रांची: बरसात के वक्त अगर आप राजधानी रांची की सड़कों पर निकल रहे हैं तो आपको सावधान होकर चलने की जरूरत है. नहीं तो आप कब और कहां गहरे नाले में गिर जाएंगे यह कहना मुश्किल है. खास बात यह है कि इन नालों को ढकने की बजाय नगर निगम ने बोर्ड लगाकर या फिर बैरिकेडिंग कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है. यह तब किया गया है जब स्मार्ट सिटी का ख्वाब रखनेवाले रांची शहर का अधिकांश हिस्सा बरसात में घुटने भर पाने से भर जाता है.
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रांची नगर निगम जल जमाव और ड्रेनेज सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए 2017 से अब तक पांच बार सर्वे करा चुका है. सर्वे के बाद डीपीआर भी तैयार हुआ, मगर विभाग और नगर निगम के बीच समन्वय के अभाव के कारण कार्ययोजना अधूरी रह गई और समस्या जस की तस बनी हुई है. अशोक विहार के प्रकाश बताते हैं कि बरसात के समय नाला और सड़क एक समान हो जाता है. जिसकी वजह से लोगों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि निगम सिर्फ बोर्ड लगाकर अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता है.
खुले नाले में गिरने के कारण अब तक चार लोगों की मौत हो चुकी है. दुखद पहलू यह है कि जिस महाबीर नगर या नाला रोड या श्रीनगर कॉलनी में खुले नाला में बहने के कारण बच्चों और आम आदमी की मौत हुई थी उन जगहों के भी नाले को भी ढकने का काम सरकार ने नहीं किया है. नगर निगम के आंकड़ों के अनुसार निगम क्षेत्र के सभी 53 वार्ड में करीब 68 ऐसे जगह हैं जहां बेहद ही खतरनाक नाले हैं और जहां हादसा होने का डर हमेशा बना रहता है.
रांची नगर निगम क्षेत्र में ड्रेनेज सिस्टम को ठीक करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए हैं. यहां की एक टीम स्टडी के लिए अहमदाबाद भी गई. लेकिन आज भी रांची में ड्रेनेज सिस्टम डैमेज है. निगम द्वारा कराये गये सर्वे में सभी नालों को ढकने और ड्रेनेज सिस्टम को ठीक करने के लिए 100 करोड़ का अनुमान लगाया गया है. निगम के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय के अनुसार सर्वे के बाद निगम द्वारा बनाये गए डीपीआर को बैठक में पास कराकर विभाग को राशि आवंटित कराने के लिए कहा गया है. मगर राशि के अभाव में यह प्रोजेक्ट यूं ही पड़ा हुआ है. ऐसे में नगर निगम ने सूचनात्मक रुप से बोर्ड लगाकर लोगों को जरूर सचेत करने का काम किया है.