झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / city

Congress Ramgarh Adhiveshan 1940: अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन पर हुआ था फैसला, नेताजी सुभाष ने की थी समानांतर सभा - Netaji Subhash parallel meeting

झारखंड, जिसकी मिट्टी में आदि संस्कृति की महक है तो जंग-ए-आजादी की पहली लड़ाई की दास्तां भी है. वीर सपूत सिदो-कान्हू के नेतृत्व में सन 1855 की हूल क्रांति, सन 1895 में भगवान बिरसा मुंडा का उलगुलान का नारा झारखंड की फिजाओं में अब भी गुंजायमान है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पावन कदम छोटानागपुर की इस धरती पर पड़े हैं. जिनके पदचिन्ह यहां की राजनीतिक दिशा और दशा को मार्गदर्शन के साथ नया आयाम दिया है.

Congress Ramgarh Adhiveshan
अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन

By

Published : Jan 26, 2022, 11:45 AM IST

रामगढ़ः साल 1940 में मार्च के महीने में 18 से 20 की वो तारीख, इतिहास में दर्ज हो गई. इस कालखंड में झारखंड की धरती भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 53वें अधिवेशन की गवाह बनी. रामगढ़ में दामोदर नदी के किनारे जंगलों और झुरमुट के बीच कई पंडाल लगाए गए जो रामगढ़ अधिवेशन के नाम पर इतिहास में दर्ज हो गया. झमाझम बारिश, जोरदार मेघगर्जन और खराब मौसम के बीच भी आजादी के मतवालों के कदम रोके नहीं रूके.

इसे भी पढ़ें- महात्मा गांधी ने 'बापू कुटीर' में बिताया था घंटों वक्त, जायसवाल परिवार की यादें अब तक हैं ताजा

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन दिवसीय 53वें अधिवेशन में ऐतिहासिक 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन की नींव पड़ी. जिसने स्वतंत्रता के आंदोलन में एक मील का पत्थर साबित हुआ. इसके अलावा नेताजी ने गरम दल के माध्यम से कांग्रेस से हटकर समानांतर सभा कर आजादी के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया.

बापू, नेहरू, पटेल, राजेंद्र प्रसाद समेत तमाम बड़े नेता हुए शामिल

सन 1940 में रामगढ़ में 18 मार्च से 20 मार्च तक झारखंड की पावन धरती पर राष्ट्रीय स्तर के नेताओं का प्रवास रहा. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे तमाम नेताओं की भागीदारी हुई. अधिवेशन की अध्यक्षता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने की. जिनकी जोशीली तकरीर से लोगों में ऊर्जा, ओज और उत्साह का संचार हुआ.

बापू ने किया था प्रदर्शनी का उद्घाटन

महात्मा गांधी इस अधिवेशन में रांची से फिटिन गाड़ी में रामगढ़ पहुंचे थे. अधिवेशन स्थल पर लगाई गई प्रदर्शनी का बापू ने उद्घाटन किया था. बापू ने यहां उपस्थित महिलाओं से पर्दा प्रथा, छूआछूत, अशिक्षा, अंधविश्वास जैसी कुरीतियों से जेहाद करने की अपील की.

स्थानीय नेताओं की हुई थी भागीदारी

तीन दिन तक चलने वाले अधिवेशन में मूसलाधार बारिश के बीच भी स्थानीय नेताओं की काफी संख्या में भागीदारी हुई. डॉ. राजेंद्र प्रसाद के प्रयास और हजारीबाग के रामनारायण सिंह की इच्छा थी कि कांग्रेस का अधिवेशन रामगढ़ में हो, इसलिए इस स्थल को चुना गया. राजा रामगढ़ ने इसे सफल बनाने में तन-मन-धन से सहयोग दिया था. केबी सहाय, सरस्वती देवी, सुखलाल सिंह, केशव प्रसाद सिंह समेत तमाम नेताओं ने इसे सफल बनाने में सहयोग दिया.

इसे भी पढ़ें- रांची की इस 'कार' से जुड़ी है गांधीजी की यादें, रामगढ़ तक का किया था सफर

टाना भगतों ने सूत काता, उमड़ी थी हजारों की भीड़

रामगढ़ अधिवेशन में टाना भगतों ने अधिवेशन के दौरान चरखा चलाकर सूत भी काता था. आस-पास के गांवों से किसान, मजदूर, पुरुष-महिलाओं और युवाओं का हुजूम अधिवेशन में भाग लेने के लिए उमड़ा था. जिन्होंने इन नेताओं के विचार सुने, उनके साथ स्वतंत्रता के आंदोलन में कूद जाने की ठानी. पहली बार इतनी बड़ी संख्या में लोग रामगढ में जुटे थे.

अधिवेशन में नेताजी ने सीतारमैया को हराया था

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यादों के उन लम्हों को रामगढ़ अपने इतिहास में समेटे हुए है. नेताजी की वो यादें लोगों के जेहन में आज भी ताजा है. रामगढ़ की धरती से ही स्वाधीनता संग्राम के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग का एलान किया गया था. रामगढ़ में साल 1940 में 18 से 20 मार्च तक कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ. जिसमें देश के सभी बड़े नेता भाग लेने आए थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस खूंटी होते हुए रांची आए और यहां लालपुर में फ्रीडम फाइटर फणींद्रनाथ आयकत के यहां रुके थे. रांची से रामगढ़ आकर वो कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल हुए, वो अध्यक्ष पद के उम्मीदवार थे. कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में उन्होंने सीतारमैया को 203 मतों से हराकर जीत हासिल की थी.

