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दो वंशों को रोशनी दे गई नन्ही 'वंशिका', जनजातीय दंपती ने पेश की मिसाल - सुलेखा पन्ना

गुमला के रहने वाले एक जनजातीय दंपती की 2 साल की बेटी वंशिका की गिरने से मौत के बाद उनका रो-रोकर बुरा हाल था. फिर भी उन्होंने अपनी बच्ची की आंखें दान कर मिसाल पेश की है.

a tribal couple of dumka donated eyes of their baby
नन्ही 'वंशिका'

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Published : Jul 18, 2020, 1:58 PM IST

Updated : Jul 18, 2020, 7:00 PM IST

रांचीः कहते हैं जिनके दिलों में रोशनी होती है उनके जीवन में कभी अंधेरा नहीं होता. गुमला के जनजातीय दंपती ने इस बात को साबित कर दिया है. कहानी बेहद मार्मिक है जो अब मिसाल बन गई है. चंद्रप्रकाश पन्ना और उनकी पत्नी सुलेखा पन्ना के जीवन में 16 जुलाई को दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. तब सुलेखा अपने बैंक में काम करने गई थी. अचानक खबर आई कि उनकी दो साल की इकलौती नन्हीं गुड़िया 'वंशिका' दूसरे बच्चों के साथ खेलते हुए बालकनी से गिर गई है और उसे गंभीर चोट लगी है. आनन फानन में वे अपनी नन्हीं सी जान को लेकर गुमला से करीब 90 किलोमीटर दूर रांची में बेहतर इलाज के लिए निकल पड़े. लेकिन तब तक देर हो गई थी. एक निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने वंशिका को मृत घोषित कर दिया.

वंशिका के मां और पिता का बयान

आप समझ सकते हैं कि उस वक्त इन पर क्या गुजरी होगी, लेकिन थोड़ी ही देर में दोनों ने एक-दूसरे को संभाला और अपनी नन्हीं वंशिका के पार्थिव शरीर को लेकर रांची के प्रतिष्ठित आई हॉस्पिटल जा पहुंचे. दोनों की आंखों में आंसूओं का समंदर था. बस एक ही चाहत थी कि बिटिया का नेत्रदान हो जाए ताकि कोई जरूरतमंद इस खूबसूरत दुनिया को देख सके.

डॉ भारती कश्यप ने बताया कि जनजातीय दंपती के इस आग्रह ने उन्हें भीतर से झकझोर दिया. ऐसा कभी नहीं हुआ था कि कोई अपने कलेजे के टुकड़े को लेकर नेत्रदान के लिए अस्पताल पहुंचा हो. आश्चर्य इस बात की थी कि मृत्यु प्रमाण पत्र भी नहीं बन पाया था. सामाजिक दायित्व के प्रति इतनी गहरी समझ का सम्मान करते हुए सर्जरी की तैयारी की गई. कश्यप आई मेमोरियल की डॉ निधि घटकर कश्यप ने वंशिका के दोनों नेत्र (कॉर्निया) को सफलतापूर्वक प्राप्त किया. अब दो जरूरतमंद की तलाश शुरू कर दी गई है ताकि उन आंखों से वंशिका इस दुनिया को देख सके.

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ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान डॉ भारती कश्यप ने कहा कि नेत्रदान के प्रति ऐसा समर्पण उन्होंने आज तक नहीं देखा. इससे पहले एक पिता ने अपनी पुत्री के अंतिम संस्कार के दौरान श्मशान घाट से अचानक नेत्रदान कराने का फैसला लिया था. इसके लिए वह श्मशान घाट गई थी. दूसरी घटना नवविवाहिता नेहा बजोरिया से जुड़ी है. उनकी एक दुर्घटना में मौत हुई थी और वैसी मार्मिक हालात में उनका नेत्र प्राप्त किया गया था. लेकिन गुमला के इस जनजातीय दंपती ने जो कुछ कर दिखाया, वो मिसाल है, शायद इसी वजह से नेत्रदान को महादान कहा जाता है.

Last Updated : Jul 18, 2020, 7:00 PM IST

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