पलामूः आज हम विकासशील भारत से विकसित भारत की तरफ बढ़ने की बात करने लगे हैं. आज हर तरफ एक बदलाव का दौर है. अब वो इलाके भी बदल रहे हैं जो आजादी के बाद भी उपेक्षित रहे हैं. अब इन उपेक्षित इलाकों में भी बदलाव शुरू हो गया है और वो समाज की मुख्यधारा में जुड़ रहे हैं.
इसे भी पढ़ें- अग्रसर बिरहोरः इंटर पास करने वाली रामगढ़ की पहली बिरहोर छात्रा बनीं रश्मि
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 250 किलोमीटर दूर पलामू के मनातू के इलाका. मनातू का जिक्र होने के साथ ही नक्सल हिंसा और इससे जुड़ी तस्वीर निकलकर सामने आने लगती है. इस इलाके में आदिम जनजाति के करीब 370 परिवार दशकों से उपेक्षित रहे हैं. इनके परिवार के कोई भी सदस्य मैट्रिक पास भी नहीं है. इनके जीवन में जेएसएलपीएस की उड़ान प्रोजेक्ट बदलाव ला रहा है. आज इलाके में ककहरा और एबीसीडी के बोल गूंज रहे हैं. यह सभी इलाका नक्सलियों के प्रभाव वाला है और इन इलाकों में पहुंचने के लिए एक लंबा कच्चा और पथरीले रास्तों से गुजरना पड़ता है.
जेएसएलपीएस की महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं उनके जीवन में सुधार लाने में जुटी हुई हैं. आदिम जनजाति को शिक्षित करने वाली सुष्मंती और रिंकी देवी ने बताया कि काफी समझाने के बाद आदिम जनजाति के बच्चे पढ़ने को राजी हुए. उनके परिवार के सदस्य स्वच्छ रहने के प्रति जागरूक हुए हैं. पलामू के कई इलाकों में आदिम जनजाति के परिवारों का सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण हुआ है. इसी सर्वेक्षण के आधार पर आदिम जनजाति के सदस्य को साक्षर करने की पहल की शुरुआत की गयी है.
इसे भी पढ़ें-झारखंड में कुल 32 जनजातियों का है निवास स्थान, जानिए कौन-कौन सी हैं जनजाति और आदिम जनजाति
साक्षर नहीं होने के कारण उठाना पड़ता था नुकसान, योजनाओं की दी जा रही जानकारी
अशिक्षित आदिम जनजाति हमेशा से योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते जागरूक नहीं हो पाते हैं. शिक्षित नहीं होने के कारण उनको काफी नुकसान उठाना पड़ता है. आदिम जनजाति वाले गांव चिड़ी खुर्द में कई लोगों आधार कार्ड और वोटर आईडी में दर्ज अपना नाम और पिता का नाम तक पता नहीं था. जेएसएलपीएस के उड़ान प्रोजेक्ट की कोऑर्डिनेटर कुमारी नम्रता बताती हैं कि सबसे पहले लोगों को साक्षर करने की योजना शुरू की गयी है. जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं की जानकारी मिल सके और कोई उन्हें छल ना सके. मनातू के इलाके में चिड़ी खुर्द, रंगेया, दलदलीया, कोहबरिया, धूमखाड़, उरुर, गौरवा टोला में पाठशाला शुरू की है. महिला स्वयं सहायता से जुड़ी सदस्यों के माध्यम से आदिम जनजाति के बच्चों को साक्षर किया जा रहा है.