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गणतंत्र दिवस 2022ः झारखंड विधानसभा में अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो ने फहराया झंडा, राज्य के वीर सपूतों को किया याद

झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो ने विधानसभा परिसर में तिरंगा फहराया. उन्होंने कहा कि देश की आजादी में झारखंड के वीर सपूतों की अहम भूमिका रही है. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में लोकतांत्रिक व्यवस्था की समीक्षा करने की जरूरत है.

Assembly Speaker Rabindranath Mahto
झारखंड विधानसभा परिसर में अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो ने फहराया झंडा

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Published : Jan 26, 2022, 2:22 PM IST

रांचीः झारखंड विधानसभा परिसर में गणतंत्र दिवस समारोह आयोजित किया गया. इस समारोह में विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो ने तिरंगा फहराया. समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि आज का दिन सिर्फ खुशियां मनाने का नहीं है, बल्कि यह चिंतन करने का भी है कि हम अपने राष्ट्रनिर्माताओं की उम्मीदों का भारत बनाने में सफल हुए या नहीं. उन्होंने कहा कि देश की आजादी में झारखंड के वीर सपूतों ने अग्रणी भूमिका निभाई. इसमें बाबा तिलका मांझी, सिद्धो कान्हो, फूलो झानो, बिरसा मुंडा और न जाने कितने वीर सपूतों ने फिरंगियों से लोहा लिया और देश को आजाद कराया.

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रवींद्रनाथ महतो ने राज्यवासियों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का फैसला लिया था जो आधुनिक लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुरूप हो. उन्होंने कहा कि भारत के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था नई नहीं है. बल्कि इतिहास बताता है कि भारत में सदियों से ही लोकतांत्रिक व्यवस्था किसी न किसी रूप में विद्यमान रही है. वैशाली गणराज्य की बात हो या फिर तमिलनाडु में समिति की व्यवस्था या फिर 12वीं शताब्दी में मंडप की व्यवस्था. यह सभी लोकतांत्रिक व्यवस्था हमारी संस्कृति में पहले से थी.

उन्होंने कहा कि विषम परिस्थितियों में हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने पूरी दुनिया के उच्चतम लोकतांत्रिक मापदंड और भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के आधार पर हमें एक ऐसा संविधान प्रदान किया है, जिससे सभी को मान और सम्मान और देश के उत्तरोत्तर विकास के लिए शाश्वत ऊर्जा मिलती है. उन्होंने कहा कि हमारा राज्य झारखंड अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के बिगुल फूंकने में सबसे आगे था. 1784 ईस्वी में बाबा तिलका मांझी ने पहली बार फिरंगियों के खिलाफ हथियार उठाया था. 1855 में संथाल विद्रोह में सिद्धो कान्हो, चांद-भैरव, फूलो झानो जैसे अमर शहीदों ने क्रांति की चिंगारी जलाई थी. भगवान बिरसा मुंडा ने न सिर्फ अंग्रेजों से लोहा लिया, बल्कि राष्ट्रवाद की धारणा को उस समय भी मजबूत किया.

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रवींद्रनाथ महतो ने कहा कि आज का दिन समीक्षा करने का दिन है. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और हमारे संविधान निर्माताओं ने जिन उद्देश्यों के साथ भारत को लोकतांत्रिक देश बनाया, उन उद्देश्यों को पूरा करने में हम कहां तक सफल हैं. उन्होंने कहा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि राजनीतिक रूप से तो हम बराबरी का अधिकार पा लेंगे. लेकिन सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में गैर बराबरी रहेगी.

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