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बाबूलाल मरांडी ने क्यों कही राजनीति छोड़ने की बात, देखिए खास बातचीत

भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कई अहम मुद्दों पर अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि वो चुनाव से नहीं डरते हैं. एक सवाल के जवाब में उन्होंने राजनीति छोड़ देने की बात तक कह डाली.

Babulal Marandi interview
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Published : Jul 1, 2021, 5:35 AM IST

Updated : Jul 1, 2021, 7:06 AM IST

रांचीःझारखंड भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी से ईटीवी भारत के रीजनल न्यूज को-ऑर्डिनेटर सचिन शर्मा ने खास बातचीत की. बाबूलाल मरांडी ने झारखंड में कोरोना काल के दौरान बेरोजगारी, राजनीतिक हालात, ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी और नेता प्रतिपक्ष का दर्जा सहित तमाम मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की.

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हेमंत सोरेन सरकार के कामकाज पर सवाल

झारखंड सरकार के परफॉर्मेंस पर बाबूलाल मरांडी ने कहा कि कोराना काल में राज्य पूरी तरह से केंद्र सरकार पर निर्भर रही. झारखंड जैसे छोटे राज्य में संसाधनों की कमी है. लेकिन स्थिति उतनी भी बुरी नहीं थी, राज्य सरकार बेहतर काम कर सकती थी. उन्होंने ये भी कहा कि कोरोना के दूसरे दौर में अफरा-तफरी का माहौल रहा. राज्य में ऑक्सीजन की कमी नहीं है. जमशेदपुर और बोकारो से देशभर में ऑक्सीजन की सप्लाई की गई लेकिन सरकार ने समय रहते इसका व्यवस्थित उपयोग नहीं किया. इसका प्रबंधन ठीक रहता तो कोरोना से मरने वालों की संख्या कहीं कम होती. सबकुछ होने के बावजूद कुप्रबंधन के चलते हालात खराब हुए.

हेमंत सोरेन सरकार के कामकाज पर बाबूलाल के सवाल

झामुमो-कांग्रेस के वादे का क्या हुआ

महागठबंधन सरकार ने घोषणा पत्र में एक साल में 5 लाख रोजगार और बेरोजगारी भत्ता देने जैसे कई वादे किए थे. इस मुद्दे पर बाबूलाल ने कहा कि भाजपा बार-बार आवाज उठाती रही है. पांच लाख लोगों को नौकरी देने की बात तो छोड़ दीजिए, पहले से कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे लोगों को भी सरकार ने निकाल दिया. जिन लोगों ने आंदोलन किया, उन पर डंडे बरसाए गए. उन्होंने बताया कि पंचायत सेवक भर्ती की परीक्षा के बाद मेरिट लिस्ट पिछली सरकार में बन चुकी है. अब सिर्फ रिजल्ट निकालकर अपॉइंटमेंट करना बचा है, सरकार ने इसे लटका कर रखा है. इससे तीन चार हजार लोगों को नौकरी मिलती. पारा शिक्षकों को स्थाई करने का वादा भी पूरा नहीं किया गया. बेरोजगारी भत्ते पर भी सरकार चुप है.

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ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी पर रार

ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी के गठन पर राज्य में खूब राजनीति होती रही है. 22 जून को टीएसी का गठन कर दिया गया है, जिसमें भाजपा के तीन विधायकों को सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है. इसकी पहली बैठक पर ही भाजपा विधायकों ने ऐतराज जाहिर कर दिया. बाबूलाल मरांडी ने बताया कि टीएसी के गठन का अधिकार संविधान में राज्यपाल को दिया गया है लेकिन हेमंत सरकार ने राज्यपाल से अधिकार छीन कर असंवैधानिक काम किया है. विरोध इसी बात का है कि सरकार के असंवैधानिक काम में हम कैसे साथ दे सकते हैं. इसलिए भाजपा विधायकों ने आपत्ति जताई है.

झामुमो-कांग्रेस को याद दिलाया वादा

दरअसल, हेमंत सोरेन सरकार के गठन के बाद टीएसी को लेकर फाइल दो बार राजभवन से कुछ आपत्ति के साथ लौटा दी गई थी. राजभवन द्वारा कुछ सदस्यों के आचरण प्रमाण पत्र मांगे जाने पर मांडर विधायक बंधु तिर्की ने सवाल उठाए थे. इसके बाद अधिसूचना जारी कर टीएसी में राजभवन की भूमिका को खत्म कर दिया गया है.



