाकों में 1,894 रुपए और ग्रामीण इलाको में 920 रुपए था. गरीबी उन्मूलन के लिए राज्य में मनरेगा सहित कई योजनाएं चलाई जा रही हैं.