रांची: डुमरदगा स्थित बाल सुधार गृह में क्षमता से दोगुने बाल किशोर बंदी रखे गए हैं. बाल सुधार गृह की क्षमता 110 बंदियों की है, जबकि अभी यहां पर 150 से ऊपर बंदी रह रहे हैं. सुधार गृह में बंदियों के लिए 10 कमरे बनाए गए हैं, हर कमरे की क्षमता सात बंदियों की है. वर्तमान में एक कमरे में 15 बंदियों को रखा जा रहा है.
नहीं है मुकम्मल व्यवस्था
आलम ये है कि क्षमता से दोगुने बंदियों के कारण सोने, उठने-बैठने से लेकर खाने-पीने की भी दिक्कत होती है. सबसे महत्वपूर्ण ये है कि ज्यादा भीड़ के कारण सुधार गृह में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई चौपट हो गई है. जो बच्चे पढ़ना चाहते हैं वो चाहकर भी नहीं पढ़ पाते हैं. न तो वातारण मिल पाता है और न ही संसाधन. सर्वांगीण विकास के लिए चलाए जा रहे पेंटिंग, हस्तशिल्प प्रशिक्षण आदि भी बंद हो गए हैं. पिछले दो साल से पुनर्वास के समस्त कार्यक्रम लगभग ठप पड़े हैं.
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दो प्रमंडल के सात जिलों के लिए सिर्फ दो बाल सुधार गृह
रांची के बाल सुधार गृह में सात जिले के बंदियों को रखा जाता है. दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के चार जिले रांची, लोहरदगा, सिमडेगा, खूंटी के बंदियों को तो यहां भेजा ही जाता है. पलामू प्रमंडल में बाल सुधार गृह नहीं होने के कारण पलामू, गढ़वा और लातेहार के बाल अपराधियों को भी डुमरदगा बाल सुधार गृह ही भेज दिया जाता है. जबकि नियम के मुताबिक हर जिले में बाल सुधार गृह होना चाहिए.
बच्चों पर पड़ रहा प्रभाव
16 साल से कम उम्र के वैसे बच्चे जो अपराध की दुनिया में कदम बढ़ा कर अपराधी प्रवृत्ति के बन जाते हैं. वैसे बच्चों को पुनर्वास के लिए बाल सुधार गृह में रखे जाने का प्रावधान है. लेकिन जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का उल्लंघन कर 16 से 18 साल के वैसे बच्चे जो जघन्य अपराध कर कनविक्टेड हैं, उन्हें भी यहां के बच्चों के साथ ही रखा जा रहा है. कारण है सेफ्टी ऑफ प्लेस कैटेगरी के तहत बच्चों को रखने के लिए सरकार के पास अब तक कोई सुरक्षित जगह नहीं है. जिससे आपराधिक मनोवृति का प्रभाव कम उम्र और सामान्य अपराध वाले बच्चों पर पड़ रहा है.