...तो छोड़ दूंगा राजनीति

बाबूलाल मरांडी अक्सर ये आरोप लगाते रहे हैं कि झारखंड में ट्रांसफर पोस्टिंग का उद्योग चल रहा है. इसके अलावा सरकार के संरक्षण में बालू की अवैध ढुलाई का भी आरोप वे लगा चुके हैं. इस मुद्दे पर उन्होंने एक बार फिर हेमंत सोरेन सरकार को आड़े हाथ लिया. उन्होंने आरोप लगाया कि झारखंड में लीगल काम तो हो ही नहीं रहा है. बालू, स्टोन चिप्स, आयरन ओर और कोयला हर क्षेत्र में गैरकानूनी काम किया जा रहा है. उन्होंने ये भी बताया कि हेमंत सरकार ने आयरन ओर को पब्लिक सेक्टर के लिए रिजर्व रखने के लिए भारत सरकार को पत्र लिखा था. जबकि ऑक्शन होने से सरकार के खाते में दो-तीन हजार करोड़ रुपए आए, जिससे कोरोना काल में लोगों को बेहतर सेवा मिल पा रहा है. मरांडी ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार हर काम गैर कानूनी तरीके से करने लिए तत्पर रहती है क्योंकि लीगल काम करेंगे तो सरकार के खजाने में पैसा जाएगा और गैर कानूनी काम होगा तो उनकी अपनी तिजोरी भरेगी.

“कोई भी यह बोल दे कि जब बाबूलाल मरांडी सीएम थे तो ट्रांसफर पोस्टिंग या विकास योजनाओं में कोई कमीशन लिया गया हो, या कोई उद्यमी यह बता दें कि उनकी फाइल रोक कर पैसे मांगें गए हो तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा.”- बाबूलाल मरांडी

कुछ बातें राजनीतिक और चुनावी होती हैं

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अपने ही बनाए फंदे से भाजपा को कैसे निकालेंगे

साल 2016 का एक जिन्न अभी भाजपा के गले की फांस बना हुआ है. राज्यसभा चुनाव में वोटों को प्रभावित करने के मामले में बाबूलाल मरांडी ने ऑडियो सीडी जारी कर चुनाव आयोग से भाजपा की शिकायत की थी. अब बाबूलाल खुद भाजपा में हैं. अपने ही बनाए फंदे से भाजपा को कैसे निकालेंगे, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि उस मामले में उनकी बड़ी भूमिका नहीं थी. कोई भी संबंधित दस्तावेज के साथ शिकायत करेगा तो यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे विभाग को अलर्ट करेंगे. उस समय योगेंद्र साहू ने दस्तावेज दिए थे, जिसकी जानकारी उन्होंने चुनाव आयोग को दी थी. उन्होंने कहा कि “मैं इतना कहना चाहता हूं कि कोई भी काम प्रतिशोध की भावना के साथ नहीं होना चाहिए. निष्पक्षता से जांच होनी चाहिए.”

दरअसल, ये मामला राज्यसभा हॉर्स ट्रेडिंग से जुड़ा है. बड़कागांव से तत्कालीन कांग्रेस विधायक निर्मला देवी ने रांची पुलिस को बताया था कि 11 जून 2016 को चुनाव के दिन उन्हें रोकने की कोशिश हुई थी. तब अपने पीए संजीत कुमार और कांग्रेस नेता सुबोधकांत सहाय के पीए दीपक प्रसाद के माध्यम से वह हेमंत सोरेन के आवास तक पहुंची थीं. इसके बाद हेमंत सोरेन उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाकर वोट दिलवाने ले गए. तब के एक कथित टेप में एडीजी अनुराग गुप्ता, तत्कालीन विधायक निर्मला देवी, उनके पति योगेंद्र साव के बीच बातचीत की बात सामने आई थी. साथ ही एक वीडियो क्लिपिंग में योगेंद्र साव, रघुवर दास, अजय कुमार और अनुराग गुप्ता के साथ हुई बैठक की बातचीत भी थी.

