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पलामू पुलिस की पहलः दस्ता छोड़ लड़कियां उठाएंगीं स्कूल का बस्ता, एक अरसे तक दोनों माओवादी संगठन में रहीं सक्रिय - नक्सली दस्ते में शामिल हो रहीं लड़कियां

झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति अपना असर दिखा रही है. इसके लिए पुलिस भी लगातार अपनी सक्रियता दिखा रही है. इसी कड़ी में पलामू पुलिस की पहल से नक्सली बनी लड़कियां स्कूल जाएंगी. उन दोनों ने दस्ता छोड़ समाज की मुख्यधारा में लौटने का इरादा कर लिया है.

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पलामू पुलिस की पहल

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Published : Dec 28, 2021, 5:02 PM IST

Updated : Dec 28, 2021, 6:37 PM IST

पलामूः दो लड़कियां स्कूल छोड़ भाग गयी थीं और नक्सली दस्ते में शामिल हो गयी थीं. आज पलामू पुलिस की पहल से दोनों लड़कियां नक्सलवाद का रास्ता छोड़ समाज की मुख्यधारा में लौट रही हैं. ये दोनों एक बार फिर स्कूल में पढ़ने के लिए जाएंगी.

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झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति के पलामू पुलिस की पहल रंग लाई है. जिसमें नक्सली बनी लड़कियां स्कूल जाएंगी. पलामू पुलिस बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ के नारे को बुलंद कर रही है. स्कूल छोड़ चुकीं दो महिला नक्सली पलामू पुलिस की पहल पर एक बार फिर से मुख्य धारा में लौटेंगी. 2018 में पलामू के छतरपुर थाना क्षेत्र में सुरक्षाबल और माओवादियों के बीच लगातार दो बार मुठभेड़ हुई थी.

इस मुठभेड़ में टॉप कमांडर्स के साथ साथ दो महिला नक्सली मारी गयी थीं जबकि एक जख्मी हुई थी और दो गिरफ्तार हुई थी. दोनों नक्सली नाबालिग थी और नौडीहा बाजार थाना क्षेत्र के पाल्हे तुरकुन की रहने वाली थीं. दोनों को पलामू पुलिस ने पहल करते हुए कस्तूरबा गांधी आवासीय स्कूल में नामांकन करवाया था. मगर दोनों होली की छुट्टी में अपने गांव गयी लेकिन वो दोनों दोबारा स्कूल नही लौटीं. पलामू एसपी चंदन कुमार सिन्हा ने बताया कि पुलिस को पूरी जानकारी मिली है दोनों लड़कियों के पास पुलिस पहुंचकर बातचीत की है. उन्होंने बताया कि पुलिस दोनों की पढ़ाई को लेकर पहल कर रही है. दोनों को एक बार फिर से स्कूल भेजा जाएगा.

देखें स्पेशल रिपोर्ट
नक्सली दस्ते में शामिल हो रहीं लड़कियां

पाल्हे और तुरकून गांव की आधा दर्जन लड़कियां माओवादियों के दस्ते में शामिल हो गयी थीं. पाल्हे की एक और तुरकुन गांव की पांच लड़कियां थीं. उस मुठभेड़ में मारी गयी एक महिला नक्सली रिंकी की मां बताती हैं कि उनकी बेटी लकड़ी चुनने जंगल गयी थी और अचानक नक्सली दस्ते में शामिल हो गयी. ग्रामीणों ने रिंकी की मां को बताया कि वह दस्ते के साथ गयी है. काफी दिनों वह लौटी तो उसने बताया था कि अब वह दस्ते में नहीं रहना चाहती थी, बहुत पैदल चलना पड़ता है. रिंकी ने अपने घर पर बताया कि वह मेला घूमने जा रही है और फिर वो दस्ते में शामिल हो गयी. बाद में यह खबर आई की वह मारी गयी है. रिंकी की मां नहीं चाहती थी कि उनकी बेटी नक्सली बने. इसी तरह गांव की सभी लड़कियों की कहानी है, लकड़ी चुनने के दौरान वह दस्ते में शामिल हो गयी थीं.

कानून के जानकार इंदु भगत बताती हैं कि इस मामले में पहल करने की जरूरत है ताकि कोई भी मुख्यधारा से भटके नहीं. समाज की मुख्यधारा से जुड़ रहीं दोनों लड़कियों को लेकर उन्होंने कहा कि उनकी भी निगरानी करने की जरूरत ताकि वो भी मुख्यधारा से भटके नहीं.

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पुलिस के आग्रह के बाद भी बंद किया गया स्कूल
पाल्हे, तुरकुन और गोरहो पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर से करीब 70 किलोमीटर दूर है. चारों तरफ पहाड़ियों से घिरा ये गांव है. पाल्हे और तुरकुन जाने के लिए एक मात्र साधन पैदल है, गांव में साइकिल भी नहीं जा सकती है. इसलिए ग्रामीण पहाड़ के नीचे साइकिल छोड़ देते है, पहाड़ से उतरने में बाद ग्रामीण साइकिल का इस्तेमाल कर नजदीक के बाजार सरइडीह जाते हैं. गांव के स्कूल को सरकार ने दूसरी जगह मर्ज कर दिया है. जबकि पलामू पुलिस ने स्कूल को मर्ज नहीं करने का आग्रह किया था. दोनों गांव में पुलिस को छोड़ कोई भी सरकारी तंत्र नहीं पंहुचा है. गांव में बने सरकारी स्कूल के भवन जो 2017-18 से बंद है उस पर माओवादियों के क्रांतिकारी किसान कमिटी का फरमान अभी-भी लिखा दिखाई देता है.

Last Updated : Dec 28, 2021, 6:37 PM IST

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