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देश का इकोनॉमी ग्रोथ रेट माइनस 7.5 फीसदी, आधिकारिक रूप से मंदी में प्रवेश कर गयी भारतीय अर्थव्यवस्था: रामेश्वर उरांव

सितंबर तिमाही के लिए जीडीपी के आंकड़े सामने आ चुके हैं. इस तिमाही में देश के इकोनॉमी का ग्रोथ रेट माइनस 7.5 फीसदी रहा. इससे पहले प्रथम तिमाही अप्रैल-जून में भी देश का जीडीपी ग्रोथ रेट माइनस 23.9 फीसदी रहा था और लगातार दूसरे दर में भी जीडीपी वृद्धि दर नकारात्मक रहने से यह पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में नहीं है.

Rameshwar oraon Statement on Indian economy growth rate
वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव

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Published : Nov 28, 2020, 4:45 PM IST

रांचीः झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सह राज्य के वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव ने शनिवार को कहा कि सितंबर तिमाही के लिए जीडीपी के आंकड़े सामने आ चुके हैं. इस तिमाही में देश के इकोनॉमी का ग्रोथ रेट माइनस 7.5 फीसदी रहा. इससे पहले प्रथम तिमाही अप्रैल-जून में भी देश का जीडीपी ग्रोथ रेट माइनस 23.9 फीसदी रहा था और लगातार दूसरे दर में भी जीडीपी वृद्धि दर नकारात्मक रहने से यह साबित हो जाता है कि देश की अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में नहीं है. लगातार दूसरी तिमाही में जीडीपी के माइनस में रहने से भारतीय अर्थव्यवस्था आधिकारिक रूप से मंदी में प्रवेश कर चुकी है.

उन्होंने बताया कि जीडीपी ग्रोथ रेट के आंकड़ों से यह पता चलता है कि इस दौरान आर्थिक क्षेत्र में दुनिया भर में सबसे खराब प्रदर्शन भारत का ही रहा है. ताजा आंकड़ों से साफ पता चलता है कि दूसरी तिमाही में भारत की इकोनॉमी ने दुनिया की बड़ी इकोनॉमिक देशों में ब्रिटेन के बाद सबसे खराब स्थिति में है पिछले 11 तिमाही से इसमें गिरावट का सिलसिला जारी है. उन्होंने कहा कि सिर्फ कोरोना संक्रमणकाल में ही नहीं बल्कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रचार-प्रसार के पहले से ही केंद्र सरकार की गलत नीतियों की वजह से जीडीपी में गिरावट दर्ज की जा रही थी.

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रामेश्वर उरांव ने कहा कि सालाना आधार पर देखेंगें तो वित्त वर्ष 2017-18 में यह 7 फीसदी, 2018-19 में 6.1 फीसदी और 2019-20 में 4.2 फीसदी रहा, जबकि तमाम रेटिंग एजेंसियों और वित्तीय मामलों का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2020-21 में इसमें कम से कम 9-12 फीसदी की गिरावट का अनुमान है. वहीं, आरबीआई ने भी 9.5 फीसदी गिरावट का अनुमान लगाया है. इसके बावजूद केंद्र सरकार स्थिति में सुधार के लिए कोई ठोस पहल करने के बजाय 20 लाख करोड़ रुपये जैसे हवा-हवाई पैकेज की बात कर रही है जिसका आम आदमी, गरीब, मजदूर, व्यवसायी, किसान और उद्यमियों को कोई राहत मिलता नहीं दिख रहा है.

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