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सीएम ने एसीबी को मैनहर्ट मामले की जांच का दिया आदेश, सवालों के घेरे में रघुवर दास समेत कई लोग - मैनहर्ट केस रांची की खबरें

रांची के सीवरेज-ड्रेनेज निर्माण का डीपीआर तैयार करने के लिए मैनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति में हुई गड़बड़ी की जांच एसीबी करेगी. इसके लिए सीएम हेमंत सोरेन ने आदेश जारी कर दिया है.

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सीएम हेमंत सोरेन और रघुवर दास

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Published : Oct 1, 2020, 10:12 PM IST

रांची: राजधानी रांची के सीवरेज-ड्रेनेज निर्माण का डीपीआर तैयार करने के लिए मैनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति में हुई गड़बड़ी की जांच एसीबी करेगी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस बाबत आदेश दे दिया है.

एसीबी को आदेश जारी

मैनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति में तत्कालीन नगर विकास मंत्री रघुवर दास और अन्य की ओर से की गई अनियमितता, भ्रष्टाचार और षड्यंत्र के विरुद्ध कानून की प्रासंगिक धाराओं के तहत मामला दर्ज कर आवश्यक कार्रवाई करने के मामले में सरयू राय, सभापति, सामान्य प्रयोजन समिति, सदस्य, झारखंड विधानसभा के परिवाद पत्र और उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में अग्रेतर कार्रवाई के लिए एसीबी को आदेश जारी किया गया है.

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सरयू राय लंबे समय से उठाते रहे हैं मामला

मैनहर्ट परामर्शी कंपनी की नियुक्ति में बरती गई अनियमितता के मामले को विधायक सरयू राय लंबे समय से उठाते रहे हैं. उन्होंने इस पूरे मामले पर एक किताब भी लिखी है. जिसको पिछले दिनों उन्होंने जारी भी किया था.

सरयू राय ने सीएम को लिखा था पत्र

16 सितंबर को सरयू राय ने सीएम को पत्र लिखकर कहा था कि मैनहर्ट नियुक्ति घोटाला मामले में अग्रसर कार्रवाई के लिए एसीबी ने 2009 से 2011 के बीच 5 बार अनुमति मांगी थी जो नहीं मिली. जबकि अब तक हुई जांच में यह बात सामने आई है कि अयोग्य होने के बावजूद मैनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति हुई थी.

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'मामले को दबा कर रखा गया'

उन्होंनें अपने पत्र के जरिए सीएम को यह भी याद दिलाया था कि तत्कालीन मंत्री की तमाम लीपापोती के बावजूद विधानसभा के कार्यान्वयन समिति ने अपने जांच प्रतिवेदन में स्पष्ट कर दिया था कि मैनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति अवैध थी. यही नहीं कार्यान्वयन समिति के प्रतिवेदन पर नगर विकास विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की. बाद में 5 अभियंता प्रमुखों की समिति ने भी पाया कि कंपनी की नियुक्ति अवैध तरीके से की गई थी. इस मामले को लेकर हाई कोर्ट में भी जनहित याचिका दायर हुई. तब हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से निगरानी आयुक्त के पास परिवाद दायर करने को कहा था. याचिकाकर्ता वहां भी गए लेकिन फिर भी मामले को दबा कर रखा गया.

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