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Cyber Crime: नियम से ही नियमों को तोड़ने में माहिर साइबर ठग! हाई टेक अपराधियों के आगे बेबस पुलिस - ऑनलाइन ठगी

झारखंड में साइबर अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. कार्रवाई का डंडा भले ही चल रहा है, पर इससे ज्यादा की संख्या में लोग हर रोज ठगी का शिकार हो रहे हैं. आलम ऐसा है कि झारखंड समेत राजधानी रांची में एक हफ्ते में 12 से ज्यादा केस ऑनलाइन ठगी के आ रहे हैं. लेकिन हाई टेक अपराधियों के आगे पुलिस बेबस नजर आ रही है.

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Published : Sep 11, 2021, 7:11 PM IST

Updated : Sep 11, 2021, 9:47 PM IST

रांचीः साइबर अपराधी हर दिन नए नए तरीके से लोगों की गाढ़ी कमाई उड़ा डालते हैं. बैंक अकाउंट से ऑनलाइन ठगी होने के मामले लगातार सामने आते रहते हैं. लेकिन खातों से गायब पैसों की रिकवरी बहुत कम हो पाती है, खासकर झारखंड में यह रिकवरी रेट बेहद कम है. आम लोग अपने पैसे को वापस पाने के लिए साइबर थानों के चक्कर लगाते रहते हैं, पर पैसे वापस नहीं मिलते हैं.

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प्रदेश में राजधानी रांची समेत एक हफ्ते में 12 से ज्यादा केस ऑनलाइन ठगी के आ रहे हैं. लेकिन हाई टेक अपराधियों के आगे पुलिस बेबस नजर आ रही है. क्योंकि पुलिस के पास ना तो कोई ऐसी तकनीक या सॉफ्टवेयर है, जिससे डिलेट तुरंत निकाला जा सके. पुलिस बस बैंक के भरोसे ही अपनी कार्रवाई आगे बढ़ाती है.

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बिना केवाईसी ऑनलाइन खुल जाता है बैंक अकाउंट
राजधानी रांची सहित पूरे झारखंड में हर सफ्ताह एक दर्जन से ज्यादा साइबर अपराध के मामले सामने आ ही जाते हैं. तरीका ठगी का चाहे कोई भी पैसे बैंक के खातों से ही गायब होते हैं. इसका मतलब है कि साइबर ठगी तभी होगी जब बैंक में खाते होंगे. अब सवाल ये है कि आखिर साइबर अपराधी इतने बड़े पैमाने पर बैंक में खाते कैसे खोल रहे हैं, जबकि किसी भी बैंक में खाते खुलवाने के लिए हर तरह के पहचान पत्र की जरूरत होती है.

साइबर अपराधी इन दिनों फर्जी आईडी का इस्तेमाल कर विभिन्न बैंकों में खाता खुलवाते हैं, उसी बैंक खाता में साइबर ठगी के रुपये ट्रांसफर करते हैं. हाल के दिनों में कई मामले ऐसे आए हैं, जिसमें पुलिस तकनीकी अनुसंधान के बाद भी अपराधियों तक नहीं पहुंच पाई है. रांची की साइबर डीएसपी यशोधरा के अनुसार सबसे बड़ी आफत वर्तमान समय में ऑनलाइन बैंक खातों का खुलना है. मौजूदा समय में कई ऐसे बैंक हैं जो ऑनलाइन बैंक खाता बिना केवाईसी के खोल दे रहे हैं. इन बैंकों में यह नियम है कि 60 दिनों के भीतर केवाईसी कंप्लीट कर लेना है और इसी का फायदा साइबर अपराधी उठा रहे हैं.

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60 दिन में हजारों को लूट लेते हैं
बिना केवाईसी के खुलने वाले खाते अपने आप 60 दिनों में बंद हो जाता हैं और इसी का इस्तेमाल साइबर अपराधी कर रहे है. खातों से निकासी के बाद जब तक पुलिस साइबर अपराधियों के खाते का डिटेल निकालकर उन तक पहुंचती है, तब तक साइबर अपराधी अपने खाते को खाली कर गायब हो जाते हैं.


सिम कार्ड भी आसानी से उपलब्ध है
ठगी को अंजाम देने के लिए बैंक खातों के अलावा अलग-अलग मोबाइल नंबर की भी जरूरी होती है. पुलिस अधिकारियों के मुताबिक इन खातों को खोलने के लिए ये प्रीएक्टिवेटेड सिम डिस्ट्रीब्यूटर्स से लेते थे. ये डिस्ट्रीब्यूटर रिटेलर अपनी दुकानों पर आने वाले लोगों की आईडी का मिस यूज कर उनकी जानकारी के बिना साइबर ठग सिम एक्टिवेट करा लेते थे. ऐसे सिम कार्ड का दुकानदारों 200 से 500 रुपये मिलते थे.


