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आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने जेपी नड्डा से की मुलाकात, निकाले जा रहे कई सियासी मायने

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के रांची पहुंचे पर आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने भी उनसे मुलाकात की. हालांकि इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया जा रहा है. लेकिन सूत्रों का कहना है कि दोनों के मुलाकात में हेमंत सरकार के नाकामियों को संयुक्त रूप से उजागर करने पर भी चर्चा हुई.

Sudesh Mahto met JP Nadda
Sudesh Mahto met JP Nadda

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Published : Jun 5, 2022, 8:35 PM IST

रांची: पूर्व उपमुख्यमंत्री और आजसू सुप्रीमो सुदेश कुमार महतो ने राजकीय अतिथिशाला में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने राज्य की वर्तमान राजनीतिक स्थिति और अन्य विषयों पर चर्चा की. जेपी नड्डा रांची में हुए विश्वास रैली में शामिल होने पहुंचे हैं.

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सुधर रहे हैं आजसू और भाजपा के रिश्ते:आजसू पार्टी झारखंड में हमेशा भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी भूमिका में रही है. हालांकि 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी और आजसू के रिश्तो में खटास आ गई थी. जिसके बाद आजसू पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा था. जिसका नतीजा यह रहा कि भारतीय जनता पार्टी और आजसू पार्टी, दोनों को 2019 के विधानसभा आम चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ा. इस चुनाव में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन की जबदरस्त जीत हुई और सरकार बनी.


विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद संभवत आजसू पार्टी के नेता सुदेश महतो और भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं को इस बात का एहसास हुआ कि झारखंड की राजनीति में अगर सत्ता में बने रहना है तो गठबंधन एकमात्र रास्ता है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के साथ आजसू पार्टी स्वभाविक रिश्ते लगातार मजबूत किये जाने के प्रयास दोनों तरफ से होते रहे. मांडर विधानसभा उपचुनाव होने वाले हैं. लोहरदगा से सटे मांडर विधानसभा क्षेत्र में आजसू का प्रभाव ज्यादा है. ऐसे ने भाजपा को उम्मीद है कि आजसू पार्टी के सहयोग से यहां जीत दर्ज हो सकती है.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के बीच मुलाकात को शिष्टाचार और औपचारिक मुलाकात बताया गया है. लेकिन सूत्रों का कहना है कि दोनों नेताओं के बीच जिन बिंदुओं पर चर्चा हुई उसमें मांडर विधानसभा उपचुनाव के अलावा लोजपा (पारस) की तरह आजसू को भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व देने के लिए पहल करने, हेमंत सोरेन सरकार की नाकामियों और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर संयुक्त रूप से जन आंदोलन करने, जातीय जनगणना और ओबीसी आरक्षण जैसे मुद्दे शामिल थे.

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