रांची:झारखंड में राज्यसभा की दो सीटें जल्द ही खाली हो रही हैं, ये दोनों वह सीट हैं जिन्हें भाजपा ने वर्ष 2016 के राज्यसभा चुनाव में जीतें थे. तब राज्य में रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार थी और तब मुख्तार अब्बास नकवी के साथ साथ भाजपा प्रत्याशी के रूप में महेश पोद्दार की जीत ने सबको चौंका दिया था. तब हार वर्तमान मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के भाई बसंत सोरेन की हुई थी. जीत के लिए जरूरी और स्पष्ट आंकड़ें नहीं होते हुए भी तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के रणनीतिक कौशल की वजह से दोनों सीटें भाजपा की झोली में जाने के बाद रघुवर दास की खूब वाहवाही हुई थी.
अब छह साल बाद मुख्तार अब्बास नकवी और महेश पोद्दार की सीटें खाली हो रही हैं, पर राज्य की राजनीतिक परिस्थितियां 2016 वाली नहीं है. 2019 के बाद से सत्ता में महागठबंधन के नेता के रूप में हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री हैं, विधानसभा के अंदर झामुमो के पास अकेले जीत के लिए जरूरी 27 विधायक के वोट से 03 अधिक यानी 30 विधायक हैं, सहयोगी कांग्रेस के पास 15+01 (प्रदीप यादव को जोड़ कुल 16 विधायक हैं) राजद के भी एक विधायक हैं.
इस तरह महागठबंधन के पास पहले सीट पर जीत के लिए 27 विधायकों के स्पष्ट समर्थन के अलावा 19 विधायक सरप्लस हैं. ऐसे में प्रथम वरीयता के वोट से राज्यसभा की दूसरी सीट पर जीत का परचम लहराने के लिए महागठबंधन को 08 और विधायकों का समर्थन चाहिए. यहीं से महागठबंधन के नेता के रूप में हेमंत सोरेन की रणनीतिक कौशल की जरूरत पड़ जाती है कि क्या वह माले अलावा, निर्दलीय, आजसू, एनसीपी के विधायकों को महागठबंधन के पक्ष में मतदान के लिए तैयार कर पाते हैं.
भाजपा को एक सीट पर जीत के लिए सिर्फ 01 विधायक की जरुरत:विधायक बंधु तिर्की की सदस्यता समाप्त हो जाने के बाद झरखंड विधानसभा में निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या घटकर 80 रह गयी है. ऐसे में अब प्रथम वरीयता के वोट से जीत का मैजिक नंबर भी 28 से घटकर 27 हो गया है. भाजपा के पास 25 विधायक हैं और बाबूलाल को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है, ऐसे में भाजपा सिर्फ एक और वोट का जुगाड़ कर अपने प्रत्याशी को जीता सकती है.