पटना :राजनीति में शायद ही हमेशा किसी की दोस्ती बरकरार रहती है. कहते हैं राजनीति संभावनाओं का खेल है. जिसको जिससे लाभ दिखता नजर है, वह उसी ओर मुड़ जाता है. एनडीए से नाता तोड़कर नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ सरकार बनाने चले गए हैं. हालांकि कुछ-एक मौके को छोड़ दिया जाए तो जेडीयू हमेशा ही बीजेपी के साथ खड़ी रही. इसकी शुरुआत बहुत पहले हुई.
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1996 से दोस्ती की शुरुआत :1996 में जदयू और भाजपा के बीच गठबंधन बना (BJP JDU Relationship) था. जब तत्कालीन समता पार्टी ने केंद्र में अटल बिहार बाजपेयी के नेतृत्व वाली 13 दिन की भाजपा सरकार को समर्थन की पेशकश की थी. समता पार्टी ने उनके समर्थन से एक अच्छा सम्मान अर्जित किया था और फिर से भाजपा-जदयू गठबंधन ने बिहार में 1999 के आम चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया.
वाजपेयी की सरकार में मंत्री बने नीतीश : साल 2000 में पहली बार नीतीश कुमार एक सप्ताह के लिए बिहार के मुख्यमंत्री (CM Nitish Kumar) बने थे. लेकिन वे बहुमत हासिल करने में विफल रहे और वाजपेयी की सरकार में केंद्र में मंत्री के रूप में लौटे. पांच साल बाद, जदयू और भाजपा दोनों ने फरवरी 2005 में विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन सरकार अधिक समय तक नहीं चली और एक बार फिर अक्टूबर, 2005 में विधानसभा चुनाव हुए और नीतीश सत्ता में लौट आए.
मोदी के नाम पर रात्रिभोज हुआ रद्द : 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन ने भारी जीत हासिल की थी. यह वही साल था जब नीतीश पहली बार भाजपा से नाराज हुए थे, जब विज्ञापनों की एक श्रृंखला प्रकाशित हुई थी, जिसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2010 में कोसी बाढ़ राहत के लिए नीतीश को 5 करोड़ रुपये के चेक की पेशकश की थी. उस विज्ञापन से नाराज नीतीश ने 5 करोड़ रुपये के चेक को अस्वीकार कर दिया था और भाजपा नेताओं को रात्रिभोज भी रद्द कर दिया था, जिसने भगवा पार्टी को सबसे ज्यादा अपमानित किया था.
JDU ने दिखाई अपनी ताकत :जदयू और भाजपा के बीच एक और संवेदनशील बिंदु बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की नीतीश की मांग थी, जिसे केंद्र में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने अभी तक पूरा नहीं किया है. दरअसल, नीतीश ने अपनी ताकत दिखाने के लिए मार्च 2013 में पटना में एक अधिकार रैली की थी जिसमें बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की गई थी. उसी महीने, जेडीयू ने मोदी को भाजपा के संसदीय बोर्ड में शामिल किए जाने पर अपनी आपत्ति व्यक्त की थी.
मोदी की वजह से गठबंधन टूटा! :2012-13 में यह मनमुटाव खुलकर बाहर आने लगा. जदयू ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एक प्रस्ताव पारित करते हुए कहा कि एनडीए के प्रधानमंत्री उम्मीदवार सेक्युलर छवि का होनी चाहिए. मोदी को भाजपा की चुनाव समिति का प्रमुख बनाए जाने पर जदयू ने नाराजगी जताई थी. उस समय शरद यादव नीतीश के साथ जदयू का नेतृत्व कर रहे थे और जून 2013 में नीतीश ने बीजेपी के साथ 17 साल पुराने संबंध को समाप्त करते हुए भाजपा के साथ गठबंधन से बाहर हो गए थे.
2017 में फिर BJP के दोस्त बने नीतीश :2015 में, नीतीश ने राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जुलाई 2017 में अचानक उन्होंने गठबंधन से बाहर हो गए. हालांकि, 24 घंटे से भी कम समय में उन्होंने सीएम के रूप में वापसी की और भाजपा के समर्थन से महागठबंधन को हटाकर सरकार बनाई.
बिहार में बीजेपी और जदयू के सफर के बारे में पूछे जाने पर पटना के राजनीतिक विशेषज्ञ डॉक्टर संजय कुमार ने बताया, 'कुछ सालों को छोड़कर बिहार ने बीजेपी और जदयू के शासन में एक सुनहरा दौर देखा है. निस्संदेह बिहार में अधिकांश विकास एनडीए के शासन में हुआ. पुलों का निर्माण हो, बेहतर सड़कें हों, बिजली हो या पंचायत व्यवस्था, यह सब दूसरे राज्यों के लिए मिसाल बन गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दूरदर्शिता के लिए धन्यवाद, जिन्होंने लगभग 20 वर्षों तक भाजपा के साथ एक सफल सरकार का नेतृत्व किया. विकास का श्रेय नीतीश को ही नहीं, जदयू और भाजपा दोनों को जाना चाहिए.'
संजय कुमार ने आगे कहा, "नीतीश शुरुआत से हमेशा ड्राइविंग सीट पर थे और 2020 में पहली बार बीजेपी ने बिहार में बड़े भाई की भूमिका निभानी शुरू की, जिससे नीतीश असहज हो गए. बीजेपी के नेता बार-बार नीतीश और उनके तथाकथित सुशासन पर हमला करते थे. इसके अलावा और भी कई कारण हैं जो नीतीश को नाराज करते हैं, जिसमें केंद्रीय मंत्रिमंडल में समानुपात भागीदारी नहीं मिलना भी शामिल है.''