पलामू: अंग्रेजों के खिलाफ पलामू में जंग लड़ने वाले दो नीलांबर-पीतांबर गुमनामी के अंधेरे में हैं. आजादी के इन दो नायकों के नाम पर पलामू में नीलांबर-पीतांबर यूनिवर्सिटी बना है लेकिन उनके इतिहास से संबंधित कोई जिक्र नहीं है. पलामू गजट में भी नीलांबर-पीतांबर के बारे में टूटी-फूटी जानकारी है. नीलांबर-पीतांबर ने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी.
पलामू में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन के नीलांबर-पीतांबर ही सूत्रधार थे. नीलांबर-पीतांबर अविभाजित पलामू वर्तमान में गढ़वा के चेमो सान्या गांव के रहने वाले थे. उनके पिता चेमु सिंह जमींदार थे, उनका संबंध अंग्रेजों से नहीं रहा और वे हमेशा विद्रोही थे. नीलांबर-पीतांबर बाबू बिर कुंवर सिंह, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, गणपत राय के संपर्क में थे और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे. नीलांबर-पीतांबर पर किताब लिखने वाले प्रोफेसर एनएन शरण बताते हैं कि नीलांबर-पीतांबर के नेतृत्व में जन विद्रोह हुआ था. जिसमें राजे-राजवाड़े से अलग आम लोग भाग ले रहे थे.
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वे बताते हैं कि जंग-ए-आजादी में नीलांबर-पीतांबर के नेतृत्व में ही पलामू में आजादी की लड़ाई शुरू हुई थी. इस लड़ाई में नीलांबर-पीतांबर का साथ बड़ी संख्या में महिलाओं ने दिया था. वे बताते हैं कि इतिहास में नीलांबर-पीतांबर को जो जगह मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिली. इतिहास में उनकी वीरता की उपेक्षा और अनदेखी हुई. एनएन शरण बताते हैं कि नीलांबर-पीतांबर ने गुरिल्ला वार की शुरुआत की थी.
जंग-ए-आजादी की लड़ाई में फरवरी 1858 में कर्नल डालटन के नेतृत्व में नीलांबर-पीतांबर के गांव में अंग्रेजों ने जमकर लूटपाट की और संपत्ति को जब्त कर लिया. 1859 में अंग्रेजों ने नीलांबर-पीतांबर के खिलाफ बड़ा अभियान शुरू किया था. इस दौरान अंग्रेजों ने चेरों और खरवार के बीच फुट डालने का काम किया था. परिणाम नीलांबर-पीतांबर को पीछे हटना पड़ा. अंग्रेजों ने फरवरी 1859 में लगातार हमला किया जिस कारण नीलांबर-पीतांबर कमजोर हो गए थे. बाद में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 28 मार्च 1859 को सूली पर चढ़ा दिया.