झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / city

बिरसा मुंडा की 120वीं पुण्यतिथि आज, झारखंड में की जाती है इनकी पूजा - भगवान बिरसा मुंडा

आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा भारतीय इतिहास में एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने झारखंड में 19वीं शताब्दी में अपने क्रांतिकारी गतिविधियों से समाज की दशा और दिशा बदलकर रख दी थी. राज्य में हर जगह इनका नाम बड़े अदब से लिया जाता है और इनके नाम पर कई योजनाएं चलती हैं. उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार और बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है.

death anniversary of birsa munda
बिरसा मुंडा की 120वीं पुण्यतिथि

By

Published : Jun 9, 2020, 1:21 AM IST

रांची: झारखंड में भगवान की तरह पूजे जानेवाले धरती आबा बिरसा मुंडा की आज 120वीं पुण्यतिथि है. बिरसा मुंडा कितने बड़े जननायक थे, इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि इनके नाम पर राज्य में कई योजनाएं चलती हैं, संसद भवन में भी इनकी प्रतिमा स्थापित है. इतना ही नहीं राज्य के हर महत्वपूर्ण भवनों और दफ्तरों में इनकी प्रतिमा या फोटो लगी होती है. राज्यवासी हर मौके पर धरती आबा बिरसा मुंडा को बड़ी शिद्दत के साथ याद करते हैं और राज्य में हर जगह इनका नाम बड़े अदब से लिया जाता है.

शुरुआत से ही नेतृत्वकर्ता थे बिरसा

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को उस वक्त के रांची और वर्तमान के खूंटी जिले के उलीहातू गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी मुंडा था. इनकी शुरूआती-पढ़ाई लिखाई गांव में हुई, इसके बाद वे चाईबासा चले गए जहां इन्होंने मिशनरी स्कूल में पढ़ाई की. इस दौरान वे अंग्रेज शासकों की तरफ से अपने समाज पर किए जा रहे जुल्म को लेकर चिंतत थे. आखिरकार उन्होंने अपने समाज की भलाई के लिए लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने की ठानी और उनके नेतृत्वकर्ता बन गए. उस दौरान 1894 में छोटानागपुर में भयंकर अकाल और महामारी ने पांव पसारा. उस समय नौजवान बिरसा मुंडा ने पूरे मनोयोग से लोगों की सेवा की.

ये भी पढ़ें-मंगलवार को धरती आबा की 120वीं पुण्यतिथि, भगवान बिरसा ने इसी जेल में ली थी अंतिम सांस

1894 में फूंका अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का बिगुल

1894 में इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लगान माफी के लिए आंदोलन की शुरुआत कर दी. 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग जेल में दो साल बंद रहे. इस दौरान 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया. अगस्त 1897 में बिरसा और उसके 400 सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला. 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेजी सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गई लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे. उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को संबोधित कर रहे थे, बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ्तारियां भी हुईं.

पड़ोसी राज्यों में भी पूजनीय हैं बिरसा

फरवरी 1900 में अंगेजी सेनाओं ने चक्रधरपुर में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया. बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस 9 जून 1900 को रांची जेल में ली. झारखंड के अलावा बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता है. बिरसा मुंडा की समाधि रांची के कोकर में स्थित है. वहीं रांची के बिरसा चौक समेत राज्य के कई इलाकों में उनकी स्टेच्यू स्थापित की गई है. उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार और बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details