पलामू:90 के दशक में मुड़कटवा शब्द पलामू के इलाके में काफी मशहूर हुआ था. यह शब्द नक्सल संगठन माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) के लिए इस्तेमाल किया जाता था. 90 के दशक के दौरान जन अदालतों में बड़ी संख्या में लोगों के सिर कलम किए गए थे. जिस कारण एमसीसी को मुड़कटवा की उपाधि मिली और एक और शब्द जुड़ा था छह इंची छोटा करना यानी सिर कलम कर देना. यह शब्द एमसीसी के सुप्रीम कमांडर प्रशांत बोस के पलामू के इलाके में सक्रिय होने बाद इस्तेमाल होना शुरू हुआ था.
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साल 2004 में एमसीसी और पीपुल्स वार का विलय हो गया. जिसके बाद प्रशांत बोस माओवादियों का दूसरा सबसे बड़ा नेतृत्वकर्ता बने. आज प्रशांत बोस सलाखों के पीछे है. लेकिन उनके पास छह दशक के नक्सल इतिहास भी है.
चंदवा के किता नरसंहार के बाद पलामू के इलाके में सक्रिय हुए थे प्रशांत बोस
1988-89 में अविभाजित पलामू के चंदवा के किता में बड़ा नरसंहार हुआ था. इस नरसंहार में करीब 23 लोग मारे गए थे. कहा जाता है इस नरसंहार को पीपुल्सवार ने अंजाम दिया था. इसी घटना के बाद प्रशांत बोस ने पलामू के इलाके के रुख किया. उसके बाद एमसीसी को सक्रिय किया और कई इलाकों में फैलाव किया. चंदवा के इलाके में एक जमींदार परिवार को निशाना बनाया गया और सिर कलम कर उनकी हत्या की गई थी. इसी घटना के बाद से एमसीसी को मुड़ कटवा की संज्ञा दी गई थी. इलाके में पूरी कार्रवाई का नेतृत्व प्रशांत बोस ने किया था. प्रशांत घोष पलामू में सक्रिय होने से पहले गिरिडीह, चतरा, हजारीबाग और सारंडा के इलाके में एमसीसी का गठन कर चुके थे. एक पूर्व माओवादी ने बताया कि 90 के दशक में बड़ी संख्या में जन अदालत लगाई गई थी. इस जन अदालत में कई लोगों को सजा दी गई थी. जिसका नाम संगठन के साथ जुड़ गया था.
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एमसीसी की पहली बड़ी बैठक पलामू के चक में हुई थी
झारखंड-बिहार में एमसीसी के गठन के बाद पहली बड़ी बैठक पलामू के मनातू थाना क्षेत्र के चक में हुई थी. एक जानकार ने बताया कि इसी बैठक में नथुनी मिस्त्री नामक व्यक्ति को एमसीसी में बड़ा ओहदा दिया गया था. जानकार बताते हैं कि प्रशांत बोस कभी भी अपनी खाने की प्लेट को दूसरे को धोने नहीं देते थे. कपड़ा और बेड भी खुद साफ करते थे.