इसे भी पढ़ें- सुभाष चंद्र बोस का झारखंड से था गहरा नाता, कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में शामिल हुए थे नेताजी, पढ़ें ये रिपोर्ट

नेता जी ने किया था समानांतर अधिवेशन

रामगढ़ की धरती से ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अलग राह भी पकड़ ली और उन्होंने समानांतर अधिवेशन किया. शहर में हरहरी नाला के किनारे नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक, कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, एमएन राय वादी और वामपंथी समूहों के साथ मिलकर वैकल्पिक रणनीति तैयार की थी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ रामगढ़ में समानांतर अधिवेश किया. उस वक्त पूरे नगर में एक विशाल शोभा यात्रा निकली थी.

जिसमें महंथ धनराज पुरी, कैप्टन शाहनवाज खां, कैप्टन लक्ष्मी बाई सहगल, शीलभद्र जैसे दिग्गज लोग शामिल हुए. नेताजी के साथ उनके निकट सलाहकार डॉ. यदु मुखर्जी समेत कई अन्य नेता भी शामिल हुए थे. नेताजी ने अपने सम्मेलन में कहा था कि यह साम्राज्यवादी युद्ध है और यही मौका है, जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ चौतरफा युद्ध छेड़कर आजादी हासिल कर ली जाए. उन्होंने कहा था कि हम अवसर का उपयोग करें और समय रहते काम करें. रामगढ़ में नेताजी की ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग लड़ने की घोषणा से प्रभावित लोग नेताजी के साथ जुड़ते चले गए.

इसे भी पढ़ें- नेताजी जयंती विशेष: सुभाष चंद्र बोस की यादों को संजोकर रखा है रांची का आयकट परिवार

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस से अलग होकर कुछ प्रमुख नेताओं के साथ अपना अलग एक गरम दल बनाया. जिसमें उन्होंने संपूर्ण आजादी के लिए कोई समझौता नहीं का नारा बुलंद करते हुए 19 मार्च 1940 को स्वामी सहजानंद सरस्वती के आह्वान पर रामगढ़ में सम्मेलन किया था. रामगढ़ अधिवेशन के दो वर्ष बाद आठ अगस्त 1942 में पूरे देश में अगस्त क्रांति के तहत अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा पूरे देश में गूंजने लगा. झारखंड की धरती रामगढ़ से उठी भारत छोड़ो आंदोलन की चिंगारी ने पूरे भारत को एक सूत्र बांध दिया. जिसका नतीजा ये रहा कि अंग्रेजों को सन 1947 में भारत छोड़ना ही पड़ा.

सन 1940 में मार्च 18 से 20 तक कांग्रेस का 53वां अधिवेशन एक साथ कई घटनाओं का गवाह बना. कई ऐसे घटनाक्रम भी हुए, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा और दशा दी. इसके अलावा रागमढ़ अधिवेशन गवाह बना, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो खेमों में बंटने का. रामगढ़ की ये जमीन आला नेताओं के समानांतर अधिवेशन की कहानी कहती है. यहां की फिजाओं में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस सरीखे नेताओं के भाषण और अभिभाषण से गुंजायमान है. झारखंड की सियासत में भी ऐसे आला नेताओं के विचार की आभा अब भी विद्यमान है.

इसे भी पढ़ें- मजदूरों के 'नेताजी': टाटा स्टील कंपनी में वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष थे सुभाष चंद्र बोस

पुष्प वर्षा की थी तैयारी, बारिश से सफल नहीं हो सका

रामगढ़ अधिवेशन में रांची के एक प्रमुख व्यवसायी धर्मचंद्र सरावगी को विमान से अधिवेशन स्थल पर पुष्प वर्षा की जिम्मेदारी दी गई थी. अधिवेशन के उद्घाटन पर आकाश से फूलों की बारिश करनी थी. निर्धारित समय पर धर्मचंद अपने फ्लाइंग क्लब का वायुयान लेकर रामगढ़ की ओर उड़े, पर तूफान और झमाझम बारिश के कारण विमान संकट में फंस गया. जिसके बाद उन्होंने साहस और सूझबूझ का परिचय देते हुए विमान को जमशेदपुर हवाईअड्डे पर उतार लिया था.

रामगढ़- एक परिचय

वर्ष 1991 में रामगढ़ उपखंड का गठन हुआ था. 12 सितंबर 2007 को रामगढ़ को जिला बनाया गया, जिसमें रामगढ़, गोला, मांडू और पतरातू ब्लॉक शामिल थे, बाद में दुलमी और चितरपुर प्रखंड बनाया गया. इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री झारखंड मधु कोडा ने किया था. जिला पंजीकरण कार्यालय गोला में है, समाहरणालय नए भवन में आ गया है. आजाद भारत के पहले रामगढ़ में, रामगढ़ कैंट काउंसिल की संरचना 1941 में हुई थी. एसआरसी और पीआरसी सेना प्रशिक्षण के दो केंद्र है, 1928 में रामगढ़ रोड रेलवे स्टेशन का गठन किया गया था.

ABOUT THE AUTHOR

...view details