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मैथिली भाषा पर रामेश्वर उरांव के बयान पर बीजेपी की तीखी प्रतिक्रिया, कहा- समरसता और सद्भाव बिगाड़ना चाहती है सरकार

लोहरदगा में झारखंड में भाषा विवाद पर बोलते हुए वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने कहा कि मैथिली बिहार की भाषा है झारखंड की नहीं. वित्त मंत्री के बयान पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि झारखंड सरकार एक भाषा बोलने वाले को दूसरी भाषा बोलने वाले से लड़वाना चाहती है.

language controversy in jharkhand
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Published : Dec 26, 2021, 10:23 PM IST

Updated : Dec 27, 2021, 6:14 AM IST

रांची: झारखंड के भाषा विवाद एक बार फिर तूल पकड़ सकता है. वित्त मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता रामेश्वर उरांव अपने बयान को लेकर एक बार फिर चर्चा के केंद्र में हैं. लोहरदगा में वित्त मंत्री ने कहा कि मैथिली बिहार की भाषा है झारखंंड की नहीं. उन्होंने ये भी कहा कि झारखंड को ध्यान में रखकर ही नियम बनाए जाएंगे. जो भाषा सिर्फ कुछ लोग ही बोलते हैं उसे लेकर नियम नहीं बनाए जाएंगे. वित्त मंत्री के बयान पर झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि झारखंड सरकार सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने में लगी है.

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि सरकार में शामिल नेता ही एक भाषा वाले को दूसरी भाषा बोलने वालों से लड़ा रहे हैं. दीपक प्रकाश ने कहा कि हर मोर्चे पर विफल हेमंत सोरेन सरकार के मंत्रियों को यह लगता है कि इस तरह का विवाद कर वह जनता का ध्यान सरकार की नाकामियों से हटा देंगे पर उन्हें नहीं पता कि राज्य के लोग बहुत होशियार हैं.

दीपक प्रकाश, प्रदेश अध्यक्ष, बीजेपी

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वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने क्या कहा था

लोहरदगा में भाषा विवाद पर मंत्री रामेश्वर उरांव ने एक सवाल का जवाब देते हुए वित्त मंत्री रामेश्व उरांव कहा था कि मैथिली कहां की भाषा है? मिथिला की भाषा, मिथिला कहां है? बिहार में है. उन्होंने कहा वे झारखंड को ध्यान में रखकर नियम बनाएं या बिहार को ध्यान में रखकर नियम बनाएं? यहां जो भाषा सिर्फ कुछ लोग ही बोलते हैं उनके लिए अलग से हम नियम नहीं बनाए जा सकते. यहां की जो भाषा, परंपरा और संस्कृति है उसी को ध्यान में रखकर नियम बनाया गया है. उन्होंने बताया कि दो तरह की नियुक्ति होती है. एक राज्य स्तर पर और दूसरा जिला स्तर पर नियुक्ति होती है. दोनों के लिए अलग-अलग नियम बनाएं गए हैं.

कार्मिक विभाग द्वारा जारी पत्र में कई भाषाओं को मान्यता दी गई है, लेकिन राज्य स्तर पर इससे उर्दू को बाहर रखा गया है. इस पर भी विवाद जारी है. राज्य में बड़ी संख्या में उर्दू पढ़ने-लिखने वाले लोग हैं. इसके बावजूद इसे नजरअंदाज किया जा रहा है. जब मंत्री से इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कोई फिर स्पष्ट जवाब नहीं दिया. झारखंड में भाषा विवाद उस समय से शुरू हुआ जब सरकारी नौकरी की विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में क्षेत्रीय भाषाओं की सूची से मगही, मैथिली, भोजपुरी और अंगिका भाषा को हटा दिया गया. इसके बाद से ही झारखंड में भाषा विवाद लगातार गहराता जा रहा है.

Last Updated : Dec 27, 2021, 6:14 AM IST

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