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नवरात्रि का आज पहला दिन, ऐसे करें घट स्थापना, जानें सामग्री, मुहूर्त एवं विधि

नवरात्रि का त्‍योहार पूरे भारत में मनाया जाता है. उत्तर भारत में नौ दिनों तक देवी मां के अलग-अलग स्‍वरूपों की पूजा की जाती है. भक्‍त पूरे नौ दिनों तक व्रत रखने का संकल्‍प लेते हैं.

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नवरात्रि का आज पहला दिन

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Published : Mar 25, 2020, 11:50 AM IST

पटना: ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना चैत्र प्रतिपदा से ही आरम्भ किया था. इस वर्ष चैत्र प्रतिपदा 29 मार्च से आरम्भ हो रही है. इसी के साथ हिन्दू संवत्सर प्रारम्भ होगा. नवरात्र आदि शक्ति दुर्गा के प्रति आस्था और विश्वास का पर्व है.

इन दिनों मां के भक्त जप, तप और विभिन्न अनुष्ठानों से मां की कृपा पाने के लिए अनुष्ठान करते हैं. वर्ष में चार नवरात्र पड़ते हैं. जिनमें चैत्र और आश्विन सर्वविदित हैं, जबकि आषाढ़ और माघ के नवरात्र को गुप्त नवरात्र माना जाता है.

बुधवार से नवरात्र शुरू हो गया है. नवरात्र के आरंभ में प्रतिपदा तिथि को कलश या घट की स्थापना की जाती है. कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता है. हिन्दू धर्म में हर शुभ काम से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है. इसलिए नवरात्र की शुभ पूजा से पहले कलश के रूप में गणेश को स्थापित किया जाता है. आइए जानते हैं कि नवरात्र में कलश कैसे स्थापना किया जाता है :

कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री:

  • शुद्ध साफ की हुई मिट्टी
  • शुद्ध जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश
  • मोली (लाल सूत्र)
  • साबुत सुपारी
  • कलश में रखने के लिए सिक्के
  • अशोक या आम के 5 पत्ते
  • कलश को ढंकने के लिए मिट्टी का ढक्कन
  • साबुत चावल
  • एक पानी वाला नारियल
  • लाल कपड़ा या चुनरी

कलश स्थापना की विधि:
नवरात्र में देवी पूजा के लिए जो कलश स्थापित किया जाता है वह सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का ही होना चाहिए. लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग पूजा में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

भविष्य पुराण के अनुसार कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध कर लेना चाहिए. जमीन पर मिट्टी और जौ को मिलाकर गोल आकृति का स्वरूप देना चाहिए. उसके मध्य में गड्ढा बनाकर उस पर कलश रखें. कलश पर रोली से स्वास्तिक या ऊं बनाना चाहिए.

कलश के उपरी भाग में कलावा बांधे. इसके बाद कलश में करीब अस्सी प्रतिशत जल भर दें. उसमें थोड़ा सा चावल, पुष्प, एक सुपाड़ी और एक सिक्का डाल दें. इसके बाद आम का पञ्च पल्लव रखकर चावल से भरा कसोरा रख दें. जिस पर स्वास्तिक बना और चुनरी में लिपटा नारियल रखें.

अंत में दीप जलाकर कलश की पूजा करनी चाहिए. कलश पर फूल और मिठाइयां चढ़ाना चाहिए.

नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों की पूजा
नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों महालक्ष्मी, महासरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं. इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है. दुर्गा का मतलब जीवन के दुख को हरने वाली होता है.

नवरात्र के नौ दिनों में नौ देवियों की आराधना की जाती है:

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्माचारिणी. तृतीय चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेति चतुर्थकम्पं.
चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च. सप्तमं कालरात्रि महागौरीति चाऽष्टम्.
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिताः

  • प्रथम दिनः शैलपुत्री इसका अर्थ पहाड़ों की पुत्री होता है.
  • द्वितीय दिनः ब्रह्मचारिणी इसका अर्थ ब्रह्मचारीणी.
  • तृतीय दिनः चंद्रघंटा इसका अर्थ चांद की तरह चमकने वाली.
  • चतुर्थ दिनः कुष्मांडा इसका अर्थ पूरा जगत उनके पैर में है.
  • पंचम दिनः स्कन्दमाता इसका अर्थ कार्तिक स्वामी की माता.
  • षष्ठम दिनः कात्यायनी इसका अर्थ कात्यायन आश्रम में जन्मीं.
  • सप्तम दिनः कालरात्रि इसका अर्थ काल का नाश करने वाली.
  • अष्टम दिनः महागौरी इसका अर्थ सफेद रंग वाली मां.
  • नवम दिनः सिद्धिदात्री इसका अर्थ सर्व सिद्धि देने वाली.

श्रीरामचंद्र जी ने की थी ये पूजा
शक्ति की उपासना का पर्व नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है. सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की. तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा.

मां दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री
मां दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है. ये सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली हैं. इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं. नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है. नवरात्र में प्रति दिन आदि शक्ति के स्वरूप की पूजा अर्चना करके माता रानी की कृपा अर्जित करने वाले भक्त के लिए संसार का कोई भी वस्तु उसकी कामना से दूर नहीं होता. मार्कण्डेय पुराण में देवी ने कहा है कि "यं यं चिन्तयते कामं, तं तं प्राप्नोति निश्चितम".

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