रांची: पंचायत चुनाव में राजनीतिक दलों का साफ्ट टारगेट मुखिया और जिला परिषद जैसे मलाईदार पदों पर है. शायद यही वजह है कि इस चुनाव में अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं की जीत सुनिश्चित कराने के लिए बैकडोर से ही सही सभी राजनीतिक दलों ने अपनी ताकत झोकनी शुरू कर दी है. झारखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव भलें ही दलगत आधार पर नहीं हो रहे हों मगर इस चुनाव में बैकडोर से राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप जरूर होगा.
ये भी पढ़ें:पंचायत चुनाव 2022: सुर्खियों में चुनाव चिन्ह, कान की बाली से लेकर चप्पल के सहारे मैदान में उतरेंगे प्रत्याशी
झारखंड में पंचायत चुनाव की घोषणा होने के बाद सभी राज्य की पार्टियां एक्टिव हैं. भले ही पंचायत चुनाव दलगत आधार पर नहीं हो रहे हों, लेकिन इसके पीछे का कारण ग्रास रूट पर राजनीतिक पकड़ मजबूत करना माना जा रहा है. यही वजह है कि चुनाव की घोषणा होने के बाद हर दल अपने कार्यकर्ताओं को अधिक से अधिक पद जीताने के लिए तैयारी शुरू कर दी है. झारखंड कांग्रेस विधायक दल के नेता और सरकार के पंचायती राज मंत्री आलमगीर आलम भी मानते हैं कि दलगत चुनाव नहीं होने की वजह से सीधे तौर पर चुनाव में पार्टी भागीदारी नहीं कर सकती है.
आलमगीर आलम ने कहा कि भले ही इस चुनाव में पार्टियों की सीधी भागीदारी नहीं है लेकिन बैकडोर से इस चुनाव में खड़े होने वाले वर्कर को संगठन जरूर सपोर्ट करेगी. हालांकि इस दौरान आलमगीर आलम ने दलगत चुनाव नहीं होने पर उठ रहे सवालों पर बीजेपी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि 2010 और 2015 में बीजेपी सरकार ने पंचायत चुनाव गैरदलीय आधार पर कराया था. अगर यह उचित था तो उसी समय दलीय आधार पर चुनाव होना चाहिए था.
झारखंड में पंचायत चुनाव की घोषणा होते ही राजनीतिक दलों में हलचल बढ़ गई है. हर दल अपने अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं को जीताने के लिए बैकडोर से सपोर्ट करने में जुट गया है. बीजेपी दफ्तर में बुधवार को पार्टी पदाधिकारियों की हुई बैठक में पंचायत चुनाव पर खुलकर चर्चा हुई. बीजेपी ने इस चुनाव में अधिक से अधिक संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं की जीत सुनिश्चित करने के लिए रणनीति बनाई है.
हालांकि, इसकी औपचारिक रूप से घोषणा करने से बीजेपी परहेज करती दिख रही है. बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव के अनुसार पार्टी के कार्यकर्ता इस चुनाव में खड़े होने के लिए स्वतंत्र हैं. उन्होंने कहा कि पंचायत चुनाव में जिस तरह से ओबीसी आरक्षण समाप्त किया गया है उसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ेगा. इधर सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा पंचायत चुनाव की तैयारी में जुट गई है. पार्टी नेता मनोज पांडे के अनुसार इस चुनाव में भले ही पार्टी के कार्यकर्ता जेएमएम के चुनाव चिन्ह पर चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगे मगर उन्हें हर संभव सहयोग दी जाएगी. पार्टी जल्द ही इस पर रणनीति बनाएगी.
बहरहाल 14 मई से राज्य में चार चरणों में हो रहे पंचायत चुनाव में राजनीतिक दलों का साफ्ट टारगेट मुखिया और जिला परिषद जैसे मलाईदार पदों पर है. शायद यही वजह है कि इस चुनाव में अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं की जीत सुनिश्चित कराने के लिए बैकडोर से ही सही सभी राजनीतिक दलों ने अपनी ताकत झोंकना शुरू कर दिया है.