रांची: मां दुर्गा की आराधना को लेकर बदलते समय के अनुसार दुर्गा पूजा का खर्च कितना भी बढ़ जाए. शहर में एक से बढ़कर एक भव्य पंडाल बन रहे हो, लेकिन रांची के अल्बर्ट एक्का चौक स्थित दुर्गा बाड़ी की दुर्गा पूजा आज भी अपने पुराने और पौराणिक परंपराओं के अनुसार होती है. 1883 से जो परंपरा इस मंदिर में चली आ रही है. वह परंपरा आज भी कायम है. आज भी मां की विदाई, डोली में ही बैठाकर की जाती है.
पहली दुर्गा पूजा कमेटी का हुआ था गठन
रांची में सबसे पहले, सन 1883 में सार्वजनिक दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ था. रांची के जिला स्कूल के प्रधानाचार्य रहे, पंडित गंगाचरण वेदांत बागीस ने बंगाली समुदाय के समक्ष दुर्गा पूजा का प्रस्ताव रखा था. इन्हीं के प्रयास से रांची की पहली दुर्गा पूजा कमेटी का गठन हुआ था. आज जहां दुर्गा बाड़ी है वहां पहले एक खपड़ैल का मकान हुआ करता था और उसी में पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया था. आज वह जगह अल्बर्ट एक्का चौक के समीप दुर्गा बाड़ी और दुर्गा बाटी के नाम से प्रसिद्ध है.
महानवमी में सिर्फ महिलाएं करती थीं मां महामाया के दर्शन
137 साल पुराने इस मंदिर का इतिहास है. इस दौरान यहां मेला और यात्रा का भी आयोजन होता था. लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, जगह की कमी के कारण मेला बंद हो गया. कहानी तो ऐसी भी प्रचलित है कि दुर्गा पूजा के समय नवमी के दिन रात 8 बजे से लेकर 9 बजे तक प्रतिमा का दर्शन केवल महिलाएं ही करती थीं. उस समय पुरुषों का मंदिर के अंदर प्रवेश करना वर्जित हुआ करता था. लेकिन इस परंपरा को बदल दिया गया अब पुरुषों को भी मां की प्रतिमा के दर्शन करने की अनुमति नवमी के दिन भी है.
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