रांचीः परीक्षा आयोजन में गड़बड़ी को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहनेवाला Jharkhand Public Service Commission यानी जेपीएससी इन दिनों फिर विवादों में है. इस बार भी वही आरोप लग रहे हैं, जिससे इसका पुराना रिश्ता रहा है यानी भ्रष्टाचार का. जो 7th-10th JPSC PT exam के रिजल्ट आने के साथ ही शुरू हो गया है.
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अभ्यर्थी लगाते रहे हैं धोखाधड़ी का आरोप
252 पदों के साथ विज्ञापित सातवीं, आठवीं, नौवीं और 10वीं संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा पूर्व से ही विवादों में रहा है. इस परीक्षा के लिए पहले भी विज्ञापन जारी किया जा चुका था. जिसे बाद में स्थगित कर सिर्फ सातवीं से दसवीं सिविल सेवा के रूप में सरकार ने लाया जबकि पदों की संख्या उतनी ही यानी 252 ही रखा गया. सरकार ने सिर्फ सातवीं से दशमी नाम देकर सत्र ठीक करने की चाल चली थी जबकि सरकारी विभागों में रिक्तियां आज भी इससे कहीं ज्यादा है.
जेपीएससी विवाद पर छात्र और नेताओं के बयान सातवीं से दशमी का विज्ञापन आने के बाद उम्र सीमा को लेकर भी विवाद उठा हालांकि बाद में सरकार ने उम्र सीमा में संशोधन कर परीक्षा लेने की अनुमति प्रदान कर दी, छात्र इसे धोखाधड़ी मानते हैं. इन सबके बीच झारखंड लोक सेवा आयोग द्वारा सातवीं से दसवीं संयुक्त सिविल सेवा के लिए प्रारंभिक परीक्षा तो आयोजित किए गए मगर इसके रिजल्ट आते ही यह फिर विवादों में आ गया. आंदोलनरत छात्रों का मानना है कि कई परीक्षा केंद्रों पर लगातार रोल नंबर के अभ्यर्थी पास हुए हैं जो भ्रष्टाचार को दर्शाता है हालांकि आयोग नहीं इसपर सफाई देते हुए जांच कराने की बात कही है.
शीतकालीन सत्र में उठेगा जेपीएससी मुद्दा
जेपीएससी का मुद्दा 16 दिसंबर से शुरू हो रहे झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी उठेगा. आंदोलनरत छात्रों की मांग का समर्थन कर रहे विपक्षी दल बीजेपी ने सदन में इसे उठाने का निर्णय लिया है. वहीं माले ने भी जेपीएससी छात्रों पर हुए लाठीचार्ज और अनियमितता को लेकर सदन में सरकार को घेरने का मन बनाया है. इधर कांग्रेस ने विपक्ष पर छात्रों को बरगलाने का आरोप लगाते हुए जल्द ही जेपीएससी के कार्यशैली में सुधार आने की उम्मीद जतायी है.
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हमेशा विवादों में रहा JPSC
इस विवाद का का खामियाजा विद्यार्थी भुगतते रहे हैं, कभी पैरवीपुत्रों की नियुक्ति तो कभी नियम विरुद्ध नियुक्ति के आरोप जेपीएससी पर लगते रहे हैं. राज्य गठन के बाद वर्ष 2003 में झारखंड लोक सेवा आयोग की ओर से 64 पदों के लिए प्रथम सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन किया गया था. इसके बाद 172 पदों के लिए द्वितीय सिविल सेवा परीक्षा ली गयी, जिसमें भी काफी विवाद हुआ. आयोग के पदाधिकारियों, राजनेताओं और शिक्षा माफिया के रिश्तेदारों की नियुक्ति के आरोप आयोग पर लगते रहे.
इसके बाद आयोग की ओर से तीसरी सिविल सेवा परीक्षा 242 पदों के लिए आयोजित की गयी. इसमें कुछ अभ्यर्थियों ने रिजल्ट में गड़बड़ी की शिकायत को लेकर हाई कोर्ट में मामला दायर किया. हालांकि कोर्ट ने उस पर संज्ञान नहीं लिया और रिजल्ट जारी हो गया. आयोग द्वारा चतुर्थ सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन 219 पदों के लिए किया गया, इसमें भी विवाद उठा. इसके बाद पांचवीं सिविल सेवा परीक्षा 277 पदों के लिए लिया गया. इसमें भी पीटी में आरक्षण देने की मांग को लेकर विवाद उठा. यह मामला भी हाई कोर्ट पहुंचा, बाद में हाई कोर्ट ने रिजल्ट जारी करने का आदेश दिया. फिर से छठी सिविल सेवा परीक्षा 326 पदों के लिए लिया गया. लेकिन इसमें भी पहले आरक्षण, फिर क्वालिफाइंग मार्क्स को लेकर विवाद उठा, मामला हाई कोर्ट पहुंचा.
भ्रष्टाचार के लग रहे आरोपों के बीच सरकार एक साथ सातवीं से दसवीं जेपीएससी की पीटी परीक्षा आयोजित कर वाहवाही लेने के जुगत में है. लेकिन आंदोलनरत छात्र इसे सरकार का माइंड वॉश बताकर आलोचना कर रहे हैं. उनका मानना है कि अगर बैकलॉग को क्लीयर किया गया है तो चार जेपीएससी सिविल सेवा के पदों की परीक्षा एक साथ होनी चाहिए थी. क्यों सिर्फ 252 पदों के लिए ही परीक्षा ली गयी है जो अपने आपमें सरकार की मंशा को दर्शाता है.