रांची: जरा इधर भी सुनिए नेताजी, चुनावी समर में लोक लुभावन वादा करने से कुछ नहीं होगा. समस्याओं का निदान जरूरी है. योजनाओं से कुछ नहीं होता, योजनाओं को धरातल पर उतारना जरूरी है. नहीं तो कल के भविष्य कहीं गुमशुदा न हो जाए.
स्कूल से जुड़े व्यवस्थाओं की रियलिटी टेस्ट
इस चुनावी समर में ईटीवी भारत ने राजधानी रांची से महज दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्राइमरी स्कूल का पड़ताल किया है. साथ ही इसकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन है यह भी जानने की कोशिश की है. हमारी टीम ने इस स्कूल से जुड़े व्यवस्थाओं की रियलिटी टेस्ट कर कई चौंकाने वाले सच को सामने लाया है.
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शिक्षा के मंदिर में भी अशिक्षा का माहौल
कई सरकारें आई और गईं, लेकिन परेशानियां बरकरार रही. आखिर इस ओर ध्यान देगा कौन. सरकार, आमजन, स्थानीय लोगों की भागीदारी या फिर जनप्रतिनिधि. अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंचाना तमाम नेताओं का अब एक स्लोगन बन गया है, लेकिन जिम्मेदार कौन है और योजनाएं क्यों धरातल पर नहीं उतारी जा रही हैं. इसके पीछे के कारण को जानने की कोशिश नहीं की जा रही है. अशिक्षा इस कदर हावी है कि शिक्षा के मंदिर में भी अशिक्षा का माहौल दिखा.
इस स्कूल की हालत है दयनीय
बरियातू और चिरौंदी के बीच हिल क्षेत्र में स्थित इस प्राथमिक स्कूल में मिड डे मील की व्यवस्था है. बच्चों को मेनू के हिसाब से खाना भी दिया जाता है. 55 बच्चे इस स्कूल में पढ़ाई करते हैं. इनके लिए 2 शिक्षकों की व्यवस्था शिक्षा विभाग ने मुकम्मल की है. एक रसोइया है जो मिड डे मील बनाती है. इस स्कूल में शौचालय तो है, लेकिन शौच जाने की स्थिति में नहीं है.
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अभिभावकों को भी कोई मतलब नहीं
वहीं, अब शिक्षा व्यवस्था में आते हैं. यहां की शिक्षिका को इस चुनावी मौसम के बावजूद यह नहीं पता है कि राज्य की शिक्षा मंत्री कौन हैं, झारखंड की राज्यपाल कौन हैं. जबकि इस शिक्षिका को चुनावी काम में भी जिला प्रशासन की ओर से बीएलओ के रूप में नियुक्त किया गया है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के बच्चे सीखते हैं क्या और पढ़ते हैं क्या. वहीं आइए जागरूक समाज की भी बात कर लेते हैं. इसके पीछे समाज भी कम जिम्मेदार नहीं है. एक तो अशिक्षित और रहा सहा कसर शराब ने पूरी कर रखी है. इस स्कूल के तमाम छोटे और नन्हे बच्चों से हमारी टीम ने बातचीत की है इन तमाम बच्चों के अभिभावक शराब के आदि हैं.