पलामूः बदले दौर के साथ बाजार पर सोशल मार्केटिंग साइट(social marketing site ) का कब्जा होते जा रहा है. सोशल मार्केटिंग साइट(social marketing site) का दखल बाजार के साथ-साथ सब आपसी रिश्तों पर भी हो गया है. सोशल साइट के विज्ञापन और बड़े ख्वाब परिवार को टूट के कगार पर ले जा रहे हैं. छोटी छोटी जरूरत पूरी नहीं होने पर महिलाएं थाना पंहुच रही है और अपनों की शिकायत कर रही हैं. बड़े शहरों की तुलना में अब छोटे शहरों में भी यह शिकायतें पुलिस के पास पहुंचने लगी है.
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 170 किलोमीटर दूर मेदिनीनगर टाउन महिला थाना में पिछले छह महीने के आंकड़ों पर गौर करें, पति के खिलाफ मारपीट और अन्य विवाद की शिकायत लेकर 300 से अधिक महिलाएं पंहुची हैं. जिसमें 100 से अधिक शिकायत के पीछे छोटी छोटी जरूरतों का पूरा नहीं होना था. टाउन महिला थाना प्रभारी फिरदौस नाज ने बताया कि कई शिकायतों में देखा गया है कि जरूरत पूरी नहीं होने के बाद पति और पत्नी आपस में झगड़ते हैं और उनके पास पंहुचते हैं. ऐसे मामलों में दोनों पक्षों को बुलाकर समझाया बुझाया जाता है.
महिलाएं और पुरुष दोनों कर रहे शिकायतः सोशल मार्केटिंग साइट(social marketing site) और जरूरत को लेकर अधिकतर झगड़ा न्यूक्लियर परिवारों(nuclear families) के बीच हो रहा है. बड़े शहरों से निकलकर ग्रामीण इलाकों तक यह समस्या पहुंच गई है. कानूनी मामलों की जानकार महिला सामाजिक कार्यकर्ता इंदु भगत बताती हैं कि उनके समक्ष इस तरह की कई शिकायत पंहुचती है कि पत्नी को कुछ पसंद आया, पति ने नहीं खरीदा. बाद में लड़ाई हुई, लेकिन शिकायत किसी और विषय को लेकर की गई. मामले के पास में जाने के बाद पता चलता है कि पत्नी ने कुछ जरूरत बताई थी जिसके बाद झगड़ा शुरू हो गया था. उनके पास ऐसे कई उदाहरण हैं. उनके पास ग्रामीण इलाके से भी इस तरह की शिकायतें आने लगी हैं. पलामू के पांकी के इलाके की एक महिला सुनीता देवी ने पुलिस के समक्ष शिकायत की थी कि उसका पति उसे खर्चा नहीं देता, पूरे मामले में काउंसिलिंग के दौरान यह पाया गया कि पति की आमदनी मात्र आठ हजार रुपये थी. इसी आमदनी में वह अपने दो बच्चों और माता-पिता के खर्चे को उठाता था. पत्नी ने मोबाइल में एक ड्रेस को पसंद किया था, जिसे वह आर्डर देना चाहती थी, लेकिन पति ने मना कर दिया, जिसके बाद दोनों के बीच झगड़ा हो गया और मामला थाना तक पंहुच गया.
परिवार की आमदनी का कम होना भी आपसी रिश्तों को पंहुचा रहा नुकसानःइस तरह के अधिकतर शिकायत न्यूक्लियर परिवारों(nuclear families) से अधिक पहुंच रही है. माता पिता और अन्य परिजनों को छोड़कर सपनों को पूरा करने के लिए लोग शहरों में रह रहे हैं. पुलिस को जांच के दौरान यह पता चला है कि थानों तक शिकायत पहुंचने वाले 10 मामलों में छह से सात मामले न्यूक्लियर परिवार(nuclear families ) के बीच के होते हैं. मेदिनी राय मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में तैनात मनोचिकित्सक डॉ सुनील कुमार ने बताया कि लोगों ने न्यूक्लियर फैमिली(nuclear families) में रहना शुरू कर दिया है. उनकी आवश्यकता बढ़ती जा रही है. अधिकतर समय मोबाइल के ऊपर बीत रहा है और उसी से ख्वाब भी बनते जा रहे हैं. खर्च के अनुरूप आमदनी नहीं होने पर आपसी लड़ाई भी बढ़ रही है.
एक्सपर्ट मानते हैं कि काउंसिलिंग और सामाजिक सहयोग की जरूरतः आपसी रिश्तो में सोशल मार्केटिंग साइट(social marketing site) के दखल को लेकर एक्सपर्ट मानते हैं कि काउंसिलिंग और सामाजिक सहयोग की जरूरत है. रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. प्रमोद पाठक ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि सोशल मार्केटिंग साइट(social marketing site) का एक अलग दुष्प्रभाव शुरू हो गया है. इसका एक भयावह चेहरा भी निकल कर सामने आने लगा है. उन्होंने बताया कि पूरे मामले में ऐसे परिवारों को बड़े पैमाने पर काउंसिलिंग की जरूरत हैं, क्योंकि सोशल मार्केटिंग साइट (social marketing site) या अन्य मार्केटिंग एजेंसी आधा सच बताती हैं. मार्केटिंग का तरीका है घर की महिलाएं या घर के बच्चों को टारगेट किया जाए.