रांची: 2020 के मार्च महीने में झारखंड में कोरोना (Corona In Jharkhand) ने दस्तक दिया था. लॉकडाउन के बीच कोरोना गाइडलाइन का पालन, 3T यानी ट्रेसिंग, टेस्टिंग और ट्रीटमेंट के साथ करीब एक वर्ष गुजर गए. 2021 में ऐसा लगने लगा था कि झारखंड में कोरोना (Corona In Jharkhand) खत्म हो रहा है और उसके विकराल होने से पहले ही उसपर विजय पा ली गई है. लेकिन अप्रैल 2021 में झारखंड में डेल्टा वेरिएंट (Delta Variants in Jharkhand) ने तबाही मचानी शुरू कर दी. अस्पतालों के बाहर रूह कंपा देने वाला का मंजर दिखाई देने लगा. हर तरफ चीख पुकार मच गई. अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में लोग अस्पताल के बेड और ऑक्सीजन के लिए भागते दिखे. कई लोगों ने ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ दिया. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में अब तक 5142 लोगों की मौत कोरोना से हुई है. जिसमें चार हजार से अधिक मौतें 2021 में ही हुए.
रिम्स में मरीजों को देखने वाले जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ विकास सिंह भी उन दिनों को याद कर भावुक हो जाते हैं. वे कहते हैं कि भगवान वैसे दिन फिर कभी न दिखाए. उन्होंने कहा कि उस वक्त हालत ये था कि अस्पताल में बेड कम पड़ गए थे और घंटों एंबुलेंस में ही मरीज पड़े रहते थे. कई बार मरीज की मौत एंबुलेंस में ही हो गई. कोरोना काल में अपने डॉक्टर पिता को खोने वाली बेटी सुकृति के आंखों के आंसू अभी तक सूखे नहीं हैं. वे कहती हैं कि उसने पूरी कोशिश की अपने पिता के जीवन को बचाने की पर सरकार और तंत्र की ओर से कोई पूछने तक नहीं आया. वह सवाल करती हैं कि क्या यही दायित्व होता है सरकार का एक डॉक्टर के प्रति?