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बाबूलाल मरांडी दलबदल मामलाः आसान शब्दों में समझें पूरा मामला

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Published : Dec 17, 2020, 2:51 PM IST

Updated : Dec 17, 2020, 5:21 PM IST

बाबूलाल मरांडी के दलबदल मामले को लेकर झारखंड में संविधान के प्रावधानों पर चर्चा शुरू हो गई है. ये मामला विधानसभा अध्यक्ष के न्यायाधिकरण के साथ झारखंड हाईकोर्ट भी पहुंच चुका है. पूरे मामले को समझने के लिए आगे पढ़ें

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बाबूलाल मरांडी दलबदल मामला

रांची: भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के दलबदल मामले में झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस पर तत्काल अंतरिम रोक लगा दी है. इस मामले की अगली सुनवाई 13 जनवरी को होगी.

झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट का फैसला

झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में सुनवाई के दौरान बाबूलाल मरांडी के वकील राजनंदन सहाय ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश के राजेंद्र सिंह राणा बनाम स्वामी प्रसाद मौर्या के मामले में यह कहा है कि जब कोई स्पीकर के पास शिकायत करेगा, तभी स्पीकर उस पर संज्ञान ले सकते हैं. बगैर शिकायत के स्वतः संज्ञान लेने का अधिकार स्पीकर के पास नहीं है. अदालत ने उनकी दलील पर सहमति जताते हुए नोटिस पर रोक लगा दी और सुनवाई के लिए अगली तारीख 13 जनवरी तय की है.

क्या कहते हैं विधानसभा अध्यक्ष

झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो ने ईटीवी भारत को बताया कि उनकी तरफ से जो भी कार्रवाई की गई है, वह नियम संगत है. उन्होंने कहा कि झारखंड विधानसभा की नियमावली में स्पीकर को दलबदल मामले में स्वत संज्ञान लेते हुए नोटिस करने का अधिकार है और उसी आधार पर नोटिस दिया गया. उन्होंने ये भी कहा कि उनके ट्रिब्यूनल में इस मामले की सुनवाई जारी रहेगी. जहां तक हाईकोर्ट में पक्ष रखने की बात है तो इस पर विधि विशेषज्ञों से विचार-विमर्श किया जाएगा.

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संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप की राय

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने ईटीवी भारत को बताया कि भारत के संविधान में ऐसा उल्लेख है कि विधानसभा की कार्यवाही और कार्यप्रणाली में अदालतें हस्तक्षेप नहीं करेंगी. हालांकि दलबदल कानून के तहत विधानसभा अध्यक्ष को जो शक्ति दी गई, वो क्वासी ज्यूडिशल पावर है. यानी उनके फैसलों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है. इसका मतलब है कि अदालतें विधानसभा अध्यक्ष के फैसलों को रोक या बदल सकती हैं. दलबदल का मामला सदन की कार्यवाही नहीं है बल्कि ये न्यायिक मामला है इसलिए अदालत इसमें हस्तक्षेप कर सकती हैं.

टाइमलाइन की तस्वीर

ऐसे समझें पूरा मामला

2 मई 2006 : बाबूलाल मरांडी भारतीय जनता पार्टी से अलग हो गए

24 सितंबर 2006 : झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) पार्टी का गठन

11 जून 2009 : चुनाव आयोग ने जेवीएम को राज्यस्तरीय दल के रूप में मान्यता दी

24 जुलाई 2009 : चुनाव आयोग ने जेवीएम को कंघी चुनाव चिह्न आंवटित किया

11 फरवरी 2020 : जेवीएम की केंद्रीय कार्यसमिति की बैठक में विलय का प्रस्ताव

17 फरवरी 2020 : जेवीएम का भारतीय जनता पार्टी में विलय का एलान

24 फरवरी 2020 : बाबूलाल मरांडी बीजेपी विधायक दल के नेता चुने गए

6 मार्च 2020 : जेवीएम के बीजेपी में विलय को निर्वाचन आयोग ने मंजूरी दी

20 अगस्त 2020 : विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो ने दसवीं अनुसूची के दलबदल कानून के प्रावधानों के तहत बाबूलाल मरांडी, प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को नोटिस भेजा

12 नवंबर 2020 : स्पीकर के न्यायाधिकरण की ओर से जारी नोटिस को हाइकोर्ट में चुनौती

17 दिसंबर 2020 : झारखंड हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस पर तत्काल अंतरिम रोक लगा दी

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कौन हैं बाबूलाल मरांडी

संताल समुदाय के नेता बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर जाने जाते हैं. गिरिडीह में जन्मे बाबूलाल मरांडी ने स्नातक तक की पढ़ाई की है. उन्होंने प्राइमरी स्कूल में टीचर के रूप में सेवाएं दी हैं. इसी दौरान उनका संपर्क संघ के नेताओं से हुआ और उन्होंने संघ के प्रचार के लिए शिक्षक की नौकरी छोड़ दी. वे साल 1983 में दुमका चले गए और खुद को संघ के लिए समर्पित कर दिया. इसके बाद संघ के सिलसिले में बाबूलाल का रांची और दिल्ली आना-जाना भी शुरू हो गया.

अमित शाह के साथ बाबूलाल मरांडी

1991 में बीजेपी के महामंत्री गोविंदाचार्य ने उन्हें बीजेपी में शामिल किया और लोकसभा चुनाव में टिकट भी दिलवाया, लेकिन वे चुनाव हार गए. 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर बाबूलाल पर भरोसा जताया लेकिन इस बार उन्हें दिग्गज नेता शिबू सोरेन से हारना पड़ा, हालांकि हार का अंतर महज 5 हजार वोट था. बाबूलाल भले ही चुनाव हार गए लेकिन भाजपा का विश्वास जीत लिया. भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को झारखंड का अध्यक्ष बना दिया. इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने न केवल दिशोम गुरु शिबू सोरेन को मात दी, बल्कि झारखंड क्षेत्र की 14 में 12 लोकसभा सीटों पर भी भाजपा का कमल खिल गया. इसी जीत ने उन्हें झारखंड का करिश्माई नेता साबित कर दिया और वे केंद्रीय मंत्रिमंडल से होते हुए नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए. हालांकि बाबूलाल मरांडी को सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के दबाव के चलते मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ी.

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बीजेपी में बाबूलाल की अनदेखी की जाने लगी. इससे नाराज बाबूलाल ने राज्य की राजनीति से थोड़ी दूरी बना ली. बीजेपी प्रभारियों से बाबूलाल के मतभेद बढ़ने लगे और वे सार्वजनिक मंच पर भी राज्य सरकार की आलोचना करने लगे. पार्टी में उपेक्षित होने पर बाबूलाल मरांडी ने 14 सितंबर 2006 को खुद की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का गठन किया. इसके करीब 14 साल बाद 17 फरवरी 2020 को अमित शाह की मौजूदगी में उन्होंने जेवीएम का भाजपा में विलय का एलान कर दिया और बाबूलाल मरांडी एक बार फिर भाजपा में चले गए.

Last Updated : Dec 17, 2020, 5:21 PM IST

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