रांची: पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री रघुवर दास के ड्रीम प्रोजेक्ट 'सीएम जनसंवाद केंद्र' के खिलाफ लगे आरोपों और जांच की फाइल खुलने के आसार बढ़ गए हैं. रांची के सूचना भवन स्थित जनसंवाद के दफ्तर में काम करने वाली तत्कालीन महिला कर्मचारियों की शिकायतों को लेकर राज्य सरकार गंभीर रुख अख्तियार करने के मूड में है.
दरअसल, जनसंवाद में शिकायतों का दौर 2016 में शुरू हुआ और उनमें एक मोड़ तब आया जब 2017 में महिलाकर्मियों ने संचालकों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए. उन महिलाकर्मियों ने अपनी शिकायत राज्य और केंद्र महिला आयोग तक पहुंचाई. लेकिन अभी तक उन शिकायतों का निष्पादन हुआ है कि नहीं इस पर पर्दा पड़ा हुआ.
क्या थी शिकायतें
जनसंवाद केंद्र की दो महिलाकर्मियों ने 19 जनवरी 2017 को राज्य महिला आयोग समेत आठ लोगों को पत्र लिखकर अपनी शिकायत दर्ज कराई थी. उसमें उन्होंने साफ लिखा था कि उनके साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया जाता है. यहां तक कि जब वह बाथरूम की तरफ जाते हैं तो उनका पीछा किया जाता है. उन्होंने एक तरफ नियोक्ता द्वारा महिला कर्मियों को सामूहिक रूप से अपमानित करने का आरोप लगाया था. वहीं, दूसरी तरफ एक काम के लिए नियुक्तकर्मियों के असमान वेतन देने की बात कही थी.
कैबिनेट मिनिस्टर ने दी थी एसीबी से जांच की सलाह
हैरत की बात यह है कि रघुवर दास की कैबिनेट में मंत्री सरयू राय ने जनसंवाद में कथित अनियमितताओं को लेकर सरकार से एंटी करप्शन ब्यूरो से जांच कराने की सलाह दी थी. उन्होंने साफ तौर पर मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कहा था कि जनसंवाद से संबंधित शिकायतों में कथित एजेंसी को बिना प्रॉपर टेंडर के काम दिए जाने की बात भी सामने आई है. उन्होंने कहा कि इस बाबत शिकायतकर्ता ने उन्हें एक पत्र भी लिखा है.
बिना प्रॉपर टेंडर के मिला था काम
तत्कालीन मंत्री सरयू राय ने इस बाबत एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत से मामले के दर्ज कराने की मांग की थी. उन्होंने लिखा था कि एक शिकायतकर्ता ने साफ तौर पर उन्हें पत्र भी लिखा है. शिकायत में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि माइका एजुकेशन प्राइवेट लिमिटेड के पास प्रकाशित टेंडर में निर्धारित योग्यता नहीं थी. इसलिए उनकी नियमित रूप से नियुक्ति एक साल के लिए हुई थी. इसके साथ ही संतोषजनक काम होने पर एक साल का एक्सटेंशन देने का प्रावधान था.