गरीबों को झांसा देकर खुलवाते हैं खाते
ऑनलाइन बैंक में खाता खोलने के अलावा ठगी की वारदात को अंजाम देने के लिए साइबर अपराधी गरीबों के बैंक खातों का इस्तेमाल कर रहे हैं. चंद रुपयों की लालच देकर वो उन्हें अपने जाल में फंसा लेते हैं. खाताधारक को मालूम ही नहीं होता है कि वो किसी आपराधिक वारदात का हिस्सा बनने जा रहे हैं. साइबर ठगी के अस्सी फीसदी मामले में पुलिस के सामने ये तथ्य सामने आया है. साथ ही एटीएम कार्ड का नंबर, पिन नंबर और अन्य जानकारियां हासिल कर खाते से रकम उड़ाना आम बात हो गई है.

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कई तरीकों से ठगी को देते हैं अंजाम

इसके अलावा कभी नौकरी के नाम पर युवाओं को ठगा जाता है तो कभी फेसबुक आईडी हैक कर साइबर अपराधी रकम समेट लेते हैं. इन सब घटनाओं को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल किया जाता है. पकड़े जाने से बचने के लिए साइबर अपराधी अपने बैंक खाते का इस्तेमाल नहीं करते बल्कि गरीबों को झांसा देकर वो उन्हें अपने जाल में फंसा लेते हैं. उनसे बैंक खाते का पूरा ब्योरा और एटीएम कार्ड हासिल कर लेते हैं. इसके आधार पर नेट बैंकिंग की सुविधा भी वो ले लेते हैं. जबकि खाताधारक को इसकी जानकारी नहीं होती है, उसे तो केवल इतना बताया जाता है कि कुछ रकम उसके खाते में आएगी, जिसे वो निकाल लेंगे. इसके बदले में खाताधारक को तीन-चार हजार रुपये थमा दिए जाते हैं, ये धनराशि भी उसके खाते में छोड़ दी जाती है.


पैसा ना के बराबर ही हो पाता है वापस
इस तरह साइबर फ्रॉड का शिकार होने के बाद लोग बैंक और साइबर थाना में शिकायत दर्ज करवाते हैं, पर उन्हें निराशा ही हाथ लगती है. बैंक उसी अकाउंट पर कार्रवाई करता है, जिसमें पैसे ट्रांसफर होते हैं, इसपर साइबर अपराधी बहुत सतर्क रहते हैं. वह तुरंत इस पैसे को दूसरे मोबाइल वॉलिट, पेटीएम या बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर देते हैं और डेबिट कार्ड के जरिए राशि निकाल लेते हैं.

सबसे प्रमुख कारण है क्विक रिस्पांस का नहीं होना
राजधानी में लगातार बैंक अकाउंट से ऑनलाइन ठगी होने के मामले सामने आ रहे हैं. इनमें सबसे बड़ी खामी और असुविधा पीड़ित को यह होती है कि बैंक की तरफ से जो तत्काल रिस्पांस मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता है. इसके साथ हाई टेक होने का दावा करने वाली पुलिस भी 24 घंटे या उससे ज्यादा समय तक तो यह भी पता नहीं लगा पाती है कि ऑनलाइन ठगी का ट्रांजेक्शन कहां हुआ है. दोनों जिम्मेदार एजेंसी के रवैया और इसे लेकर स्पेसिफिक सिस्टम के ना होने से लोगों की जमा पूंजी ठग लिए जाते हैं.

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पुलिस के पास नहीं तकनीक, जिससे तत्काल निकाली जा सके जानकारी
झारखंड पुलिस के पास ऐसी कोई तकनीक नहीं है, जिससे पता लगाया जा सके कि पैसे कहां और किस खाते में ट्रांसफर किए गए हैं. ऑनलाइन ठगी के मामले में पुलिस बैंक के डिटेल के भरोसे बैठी रहती है. बैंक से ट्रांजेक्शन की जानकारी मिलने के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाती है. जबकि कई ऐसे साफ्टवेयर या सिस्टम आ गए हैं, जिससे ट्रांजेक्शन की जानकारी निकाल सकते हैं कि पैसा किस खाते में गया है, उसे ट्रैक किया जा सकता है. लेकिन पुलिस को कॉल डिटेल या ट्रांजेक्शन डिटेल निकाले में ही समय लग जाता है.

Last Updated : Sep 11, 2021, 9:47 PM IST

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