रांची: प्राकृतिक संसाधनों से धनी राज्य झारखंड पर कुपोषण का एक बदनुमा दाग भी है. राज्य में 5 साल तक के बच्चों में कुपोषण की स्थिति बेहद खराब है. अधिक गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या भी काफी है.
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राज्य में महिला एवम बाल विकास विभाग, यूनिसेफ, नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस सीवियर एक्यूट सैम और स्टेट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑफ सीवियर एक्यूट माल न्यूट्रिशन सेंटर के साथ मिलकर रिम्स का PSM विभाग लातेहार के दो प्रखंड लातेहार सदर और चंदवा में एक शोध कर रहा है कि समुदाय स्तर पर अति गंभीर कुपोषित बच्चों का प्रबंधन कैसे किया जा सकता है. पश्चिमी सिंहभूम में अति गंभीर कुपोषित बच्चों के समुदाय स्तर पर प्रबंधन को लेकर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है.
इस तरह के प्रोजेक्ट पहले से तेलंगाना, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में चल रहा है. पश्चिमी सिंहभूम में यह प्रोजेक्ट पहले 2 प्रखंड में शुरू हुआ था, जो अब पूरे जिले में चल रहा है.
शोध के प्रारंभिक नतीजे चौकाने वाले
कुपोषण पर चल रहे शोध का नेतृत्व कर रहीं रिम्स प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसीन (PSM) विभाग की सह प्राध्यापक डॉ आशा किरण कहती हैं कि अभी शोध का काम चल ही रहा है. लेकिन मुख्य रूप से जो बात सामने आई है, वह यह कि कोरोना काल आंगनबाड़ी के माध्यम से पोषाहार कुपोषित बच्चों को मिलना था, उसमें खलल पड़ा है और अति गंभीर कुपोषित बच्चों को भी नियमानुसार डबल राशन नहीं दिया गया. जिसके कारण न सिर्फ कुपोषण की समस्या और विकट हुई, बल्कि शोध करने में भी परेशानी हो रही है. अब जब तक Take Home Rashan व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो जाता, तब तक अति गंभीर कुपोषित बच्चों को पोषक पदार्थ से कैसे कुपोषण दूर किया जा सकता है इस पर काम किया जा सकता है.