कोडरमा: झारखंड का एक सीमावर्ती जिला कोडरमा है. इसकी सीमाएं उत्तर में बिहार के नवादा, उत्तर पश्चिम में गया, दक्षिण पश्चिम में झारखंड के चतरा, दक्षिण में हजारीबाग और पूर्वी में गिरिडीह जिले से मिलती हैं. बिहार के नवादा और गया के साथ ही झारखंड के चतरा हजारीबाग और गिरिडीह सभी उग्रवाद प्रभावित जिले हैं. इस वजह से लोग यहां से पलायन कर रहे हैं. इसके साथ ही बेरोजगारी भी एक बड़ा मसला है. विधानसभा चुनाव 2019 नजदीक आते ही कोडरमा की जनता ने अपना मेनिफेस्टो ईटीवी भारत से साझा किया है.
वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी कोडरमा चारों तरफ से उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों से घिरा हुआ है. इस जिले में कुल 6 प्रखंड हैं, जिसमें सतगावां, मरकच्चो चंदवारा, जय नगर और कोडरमा प्रखंड घने जंगलों पहाड़ों और नदियों से घिरे हुए हैं. इस जिले के अधिकतम भू-भाग जंगल, पहाड़ और नदियों से घिरे पड़े हैं.
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10 अप्रैल 1994 को कोडरमा को जिले के रूप में घोषित किया गया. इससे पहले यह हजारीबाग जिले के अंदर आता था. राजधानी रांची से कोडरमा 165 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. कोडरमा 1500 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. कोडरमा जिले की कुल आबादी 7 लाख 31 हजार 948 हैं. कोडरमा विधानसभा में कुल मतदाता 3 लाख 14 हजार 294 हैं, जिसमें महिला 1 लाख 48 हजार 942, जबकि पुरुष मतदाता की 1 लाख 65 हजार 352 है.
कोडरमा को अभ्रक नगरी के रूप में जाना जाता है, जबकि वन अधिनियम के लागू होने से माइका की सभी छोटी-बड़ी खदाने बंद हो चुकी हैं. कोडरमा जिले में 2 शहर हैं एक झुमरी तिलैया दूसरा खुद कोडरमा. कोडरमा विधानसभा सीट आरजेडी की परंपरागत सीट रही है. हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के कारण कोडरमा विधानसभा सीट भाजपा की झोली में चली गई और अन्नपूर्णा देवी को हराकर बीजेपी की नीरा यादव कोडरमा की विधायक बनीं.
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विधानसभा चुनाव की घड़ी नजदीक आ चुकी है. ऐसे में चौक चौराहों पर सियासी चर्चाओं का दौर भी शुरु हो चुका है. कोडरमा विधानसभा की जनता ने अपना मेनिफेस्टो रख दिया है. लोगों ने मिली जुली प्रक्रिया देते हुए बताया कि यहां की मूल समस्या बिजली और स्वास्थ्य है. कोडरमा घाटी में ट्रॉमा सेंटर का निर्माण आज तक नहीं हो पाया है. जबकि सालों से यहां के लोग ट्रॉमा सेंटर की मांग कर रहे हैं. थर्मल पॉवर प्लांट होने के वाबजूद भी कोडरमा के लोगों को पर्याप्त मात्रा में बिजली नहीं मिल पा रही है. कोडरमा में एक भी कारखानों का निर्माण नहीं हुआ, जिसके कारण बेरोजगारी बढ़ी है. लोग पलायन को मजबूर हैं.