सरकार गिराने का चुनावी जुमला

झारखंड में दुमका, बेरमो और मधुपुर उपचुनाव के दौरान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने दो महीने के भीतर झारखंड में भाजपा की सरकार बनाने का दावा किया था. तीनों सीट महागठबंधन के खाते में चली गई और दीपक प्रकाश का दावा भी फुस्स हो गया. इस पर बाबूलाल ने कहा कि ऐसी बातें चुनावी जुमला होती हैं. इसका कोई और अर्थ नहीं लेना चाहिए.

चुनाव से नहीं डरते हैं बाबूलाल मरांडी

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चुनाव से नहीं डरते हैं बाबूलाल मरांडी

झारखंड में मौजूदा सरकार के करीब डेढ़ साल बीतने के बाद भी कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है. बाबूलाल मरांडी का मुद्दा विधानसभा स्पीकर के पास विचाराधीन है. ऐसे में क्या भाजपा के पास क्या कोई दूसरा चेहरा नहीं है या फिर बाबूलाल को इस्तीफा देकर फिर से चुनाव नहीं लड़ना चाहिए? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी झाविमो का भाजपा में विधिवत विलय हुआ और निर्वाचन आयोग ने भी अपनी स्वीकृति दी है. पिछले राज्यसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने भाजपा विधायक रूप में वोट भी डाला है. लेकिन अब विधानसभा अध्यक्ष उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा क्यों नहीं देना चाहते, ये सरकार को बताना चाहिए.

उन्होंने कहा कि भाजपा में शामिल होने के पहले वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संगठन के दूसरे पदाधिकारियों से भी मिले थे. तब पद से मुक्त रखकर पार्टी के लिए काम करने का आग्रह किया था. लेकिन पार्टी के निर्देश का पालन कर भाजपा विधायक दल का नेता बना हूं. उन्होंने कहा कि वे चुनाव से कभी नहीं घबराते हैं. दुमका में दो बार जीत और गिरिडीह के निवासी होकर रामगढ़ के मैदान में उतरने के निर्णय का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दे या न दे लेकिन जनहित के मुद्दों की लड़ाई वे लड़ते रहेंगे.

दरअसल, विधानसभा चुनाव 2019 में झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के 3 विधायक चुने गए थे. लेकिन बाबूलाल मरांडी भाजपा में आना चाहते थे, दलबदल कानून से बचने के लिए उन्होंने अपने विधायकों प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को अपनी पार्टी से निकाल दिया और पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया. इनके दोनों विधायकों ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली. मरांडी के इस कदम को चुनाव आयोग का भी साथ मिल गया लेकिन विशेषाधिकार के चलते विधानसभा अध्यक्ष रवीन्द्र महतो ने पेंच फंसा दिया है.

बाबूललाल मरांडी का परिचय

संताल समुदाय के नेता बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर जाने जाते हैं. वे कभी प्राइमरी स्कूल के टीचर हुआ करते थे, बाद में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार के लिए शिक्षक की नौकरी छोड़ दी. साल 1991 में बीजेपी के तत्कालीन महामंत्री गोविंदाचार्य ने बाबूलाल मरांडी को भाजपा में शामिल करवाया.

साल1996 में भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को झारखंड का अध्यक्ष बना दिया. इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने न केवल झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन को मात दी, बल्कि झारखंड क्षेत्र की 14 में 12 लोकसभा सीटों पर भी भाजपा का कमल खिलाया. इसी जीत ने उन्हें झारखंड का करिश्माई नेता साबित कर दिया और वे केंद्रीय मंत्रिमंडल से होते हुए सन 2000 में नए बने राज्य के पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए.

इसी बीच भाजपा से कुछ अनबन होने के चलते मरांडी ने 14 सितंबर 2006 को खुद की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का गठन कर लिया. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के 3 विधायक चुने गए और चुनाव के ठीक बाद उन्होंने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया. 17 फरवरी 2020 को अमित शाह की मौजूदगी में बाबूलाल मरांडी एक बार फिर भाजपा में चले गए. भाजपा ने उन्हें विधायक दल का नेता भी चुना लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने फिलहाल उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया है. इस पर अब भी जद्दोजहद जारी है.

Last Updated : Jul 1, 2021, 7:06 AM IST

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